2018-03-13 15:39:00

एक सच्चा ख्रीस्तीय जोखिम उठाता, वह प्रभु में आनन्द की खोज करता


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 13 मार्च 2018 (रेई)˸ एक सच्चा ख्रीस्तीय जोखिम उठाता है, वह सीमा के परे जाता तथा पहली बार मिलने वाली कृपा को प्राप्त कर रूक नहीं जाता, क्योंकि वह प्रभु के साथ रहने के आनन्द की खोज करता है। यह बात संत पापा फ्राँसिस ने सोमवार 12 मार्च को वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मर्था के प्रार्थनालय मे ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए प्रवचन में कही।

प्रवचन में संत पापा ने संत योहन रचित सुसमाचार से लिए गये पाठ पर चिंतन किया जहाँ एक पदाधिकारी गलीलिया में येसु से मुलाकात कर, उनसे अपने बीमार बच्चे को चंगा करने का आग्रह करता है।  

संत पापा ने कहा कि येसु यहाँ धीरज खोते हुए प्रतीत होते हैं क्योंकि लोगों के लिए केवल उनके चमत्कार महत्वपूर्ण थे। येसु ने लोगों से कहा,  ̎आप लोग चिन्ह और चमत्कार देखे बिना विश्वास नहीं करेंगे।̎ आप लोगों का विश्वास कहाँ है? संत पापा ने कहा, एक चमत्कार अथवा आश्चर्यपूर्ण कार्य देखकर यह कहना कि आप महान हैं आप ईश्वर हैं, जी हाँ, यह विश्वास की अभिव्यक्ति है किन्तु पर्याप्त नहीं क्योंकि यहाँ यह स्पष्ट है कि उनमें विश्वास तो है किन्तु यह आरम्भ मात्र है, जिसे बढ़ना चाहिए। संत पापा ने प्रश्न किया, क्या हममें ईश्वर को पाने की चाह है? क्योंकि इसी चाह में विश्वास है, ईश्वर को पाने, उनसे मुलाकात करने एवं उनके साथ हर्षित होने की चाह।   

संत पापा ने पहले पाठ की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा, "वह कौन सा महान चमत्कार है जिसको प्रभु ने सम्पन्न किया?" पहला पाठ जो नबी इसायस के ग्रंथ से लिया गया है इसकी व्याख्या करता है, "मैं एक नये आकाश एवं नई पृथ्वी की सृष्टि करता हूँ। मैंने उसकी सृष्टि की है ताकि तुम सदा के लिए आनन्द मना सको।"  संत पापा ने कहा कि प्रभु हमें अपने साथ रहने के आनन्द की अभिलाषा हेतु प्रेरित करते हैं। जब प्रभु हमारे जीवन से होकर गुजरते हैं और हममें चमत्कार करते हैं तब हम उसे महसूस करते हैं, उसके बाद यह वहीं समाप्त नहीं हो जाता बल्कि यहाँ हमारे लिए निमंत्रण है कि हम आगे बढ़ें, यात्रा को जारी रखें, ईश्वर के चेहरे की खोज करें। स्तोत्र कहता है, ̎ उनके आनन्द की खोज करें।̎   

संत पापा ने कहा कि इस प्रकार चमत्कार प्रारम्भ मात्र है। उन्होंने कहा कि उन ख्रीस्तीयों के बारे येसु क्या सोचेंगे जो पहली बार कृपा पाने के बाद रूक जाते हैं, जो यात्रा जारी नहीं रखते। उन्होंने ऐसे लोगों की तुलना उन लोगों से की जो भोजनालय जाते और पूर्ण भोजन परोसे जाने के पहले ही अल्प भोजन लेकर घर लौट जाते हैं। उन्हें मालूम ही नहीं रहता कि बाद में परोसा जाने वाला भोजन अधिक स्वादिष्ट है।

संत पापा ने कहा कि कई ख्रीस्तीय हैं जो रूक चुके हैं जो यात्रा में आगे नहीं बढ़ते। वे अपने दैनिक जीवन की चिंताओं में व्यस्त रहते हैं, जो अपने आप में ठीक है किन्तु वे नहीं बढ़ते। संत पापा ने ऐसे ख्रीस्तीयों को पार्क (गाड़ी रखने की जगह) किये गये ख्रीस्तीयों की संज्ञा दी। उन्होंने उन्हें पिंजरे में बंद कहा जो प्रभु के निमंत्रण की सुन्दरता की कल्पना में उड़ना नहीं जानते।  

संत पापा ने विश्वासियों को चिंतन हेतु प्रेरित करते हुए कहा, "मैं सचमुच क्या चाहता हूँ? क्या मैं वाकई में ईश्वर को पाना चाहता हूँ, उनके साथ रहने की चाह रखता हूँ? अथवा क्या मैं भयभीत हूँ? क्या मैं आरम्भ में प्राप्त कृपा से संतुष्ट हूँ अथवा क्या मैं उनके साथ भोज में प्रवेश करना चाहता हूँ।"

संत पापा ने प्रोत्साहन दिया कि हम प्रभु को पाने की चाह को बनाये रखें, आगे बढ़ना तथा जोखिम उठाना सीखें, क्योंकि एक सच्चा ख्रीस्तीय जोखिम उठाता है वह अपने आराम के क्षेत्र से बाहर निकलता है।








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