2018-04-21 14:36:00

एक पैर से एवरेस्ट पर चढ़कर सिद्ध किया कि कुछ भी संभव नहीं


लुकला, शनिवार, 21 अप्रैल 2018 (एशियान्यूज)˸ 22 साल के एक फिलीस्तीनी शरणार्थी, जाराह अलहावामदेह ने 15 साल की उम्र में कैंसर के कारण अपना एक पैर खो दिया किन्तु यह उसे एक सफल पर्वातारोही बनने से नहीं रोक सका। उसका मुख्य उद्देश्य है अम्मान के शरणार्थी शिविर के स्कूल की रक्षा करना जहाँ वह बढ़ा।

शरणार्थी शिविर जहाँ वह बड़ा हुआ तथा स्कूल जहाँ उसने दस सालों तक पढ़ाई कर यह सिद्ध किया कि "कुछ भी असंभव नहीं है" इसी ने उसे माऊण्ड एवरेस्त में चढ़ने हेतु प्रेरित किया।  

जाराह, जॉर्डन के अम्मान के निकट अल जोफेह शरणार्थी शिविर में रहता है और जिसे 15 साल की उम्र में दाहिने पैर पर कैंसर की बीमारी हो गयी थी।   

उन्होंने यूएनआरडब्लूए के फंडराईसिंग पेज पर लिखा कि कैंसर ने "मुझे दो साल बाद पर्वत चढ़ने से नहीं रोक सका और मैं 2015 में कैंसर पीड़ितों के लिए आशा के संदेश के साथ किलिमानजारो पर्वत चढ़ा, मैं उन्हें यह दिखलाना चाहता था कि कुछ भी असंभव नहीं है।

2 अप्रैल को शुरू हुई अपनी नवीनतम चढ़ाई का उद्देश्य यूएनआरडब्ल्यूए और उनके शरणार्थी शिविर के लिए जागरूकता और धन जुटाना, जो एजेंसी के वित्तीय संकट के कारण बंद हो सकता है।

एशियान्यूज को दिये एक साक्षात्कार में जाराह ने बतलाया कि वे माण्ट एवरेस्ट चढ़ने की योजना तीन सालों से बना रहे थे। उन्होंने बतलाया कि यात्रा के दौरान उन्हें खराब मौसम एवं दो बार आँधियों का सामना करना पड़ा। अंतिम तीन दिनों में उन्हें सांस लेने में बहुत तकलीफ हुई, तापमान शून्य से 30 डिग्री कम थी। जाराह ने बतलाया कि जब वे चढ़ना आरम्भ किये तो उनकी संख्या 11 थी किन्तु दो ही सफलता पूर्वक पर्वत की चोटी तक पहुँच पाये, जिनमें से वे एक हैं।    

उसने बतलाया कि यात्रा के दौरान मुश्किलताओं के बावजूद वे कभी निरूत्साहित नहीं हुए क्योंकि वे स्कूल के विद्यार्थियों एवं शिविर के लोगों की लगातार याद कर रहे थे और उन्हें लग रहा था कि सफलता पाना उनकी बड़ी जिम्मेदारी थी।

जाराह ने बतलाया कि वे जॉर्डन के अम्मान स्थित अल जोफर शिविर में पले बढ़े जो फिलिस्तीनियों के लिए बना एक शरणार्थी शिविर है। इस शिविर में ही उसका पूरा परिवार रह रहा था। आरम्भ में उन्हें फिलिस्तीन स्थित अपने घर लौटने की आशा थी किन्तु शिविर में ही पढ़ना शुरू किया। 








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