2018-04-09 15:40:00

ईश्वर के असीम प्रेम पर चिंतन करें, संत पापा


वाटिकन सिटी, सोमवार, 9 अप्रैल 2018 (रेई)˸ वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में 8 अप्रैल को, दिव्य करुणा रविवार के अवसर पर संत पापा फ्राँसिस ने समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

उन्होंने संत योहन रचित सुसमाचार से लिए गये पाठ पर चिंतन करते हुए प्रवचन में कहा, "आज के सुसमाचार पाठ में हम बार बार "देखना" क्रिया को सुनते हैं। "शिष्य आनन्दित हो उठे जब उन्होंने प्रभु को देखा।" (यो.20.20) उन्होंने थोमस से कहा, "हमने प्रभु को देखा है।" (पद 25) संत पापा ने कहा किन्तु सुसमाचार यह नहीं बतलाता कि उन्होंने किस तरह उन्हें देखा। यह पुनर्जीवित प्रभु के बारे नहीं बतलाता बल्कि घटना की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करता है, उन्होंने "उन्हें अपने हाथ और अपनी बगल दिखाई।" मानो कि सुसमाचार हमें बतलाना चाहता हो कि शिष्य किस तरह उनके घावों के माध्यम से येसु को पहचान पाये। यही बात थोमस के साथ भी हुई। वह येसु के हाथों में कीलों के निशान देखना चाहता था और उसे देखने के बाद उसने विश्वास किया। (पद.27)

संत पापा ने थोमस की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा, "उसके विश्वास की कमी के बावजूद, हमें थोमस के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए क्योंकि वह दूसरों से सुनकर कि येसु जीवित हैं अथवा उनके शरीर को देखने मात्र से संतुष्ट नहीं था। वह अंदर देखना, अपने हाथों से उनके घावों का स्पर्श करना चाहता था जो उनके प्रेम के चिन्ह थे।"

संत पापा ने कहा कि हमारे लिए भी यह काफी नहीं है कि हम ईश्वर के अस्तित्व को जानें। ईश्वर जो पुनर्जीवित हैं किन्तु हमसे दूर हैं वे हमारे जीवन को भर नहीं सकते। हमें उन्हें देखने की जरूरत है हमारे हाथों से उनका स्पर्श करने तथा यह जानने की कि वे हमारे लिए जी उठे हैं।

हम किस तरह उन्हें देख सकते हैं? संत पापा ने कहा कि हम भी शिष्यों के समान उनके घावों के द्वारा उन्हें देख सकते हैं। उन घावों पर दृष्टि डालने के द्वारा शिष्यों ने उनके प्रेम के गहराई को समझा। उन्हें मालूम हो गया कि उन्हें क्षमा किया गया है यद्यपि उनमें से कुछ ने उन्हें अस्वीकार किया था एवं उन्हें त्याग दिया था।

येसु के घावों में प्रवेश करने का अर्थ है उनके असीम प्रेम पर चिंतन करना जो उनके हृदय से प्रवाहित होता है। यह एहसास करना कि उनके हृदय मेरे लिए, आपके लिए एवं सभी लोगों के लिए धड़कता है।

संत पापा ने कहा कि हम अपने को ख्रीस्तीय मान सकते हैं एवं विश्वास के सुन्दर मूल्यों की चर्चा कर सकते हैं किन्तु, हमें भी शिष्यों के समान येसु के प्रेम का एहसास करते हुए उन्हें देखने की आवश्यकता है। केवल इसी के द्वारा हम विश्वास के केंद्र में जा सकते हैं तथा शिष्यों के समान हर संदेह से मुक्त होकर शांति और आनन्द का अनुभव कर सकते हैं।

प्रभु के घावों के निशान को देखने के बाद थोमस बोल उठा, "मेरे प्रभु मेरे ईश्वर।" संत पापा ने थोमस द्वारा दुहराये गये सर्वनाम "मेरे" की व्यख्या करते हुए कहा कि यह एक सं‍बंधवाचक सर्वनाम है। जब हम इस पर विचार करते हैं तब हमें लग सकता है कि इसे ईश्वर के लिए प्रयोग करना उचित नहीं है। किस तरह ईश्वर मेरा हो सकता है? किस तरह मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर को अपना बना सकता हूँ? वास्तव में, मेरे कहने के द्वारा हम ईश्वर को अपवित्र नहीं करते बल्कि उनकी दया को सम्मानित करते हैं क्योंकि ईश्वर हमारा होना चाहते हैं। जैसा कि हम प्रेम कहानी में उनसे कहते हैं, आप मेरे लिए मानव बन गये, मर गये एवं मेरे लिए जी उठे, इस तरह आप न केवल ईश्वर हैं किन्तु मेरे ईश्वर हैं आप मेरे जीवन हैं, आपमें मैंने जीवन पाया है, जिसकी खोज मैं कर रहा था आदि।"

ईश्वर हमारे होने में अपमानित महसूस नहीं करते हैं बल्कि हमसे दया के लिए भरोसा की मांग करते हैं। दस आज्ञाओं के आरम्भ में ही ईश्वर कहते हैं, "मैं तुम्हारा प्रभु ईश्वर हूँ" वे पुनः इसकी पुष्टि देते हुए कहते हैं, उन देवमूर्तियों को दण्डवत कर उनकी पूजा मत करो क्योंकि मैं प्रभु तुम्हारा ईश्वर ऐसी बातें सहन नहीं करता। (पद. 5). यहाँ हम देखते हैं कि ईश्वर अपने आपको एक ईर्ष्यालु प्रेमी की तरह प्रस्तुत करते हुए खुद कहते हैं, "तुम्हारा ईश्वर।" थोमस के अंतःस्थल से यही प्रत्युत्तर निकलता है, "मेरे प्रभु और मेरे ईश्वर।" आज, जब हम ख्रीस्त के घाव, उनके रहस्य पर चिंतन कर रहे हैं तब हम यह एहसास करते हैं कि दया केवल उनके सदगुणों में से एक नहीं है किन्तु उनके हृदय की धड़कन है। इसको जानने के बाद हम अन्य शिष्यों की तरह नहीं बल्कि थोमस की तरह प्रेम किये जाने का एहसास करते हैं और हम भी प्रभु से प्रेम करने लगते हैं। किस तरह हम उनके प्रेम का एहसास करें? आज, येसु की दया का स्पर्श हम किस तरह अपने हाथों से कर सकते हैं? सुसमाचार इसका संकेत देता है, जब यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि पास्का की संध्या, जी उठने के तुरन्त बाद, येसु पापों की क्षमा प्रदान करते हैं। प्रेम का एहसास करने के लिए हमें क्षमा किये जाने का एहसास करना आवश्यक है। हम अपने आप से पूछे कि क्या मैं क्षमा किये जाने के लिए तैयार हूँ? उस प्रेम का अनुभव करने के लिए हमें वहीं शुरूआत करने की आवश्यकता है। संत पापा ने कहा कि पाप स्वीकार संस्कार के लिए जाना हम में से कई लोगों के लिए कठिन लग सकता है, ईश्वर के सामने हम भी उस तरह के प्रलोभन में पड़ सकते हैं जिस तरह सुसमाचार में शिष्यों ने किया था। हम अपने को उनसे दूर रखने के लिए द्वार बंद कर सकते हैं। उन्होंने भय से ऐसा किया था, हम भी डर से अथवा अपना हृदय खोलने एवं अपने पापों को स्वीकार करने के शर्म से ऐसा करते हैं। ईश्वर हमें कृपा प्रदान करे कि हम लज्जा को समझ सकें, अपना द्वार बंद न करें किन्तु मुलाकात हेतु अपना पहला कदम उनकी ओर बढ़ायें। जब हम लज्जा महसूस करते हैं हमें कृतज्ञ होना चाहिए। इसका अर्थ है कि हम बुराई को स्वीकार नहीं करते बल्कि अच्छाई को अपनाते हैं। लज्जा आत्मा का एक गुप्त निमंत्रण है जिसके लिए प्रभु की आवश्यकता है ताकि बुराई पर विजय पा सकें। दुःखद बात तब होती है जब हम किसी चीज पर लज्जा नहीं रखते। संत पापा ने कहा कि हम लज्जा रखने से न डरें। हम लज्जा से क्षमाशीलता की ओर बढें।

संत पापा ने कहा कि एक दरवाजा ऐसा है जो प्रभु की क्षमाशीलता के सामने बंद रहता है परित्याग करने का द्वार। शिष्यों ने पास्का में अनुभव किया कि जब उन्होंने निराशा में येसु को पहचाना तब सब कुछ पहले की तरह हो गया। वे अब भी येरूसालेम में थे पूरी तरह निस्र्त्साहित। ऐसा लगा मानो उनके जीवन से येसु का अध्याय समाप्त हो गया। येसु के साथ बहुत अधिक समय व्यतीत करने के बाद भी कुछ नहीं बदला, उन्होंने परित्यक्त महसूस किया। हम भी सोच सकते हैं, "मैं लम्बे समय से ख्रीस्तीय हूँ किन्तु मुझ में कुछ नहीं बदला। मैं उन्हीं पापों में फिर पड़ जाता हूँ।" इस प्रकार हम निराश होकर दया को छोड़ देते हैं किन्तु प्रभु हममें परिवर्तन लाते हैं। क्या तुम विश्वास नहीं करते हो कि मेरी दया तुम्हारी दुर्दशा से बढ़कर है। संत पापा ने कहा, "क्या तुम एक पापी हो"? उन्होंने कहा, "यदि तुम एक पापी हो तो दया की याचना करने वाला पापी बनो और तुम देखोंगे कि कौन ऊपर आता है। जब भी हमें क्षमा मिलती है हमें सांत्वना एवं प्रोत्साहन भी प्राप्त होता है क्योंकि हरेक बार हम अधिक प्रेम किये जाने तथा पिता द्वारा आलिंगन किये जाने का एहसास करते हैं। जब हम फिर गिर जाते हैं हमें बहुत दुःख होता है क्योंकि हम प्रेम किये जाने का एहसास करते हैं यह दुःख हमें धीरे-धीरे पाप से दूर करता है। तब हम पाते हैं कि जीवन की शक्ति को खोजने का अर्थ है ईश्वर की क्षमाशीलता को स्वीकार करना। इसी तरह लज्जा से लज्जा एवं क्षमाशीलता से क्षमाशीलता द्वारा जीवन आगे बढ़ता है। यही ख्रीस्तीय जीवन है।

लज्जा और त्याग के बाद एक दूसरा बंद दरवाजा है। जब हम आत्मामारू पाप करते हैं हम पूरी ईमानदारी से अपने आपको क्षमा देते और अपने को ईश्वर से दूर रखते हैं। किन्तु यह द्वार सिर्फ हमारी ओर बंद है क्योंकि ईश्वर के लिए कोई भी द्वार पूरी तरह बंद नहीं होता। जैसा कि सुसमाचार हमें बतलाता है कि वे बंद द्वार में भी प्रवेश कर गये। वे हमें कभी नहीं छोड़ना चाहते हैं किन्तु हम उनसे दूर होना चाहते हैं। जब हम पाप स्वीकार करते हैं हम पाते हैं कि वही पाप जो हमें ईश्वर से दूर रखता था, ईश्वर से मुलाकात का स्थल बन जाता है। जहाँ वे हमारे प्रेम के खातिर घायल हुए ख्रीस्त हमारे घावों को देखने आते हैं। वे हमारे घावों को अपने घावों के समान सम्मानित बनाते हैं। इससे बदलाव आता है हमारे नीच घाव उनके महिमामय घावों के समान हो जाते हैं क्योंकि वे दयालु हैं तथा हमारे घावों में चमत्कार कर सकते हैं।

संत पापा ने सभी विश्वासियों का आह्वान किया कि हम प्रेरित संत थोमस के समान ईश्वर को पहचानने की कृपा की याचना करें ताकि उनकी क्षमाशीलता में द्वारा आनन्द तथा उनकी दया द्वारा आशा प्राप्त कर सकें।








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