2018-03-08 14:35:00

शिकायत के बदले प्रेम करने का साहस करें, पापा फ्राँसिस


वाटिकन सिटी, गुरुवार, 08 मार्च 2018 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने विख्यात मनोचिकित्सक साल्भो नोए की पुस्तिका “फोरविडन टू कमप्लेन” आर्थात “शिकायत की मनाही” के लिए प्रस्तावना लिखी।
"हमारे समय" की विशेषता "अनिश्चितता और कमजोरी" है,  हमारे आंतरिक घावों के कारण हम यह अक्सर भूल जाते हैं कि  "पाप और विसंगति" के बावजूद, हम पिता द्वारा प्रेम किये जाते हैं। उक्त पक्तियाँ संत पापा फ्राँसिस ने”फोरबिडन टू कमप्लेन” के लिए प्रस्तावना स्वरूप लिखी। 

अपने आप पर विलाप

संत पापा फ्राँसिस ने लेखक की इस बात पर जोर देते हुए लिखा कि यह पुस्तिका हमारे लिए “कठिनाइयों और अप्रत्याशित शिकायतों के जाल में पड़ने से बचने के उपाय” निर्देशित करती है। जीवन के विचार हमारे विश्वास को प्रभावित करता है ”यह हमारे वर्तमान समय और जीवन को प्रभावित करता है।” हमारे लिए मुख्य बात यह है कि हम अपने जीवन को “अतीत में घटित हुई किसी प्रकार की दुःखदायी घटना से प्रभावित न होने दें” वरन “हम अपने जीवन की सच्चाई को स्वीकारते हुए हृदय में एक नये संबंध की स्थापना करें” क्योंकि “प्रेम हमारी आंखें” और “आलिंगन हमारा हृदय खोलता है।”
शिकायतें नयी संबंध की शुरुआत

हमारे विचार और शब्द जो हमारे हृदय को चोट पहुंचते हैं जैसे कि दूसरों की और अपनी शिकायतें। दूसरी ओर ईश्वर को की गयी हमारी शिकायतें जिससे धर्मग्रंथ भरा हुआ है, “हमें एक संबंध में प्रवेश करने हेतु मदद करती है, यह प्रार्थना स्वरुप हमारे हृदय की गहराई से निकलती जो हमें चंगाई प्रदान करती है।” संत पापा फ्राँसिस ने लिखा,“अपने को पाने का अर्थ है, ईश्वर के हाथों में अपने को सुपुर्द करना”, जहाँ ईश्वर हमारे साथ चलते “वे धैर्यपूर्वक हमारा मार्ग प्रदर्शन करते हैं।” येसु ख्रीस्त हमें यह बतलाते हैं कि विषम परिस्थितियों में हमें कैसे चलने की जरूरत है, अपने जीवन को पूर्ण रूपेण कैसे जीना है, हमें अपने जीवन की “शिकायतों और “निराशा” के क्षणों से कैसे बाहर निकलना है।
हमारे हृदय में धूल और जंग
संत पापा फ्रांसिस अपनी प्रस्तावना में लिखते हैं कि हममें से कोई भी अपने में “शक्तिशाली” नहीं है वरन जीवन के मार्ग में हम सभी व्यक्तिगत रुप से ईश्वर द्वारा “प्रेम किये जाते हैं जो हमारे जीवन के दर्द भरे क्षणों को मधुर संगीत में बदलाना जानते हैं।” यह हमारे लिए असंभव है कि हम अपने “हृदय के धूल-गर्दे और जंग लगी हुई स्थिति को पहचान सकें”, लेकिन ईश्वर से हमारी मुलाकात नवीनता हेतु हमें खोलती है। “सिर्फ प्रेम हममें साहस भरता और जीवन को आशा में एक भव्य भवन स्वरुप स्थापित करता है।"

प्रेम और आश में हमारा निर्माण

“हमारे जीवन में ईश्वर की उपस्थिति हमें अपने घावों के गर्त और दुःखों से बाहर निकालती है।” यह हमें जीवन का चुनाव करने, दूसरों को देखने, हर दिन को एक नये अवसर के रुप में स्वागत करने, शिकायतों से दूर रहने, दूसरों की आलोचना के जहर से बचे रहने और अपने हृदय में क्रोध की भावना से बाहर निकले को मदद करती है। संत पापा फ्रांसिस ने अपनी प्रस्तावना के अंत में लिखा, ”यह केवल प्रेम है” जो हमारे “जीवन के खालीपन को भरता”, हमें “सुख-चैन” प्रदान करता, हममें “साहस का संचार करता और हमारे जीवन को आशा में एक विशाल भवन का रुप प्रदान करता है।”








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