वाशिंगटन, गुरुवार, 31 मई 2018 (सी.एन.आ.): विश्व में छः करोड़ साठ लाख लोग युद्ध एवं हिंसा के परिणामस्वरूप अपने घरों का पलायन करने के लिये बाध्य हुए हैं।
बुधवार 30 मई को वाशिंगटन स्थित सामरिक और अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन केंद्र ने "ग्लोबल माइग्रेशन संकट का सामना करना" शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी कर इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि विकासशील राष्ट्र सर्वाधिक आप्रवासियों, विस्थापितों एवं शरणार्थियों को शरण प्रदान करते हैं।
काथलिक राहत सेवा सम्बन्धी कल्याकारी संस्था के अनुसार अफ्रीका में अपने घरों के पलायन हेतु बाध्य हुए 94 प्रतिशत लोग अफ्रीकी देशों में ही शरण पा रहे हैं जिससे मेज़बान देशों पर अत्यधिक भार पड़ रहा है। यह भी कहा गया कि 85 प्रतिशत शरणार्थी कम अथवा मध्यम आय वाले देशों में शरण पा रहे हैं।
काथलिक राहत सेवा की उपाध्यक्षा एमीली वाय ने कहा कि "विस्थापितों की सहायता करते समय यह सुनिश्चित्त करना अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि हम मेज़बान देशों के लोगों की ज़रूरतों को ना भूले।"
उक्त रिपोर्ट के अनुसार 2016 में सर्वाधिक शरणार्थियों ने तुर्की, पाकिस्तान, लेबनान, ईरान और यूगाण्डा में शरण ली। इसके अतिरिक्त, संयुक्त राष्ट्र संघ की शरणार्थी एजेन्सी के अनुसार यूगाण्डा ने 2017 में दक्षिणी सूडान के दस लाख से अधिक शरणार्थियों को शरण प्रदान की।
एमीली वाय ने कहा "यूगांडा में, काथलिक राहत सेवा मेज़बान देश के लोगों तथा साथ ही शरणार्थी समुदायों को आश्रय, स्वच्छ पानी और आजीविका देकर लगभग 100,000 लोगों का समर्थन दे रही है।"
रिपोर्ट में कहा गया कि 2016 में विश्व के छः करोड़ साठ लाख लोग हिंसक संघर्षों, प्राकृतिक प्रकोपों, अथवा मानवाधिकारों के अतिक्रमण के परिणाणस्वरूप अपने घरों का परित्याग करने के लिये बाध्य हुए थे।
रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया दर्शाते हुए अमरीकी काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के शरणार्थी एवं आप्रवास सम्बन्धी कार्यालय ने एक विज्ञप्ति प्रकाशित कर अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का आह्वान किया है कि इस संकट का दूरगामी समाधान ढूँढ़ा जाये जो केवल आप्रवास एवं विस्थापन के मूल कारणों को सम्बोधित कर किया जा सकता है। कहा गया कि काथलिक धर्मानुयायी सन्त पापा फ्राँसिस का आदर्श ग्रहण कर उन समुदायों को समर्थन दे सकते हैं जो आप्रवासियों एवं शरणार्थियों की सेवा में संलग्न हैं।
All the contents on this site are copyrighted ©. |