2018-04-04 14:21:00

मिस्सा की अंतिम धर्मविधि पर संत पापा की धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 04 अप्रैल 2018 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को मिस्सा बलिदान पर अपनी धर्मशिक्षा देते हुए कहा, प्रिय भाई एवं बहनों, सुप्रभात।

आज की धर्मशिक्षा माला में हम पवित्र यूख्रारिस्त के अंतिम भाग की चर्चा करते हुए मिस्सा बलिदान के संदर्भ में शुरू की गई अपनी धर्मशिक्षा माला का समापन करेंगे। परमप्रसाद की प्रार्थना के बाद मिस्सा बलिदान का समापन पुरोहित के द्वारा दिये जाने वाले ईश्वरीय आशीर्वाद से होता है तदोपरान्त विश्वासी विदा लेते हैं। संत पापा ने कहा कि जिस भांति यूख्रारिस्तीय समारोह की शुरूआत पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर क्रूस के चिन्ह से होती है उसी भांति इसका समापन तृत्वमय ईश्वर के नाम की मुहर से होती है।    

यद्यपि हम जानते हैं कि मिस्सा बलिदान का समापन ख्रीस्तीय समर्पण के साक्ष्य की शुरूआत है। हम प्रभु के घर से “शांति के साथ” विदा लेते और उनकी आशीष को अपने रोज दिन के जीवन में, अपने घरों, कार्य स्थलों, विश्व के विभिन्न स्थानों में जाते हुए “ईश्वर की महिमा अपने जीवन” द्वारा करते हुए कार्यान्वित करते हैं। परमप्रसाद के रुप में येसु ख्रीस्त हमारे हृदय और शरीर में आते हैं जिससे हम “उन्हें अपने संस्कारीय जीवन में व्यक्त कर सकें जिसे हमने विश्वास के रुप में पाया है।

इस तरह यूख्रारिस्तीय समारोह हमारे जीवन का अंग बनता है जहाँ हम मिस्सा बलिदान की कृपाओं को अपने जीवन में ठोस रुप से जीते हुए मुक्तिदाता येसु ख्रीस्त के रहस्यमय जीवन का अंग बनते हैं। संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यूखारिस्तीय बलिदान के द्वारा हम अपने जीवन में इस बात को सीखते हैं कि हमें कैसे यूखारिस्तीय विश्वासी बनते हैं। इसका अर्थ क्या हैॽ इसका अर्थ हमारे लिए यही है कि हम येसु ख्रीस्त को अपने जीवन में कार्यान्वित होने दें, विशेषकर, उनके विचार हमारे विचार बनते हैं, उनकी सोच, अनुभूति, कार्य करने के तरीके हमारे जीवन जीने की शैली बनती है। संत पौलुस इसे अपने जीवन में आत्मसात करते हुए अपने शब्दों में व्यक्त करते हैं, “मैं मसीह के साथ क्रूस पर मर गया हूँ, मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझ में जीवित हैं। अब मैं अपने शरीर में जो जीवन जीता हूँ, उसका एकमात्र प्रेरणा-स्रोत है-ईश्वर के पुत्र में विश्वास, जिसने मुझे प्यार किया और मेरे लिए अपने को अर्पित किया है।” संत पौलुस की अनुभूति हमें प्रकाशित करती है जहाँ हम अपने स्वार्थ का दमन करते  अर्थात हम सुसमाचार और ईश्वर के प्रेम के खातिर अपने स्वार्थ का परित्याग करते हैं जो हममें एक नये जीवन को सृजित करता है जो पवित्र आत्मा की शक्ति द्वारा होता है।

संत पापा कहते हैं कि परमप्रसाद में येसु ख्रीस्त की सच्ची उपस्थिति मिस्सा बलिदान के द्वारा समाप्त नहीं होती वरन जीवित येसु ख्रीस्त संदूक में रोटियों के रूप में, शांतिमय ढंग से आराधना हेतु रखी जाती है वास्तव में हमारा समुदायिक या व्यक्तिगत रुप से पवित्र परमप्रसाद की पूजा आराधना मिस्सा पूजा के आलवे, हमें येसु ख्रीस्त से संयुक्त रहने में मदद करता है।

इस भांति मिस्सा बलिदान की कृपा हमारे दैनिक जीवन में फलहित होती और परिवक्वता को प्राप्त करती है। सही अर्थ में देखा जाये तो बपतिस्मा और दृढ़ीकरण संस्कार में पवित्र आत्मा से मिले कृपादानों को हम मिस्सा बलिदान में और अधिक पोषित होता हुआ पाते हैं और इस भांति हमारे ख्रीस्तीय साक्ष्य विश्वासनीय बनता है।

पवित्र यूखारिस्त हमारे हृदय में दिव्य प्रेम को प्रज्जवलित करता जिसके कारण हम अपने को पापों से मुक्त होता हुअ पाते हैं। “हम अपने को जितना अधिक ख्रीस्त के साथ संयुक्त करते और उनके प्रेम में विकास करते जाते हैं उतनी ही अधिक आत्ममारू पाप हमें ईश्वर के प्रेम से अलग करने में कठिनाई का अनुभव करता है।”  

पवित्र यूख्रारिस्त से हमारे संबंध की निरंतरता ख्रीस्त जीवन की हमारे समुदायिकता को गहराई प्रदान करती जहाँ हम अपने में एक नवीनता और सुदृढ़ता का अनुभव करते हैं।

येसु ख्रीस्त के पवित्र बलिदान में हमारी सहभागिता हमें दरिद्रों के प्रति निष्ठावान बने रहने में मदद करती है जहाँ हमें येसु ख्रीस्त के शरीर से प्रेरित होकर मानव शरीर अपने भाइयों के लिए कार्य करने हेतु अग्रसर होते हैं, इस भांति येसु ख्रीस्त हमें अपने को पहचानने, अपनी सेवा, प्रेम और सम्मान करने की आशा रखते हैं।  

संत पापा ने कहा कि येसु ख्रीस्त से मिलन की अमूल्य निधि जो हमारे शरीर रुपी मिट्टी के पात्रों में रखी गई है (2 कुरि.4.7) हमें येसु की बलिवेदी की ओर उन्मुख होने में सदैव मदद करती है जब तक कि हम मेमने के स्वर्गीय विवाह भोज की महिमा में पूर्ण रूपेण सम्मिलित न हो जायें।(प्रका. 19.9) हम ईश्वर के प्रति कृतज्ञ हैं जिन्होंने हमें यूख्रारिस्तीय बलिदान के रहस्य को जाने हेतु एक अवसर प्रदान किया जिसे हम एक साथ मिलकर पूरा करते हैं। उन्होंने हमें एक नये विश्वास में अपने पुत्र येसु ख्रीस्त की ओर आकर्षित किया है जो मर कर हमारे साथ रहने हेतु पुनर्जीवित हुए हैं।  

इस भांति संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासी समुदाय का अभिवादन किया। उन्होंने विशेष रुप से युवाओं, बुजुर्गों, बीमारों और नव विवाहितों की याद की।

ख्रीस्त ने मृत्यु पर विजय पायी है और इस भांति वे हमें अपने दुःखों को स्वीकारने हेतु मदद करते हैं जो हमारे लिए मुक्ति का कारण बनता है। हम अपने जीवन में पास्का के संदेश को शांति और खुशी के रुप में जीयें क्योंकि यह हमारे लिए येसु ख्रीस्त के पुनरुत्थान का उपहार है।

इतना कहने के बाद संत पापा ने सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के साथ हे हमारे पिता प्रार्थना का पाठ किया और सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।  








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