2018-03-12 11:17:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय- स्तोत्र ग्रन्थ, भजन 94 भाग-4


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें।

"प्रभु! धन्य है वह मनुष्य, जिसे तू सुधारता और अपनी संहिता की शिक्षा देता है!  वह संकट के समय नहीं घबराता, जब कि दुर्जन के लिये गड्ढा खोदा जा रहा है। प्रभु अपनी प्रजा का परित्याग नहीं करता; वह अपनी विरासत को नहीं त्यागता। धर्मी को न्याय दिलाया जायेगा और सभी निष्कपट लोग उसका समर्थन करेंगे।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 94 वें भजन के 12 से लेकर 15 तक के पद। विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत हमने इन्हीं पदों की व्याख्या की थी। प्रभु ईश्वर की न्याय प्रियता का बखान कर इस भजन में प्रार्थना की गई है। भजनकार दुष्ट लोगों को मूर्ख एवं निर्बुद्धि कहकर पुकारता है तथा उनका ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित कराता है कि प्रभु ईश्वर जिसने मनुष्य की सृष्टि की, बोलने के लिये उसे जिव्हा, सुनने के लिये कान और देखने के लिये आँख दी, क्या वे सबकुछ नहीं सुन सकते? सब कुछ नहीं देखते?  वस्तुतः, 94 वें भजन में याद दिलाया गया है कि प्रभु ईश्वर सर्वशक्तिमान्, सर्वव्यापी एवं अन्तरयामी हैं।

इस भजन का 12 वाँ पद दुष्ट अथवा कुकर्मों में संलग्न लोगों के लिये नहीं हैं अपितु ईश प्रजा के लिये कहे शब्द हैं। उन लोगों को धन्य कहा गया है जिन्होंने ईश्वर के आदेशों को समझ लिया है तथा उनका अपने जीवन पर अमल करते हुए ज़रूरतमन्दों की मदद करते हैं। ऐसे ही लोग धन्य हैं, ऐसे ही लोग प्रभु ईश्वर के कृपा पात्र होंगे। इस पद में भजनकार हम सबसे अपील करता है। उसका कहना है कि यदि हम स्वतः को ईश सन्तान स्वीकार करते हैं, स्वतः को ईश प्रजा के सदस्य मानते हैं और यह स्वीकार करते हैं कि प्रभु ईश्वर ने अपने प्रेम के ख़ातिर हमारी सृष्टि की तो हमें सब मनुष्यों का सम्मान करना चाहिये, चाहे वे किसी भी वर्ण, नस्ल, जाति अथवा रंग के ही क्यों न हों। ईश्वर संहिता में हमारे सहभागी हैं जो प्रेम में हमारे साथ बरकरार रहते हैं, ईश्वर हमारी पीड़ा का अनुभव करते हैं। इसीलिये जो लोग आँखें होते हुए भी नहीं देख पाते और कान होते हुए भी सुन नहीं पाते उन्हें मूर्ख कहा गया है।  यह स्मरण दिलाया गया है कि प्रभु ईश्वर का प्रेम और उनकी दया अपार है और अपनी दया के कारण ही वे हममें विवेक उत्पन्न करते हैं, इसीलिये भजनाकर कहता है, “प्रभु अपनी प्रजा का परित्याग नहीं करता; वह अपनी विरासत को नहीं त्यागता।“ ईश्वर हमें विवेकहीन नहीं छोड़ते, वे धर्मी को न्याय दिलाकर ही रहते हैं। अस्तु, मनुष्य वह ही करे जो प्रभु ईश्वर की इच्छा के अनुकूल है। "धर्मी को न्याय दिलाया जायेगा", इन शब्दों पर चिन्तन करते हुए हमने श्रोताओ का ध्यान बाईबिल व्याख्याकार बोनहोफ्फर के कथन पर आकर्षित किया था जो कहते हैं कि प्राचीन व्यवस्थान में न्याय पर बल दिया गया है। उस युग के लोग ऐसा न्याय चाहते थे जो उसी क्षण उनके समक्ष दिखे मानों अनन्त जीवन का कोई महत्व ही नहीं। इसके विपरीत ईश्वर का न्याय क्षणिक न होकर अनन्त है जो मनुष्य की चाहत के क्षण में नहीं अपितु उपयुक्त और उचित क्षण में प्रकट होता है। प्रभु येसु ने भी कहा है, "धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे"।  

आगे, 94 वें भजन के 16 से लेकर 19 तक के पद, "मेरे लिये उन दुष्टों का सामना कौन करेगा? उन कुकर्मियों के विरुद्ध मेरा पक्ष कौन लेगा? यदि प्रभु ने मेरी सहायता नहीं की होती, तो अधोलोक मेरा निवास बन गया होता। प्रभु! जब मुझे लगता था कि मेरे पैर फिलसने वाले हैं, तो तेरी सत्यप्रतिज्ञता मुझे संभालती थी। जब असंख्य चिन्ताएं मुझे घेरे रहती थीं, तो मुझे तेरी सान्तवना का सहारा मिलता था।"  

श्रोताओ, इन पदों में भजनकार अपने प्रथम प्रश्न पर फिर लौटता है और पूछता है कि दुर्जन कब तक आनन्द मनायेंगे? और गुहार लगाता हुआ कहता है, "प्रभु ईश्वर अपने आप को प्रकट कर।"  वह इस बात से परिचित है कि उसके हर कठिन क्षण में प्रभु ईश्वर उसकी शरण शिला, उसका स्तम्भ बने हैं, मनुष्यों के प्रति अपने प्रेम के ख़ातिर प्रभु ईश्वर सदैव धर्मियोंकी रक्षा करते रहे हैं। इसीलिये कहता है, "यदि प्रभु ने मेरी सहायता नहीं की होती, तो अधोलोक मेरा निवास बन गया होता।" प्रभु ने यदि मुझ पापी पर दया नहीं की होती तो मैं कहीं का नहीं रहता क्योंकि कहता, "जब मुझे लगता था कि मेरे पैर फिलसने वाले हैं, तो तेरी सत्यप्रतिज्ञता मुझे संभालती थी। जब असंख्य चिन्ताएं मुझे घेरे रहती थीं, तो मुझे तेरी सान्तवना का सहारा मिलता था।" और यह सान्तवना मुझे कब्र में जाकर नहीं अपितु उसी भूमि पर मिलती थी जहाँ मैं निवास करता था। उस भूमि पर जब मुझे लगता था कि मेरी आवाज़ प्रभु ईश्वर तक पहुँच ही नहीं पा रही थी। इसके विपरीत, अब मुझे विश्वास हो गया है कि जब मैं चिन्ताओं में डूबा रहता हूँ तब प्रभु तू मेरी सान्तवना और मेरी आधार शिला बनता है।

और फिर भजन के 20 वें पद में प्रभु ईश्वर से प्रश्न कर पूछता है, "क्या अन्याय की सांठगाँठ तेरे साथ हो सकती है, जहाँ विधि की आड़ में जनता पर भार डाला जाता है?" श्रोताओ, ईश्वर ने उनकी जीवन्त योजना को संहिता में प्रकट किया है। यह है प्रभु ईश्वर के वे नियम जिन्हें उन्होंने नबी मूसा के द्वारा चट्टान पर खुदे शब्दों में हमें दिया है, अर्थात् ईश्वर के दस हुक्म। ये हुक्म, ये आदेश, ये नियम उसी प्रकार अपरिवर्तनीय हैं जिस प्रकार ईश्वर अपरिवर्तनीय हैं। विधि-विवरण ग्रन्थ के 12 वें अध्याय में इन नियमों के बारे में ईश्वर कहते हैं, "जब तक तुम इस पृथ्वी पर जीवित रहोगे, तब तक तुम प्रभु, अपने पूर्वजों के ईश्वर द्वारा अपने अधिकार में दिये गये उस देश में इन आदेशों और विधियों का सावधानी से पालन करोगे।" प्राचीन व्यवस्थान के निर्गमन ग्रन्थ के 20 वें अध्याय में निहित प्रभु ईश्वर के इन आदेशों का पालन युगयुगान्तर तक के लोगों का दायित्व है क्योंकि इन्हीं आदेशों का पालन कर हम अपने मध्य न्याय एवं शांति की स्थापना में सफल हो सकेंगे। ईश्वर की दस आज्ञाएँ हैं, "मैं प्रभु, तुम्हारा ईश्वर हूँ। मेरे सिवा तुम्हारा कोई ईश्वर नहीं होगा। प्रभु, अपने ईश्वर का नाम व्यर्थ न लो। विश्राम दिवस को पवित्र मानो। अपने मात-पिता का आदर करो। हत्या मत करो। व्यभिचार मत करो। चोरी मत करो। अपने पड़ोसी के विरुद्ध झूठी गवाही मत दो। अपने पड़ोसी के घर-बार का लालच मत करो। अपने पड़ोसी की पत्नी  और उसकी किसी चीज़ का लालच मत करो।" 








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