2018-03-19 11:32:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय- स्तोत्र ग्रन्थ, भजन 94 भाग-5 एवं 95


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें।

"मेरे लिये उन दुष्टों का सामना कौन करेगा? उन कुकर्मियों के विरुद्ध मेरा पक्ष कौन लेगा? यदि प्रभु ने मेरी सहायता नहीं की होती, तो अधोलोक मेरा निवास बन गया होता। प्रभु! जब मुझे लगता था कि मेरे पैर फिलसने वाले हैं, तो तेरी सत्यप्रतिज्ञता मुझे संभालती थी। जब असंख्य चिन्ताएं मुझे घेरे रहती थीं, तो मुझे तेरी सान्तवना का सहारा मिलता था।"  

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 94 वें भजन के 16 से लेकर 19 तक के पद। विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत हमने इन्हीं पदों की व्याख्या की थी। इन पदों में भजनकार एक बार फिर पूछता है कि दुर्जन कब तक आनन्द मनायेंगे?  वह ईश्वर को पुकारता और उनसे अपील करता है कि प्रभु स्वतः को प्रकट करें। वह इस बात से भली भाँति परिचित है कि उसके हर कठिन क्षण में प्रभु ईश्वर उसकी शरण शिला, उसका स्तम्भ बने हैं, मनुष्यों के प्रति अपने प्रेम के ख़ातिर प्रभु ईश्वर सदैव धर्मियोंकी रक्षा करते रहे हैं। प्रभु की सत्यप्रतिज्ञता उन्हें सम्भालती है। उनकी दया और कृपा के कारण उन्हें उनकी गहन चिन्ताओं और निराशाओं में भी   प्रभु की सान्तवना का सहारा मिलता है। इसीलिये भजनकार प्रभु में अपने विश्वास की पुनरावृत्ति कर कहता है कि हालांकि बहुत बार ऐसा प्रतीत होता है कि मेरी आवाज़ प्रभु ईश्वर तक पहुँच ही नहीं पा रही है तथापि, प्रभु ही ईश भक्तों की सान्तवना और उनकी आधार शिला बनते हैं।

भजन के 20 वें पद में भजनकार प्रभु ईश्वर से प्रश्न कर पूछता है, "क्या अन्याय की सांठगाँठ तेरे साथ हो सकती है, जहाँ विधि की आड़ में जनता पर भार डाला जाता है?" इस स्थल पर हमने श्रोताओ का ध्यान ईश्वऱ की संहिता की ओर आकर्षित कराया था और यह स्मरण दिलाया था कि प्रभु ईश्वर द्वारा दिये गये दस हुक्मों का पालन युगयुगान्तर तक के लोगों का दायित्व है क्योंकि ऐसा कर ही हम अपने मध्य न्याय एवं शांति की स्थापना में सफल हो सकेंगे। ईश्वर की दस आज्ञाएँ हैं, "मैं प्रभु, तुम्हारा ईश्वर हूँ। मेरे सिवा तुम्हारा कोई ईश्वर नहीं होगा। प्रभु, अपने ईश्वर का नाम व्यर्थ न लो। विश्राम दिवस को पवित्र मानो। अपने माता-पिता का आदर करो। हत्या मत करो। व्यभिचार मत करो। चोरी मत करो। अपने पड़ोसी के विरुद्ध झूठी गवाही मत दो। अपने पड़ोसी के घर-बार का लालच मत करो। अपने पड़ोसी की पत्नी  और उसकी किसी चीज़ का लालच मत करो।" 

आगे, स्तोत्र ग्रन्थ के 94 वें भजन के अन्तिम तीन पदों में भी भजनकार इसी तथ्य पर बल देता है कि दुष्ट लोग अधर्म का बदला चुकायेंगे, वे जैसा करेंगे वैसा भरेंगे भी जबकि धर्मी पुरुष ईश्वर की छत्रछाया में रहकर आनन्द मनायेंगे। ये पद इस प्रकार हैं, "वे धर्मी के प्राणों के गाहक हैं, और निर्दोष को मृत्यु दण्ड देते हैं; किन्तु प्रभु मेरा गढ़ है। मेरा ईश्वर मेरे आश्रय की चट्टान है। वह उन से उनके अधर्म का बदला चुकायेगा। वह उनकी दुष्टता द्वारा उनका विनाश करेगा। हमारा प्रभु-ईश्वर उनका विनाश करेगा।"  

श्रोताओ, इन पदों के शब्दों को हम नवीन व्यवस्थान में निहित योहन के पहले पत्र को पढ़कर समझ सकते हैं जिसमें इस तथ्य पर बल दिया गया है कि पाप करना अथवा बुराई में लगना असम्भव नहीं है किन्तु "पाप करना" और ईश्वर की सन्तान होना, इन दोनों में परस्पर विरोध है, इसलिये जो पाप करता है वह ईश्वर की आज्ञा भंग करता है। इसी सन्दर्भ में सन्त योहन के पहले पत्र के तीसरे अध्याय के 13 वें पद में लिखा है, "भाइयो! यदि संसार तुमसे बैर करे, तो इसपर आश्चर्य मत करो।"    

अब आइये, स्तोत्र ग्रन्थ के 95 वें भजन पर दृष्टिपात करें। इस भजन के प्रथम तीन पद इस प्रकार हैं, "आओ! हम आनन्द मनाते हुए प्रभु की स्तुति करें, अपने शक्तिशाली त्राणकर्त्ता का गुणगान करें। हम धन्यवाद करते हुए उसके पास जायें, भजन गाते हुए उसे धन्य कहें; क्योंकि हमारा प्रभु ईश्वर शक्तिशाली है, वह सभी देवताओं से महान अधिपति है।"

ग़ौर करें कि 95 वें भजन का कोई विशिष्ट शीर्षक नहीं है। इसमें भजनकार श्रद्धालुओं को उपासना के लिये आमंत्रित करता है। बाईबिल व्याख्याकारों के अनुसार स्तोत्र ग्रन्थ का 95 वें वाँ भजन दाऊद के भजनों में से एक है। इस स्थल पर जैरूसालेम एवं उसके आसपास के मन्दिरों एवं उनके प्राँगण के निर्माण पर तनिक ध्यान देना हितकर होगा। प्राचीन काल में श्रद्धालु मन्दिर में प्रवेश करने से पहले प्रतीक्षा स्थल पर जमा होते थे और फिर पहले प्रवेश द्वार से गुज़रते थे जिसके तुरन्त बाद एक विशाल प्राँगण बना हुआ होता था। इस प्राँगण में यहूदी और ग़ैरयहूदी सभी का स्वागत किया जाता था। फिर दूसरे द्वार से यहूदी महिलाएँ प्रवेश करती थीं तथा तीसरे और अन्तिम द्वार से केवल यहूदी पुरुष ही प्रवेश पाते थे। इन तीनों द्वारों एवं प्राँगणों को पार कर लेने के बाद ही भक्त पवित्रतम पुण्यागार तक पहुँच पाता था। सन्त पौल का दावा है कि प्रभु येसु ख्रीस्त ने इन तीन प्रवेश द्वारों एवं प्राँगणों के बीच बने विभाजनों को भंग कर दिया था। गलातियों को प्रेषित पत्र के तीसरे अध्याय के 28 वें पद में सन्त पौल लिखते हैं, "अब न तो कोई यहूदी है और न यूनानी, न तो कोई दास है और न स्वतंत्र, न तो कोई पुरुष है और न स्त्री आप सब ईसा मसीह में एक हो गये हैं।"   

95 वें भजन में भजनकार लोगों को उपासना के लिये आमंत्रित करता है। यह एक इब्रानी गीत है जिसमें यहूदियों और ग़ैरयहूदियों सभी का आह्वान किया गया है कि वे सृष्टिकर्त्ता प्रभु ईश्वर की स्तुति करें। यह ऐसा भजन है जो मन्दिर की घंटियों अथवा गिरजाघर के घण्टों की आवाज़ में गूँजता हुआ लोगों को प्रभु ईश्वर के आदर में गीत गाने के लिये आमंत्रित करता है। "आओ!" शब्द एक आह्वान है, आमंत्रण है, प्रभु की स्तुति हेतु एक निमंत्रण है। भजनकार स्मरण दिलाता है कि प्रभु ईश्वर शक्तिशाली त्राणकर्त्ता हैं जिनका हम स्तुतिगान करें और जिनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया करें।"








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