2018-02-27 10:46:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय- स्तोत्र ग्रन्थ, भजन 94


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें।

"प्रभु! प्रतिशोधी ईश्वर, अपने को प्रकट कर। पृथ्वी के न्यायकर्त्ता! उठ कर घमण्डियों से उनके कर्मों का बदला चुका। प्रभु दुर्जन कब तक, दुर्जन कब तक आनन्द मनायेंगे? वे धृष्टतापूर्ण बातें करते हैं। वे सब कुकर्मी डींग मारते हैं। प्रभु! वे तेरी प्रजा को पीसते और तेरी विरासत पर अत्याचार करते हैं। वे विधवाओं तथा परदेशियों की हत्या और अनाथों का वध करते हैं। वे कहते हैं: "प्रभु नहीं देखता, याकूब का ईश्वर उस पर ध्यान नहीं देता।" 

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 94 वें भजन के प्रथम सात पद। विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत हमने इन्हीं पदों की व्याख्या की थी। 24 पदों वाले इस भजन में प्रभु ईश्वर की न्याय प्रियता का बखान किया गया है। इस भजन में प्रार्थना की गई है कि प्रभु दुर्जनों और दुष्टों को दण्डित कर अपने न्याय को प्रकट करें। उक्त पदों में भजनकार प्रभु ईश्वर को प्रतिशोधी ईश्वर कहकर पुकारता है जबकि ईश्वर प्रतिशोध नहीं लेते। ईश्वर दयालु पिता है, वे प्रेमी पिता हैं वे न तो प्रतिशोध लेते और न ही दण्ड देना चाहते हैं। भजनकार दुर्जनों के कुकर्मों से तंग आकर चाहता है कि प्रभु उनके अत्याचारों के लिये उनसे बदला लें तथा उन्हें दण्डित करें।

भजनकार याद दिलाता है कि ईश्वर में भरोसा रखनेवाले सभी लोग ईश्वर की विरासत हैं और ईश्वर की विरासत पर हमला करनेवालों को दण्ड मिलना ही चाहिये। उन्हें इसलिये दण्ड मिलना चाहिये क्योंकि वे समाज के सर्वाधिक दुर्बल लोगों जैसे कि विधवाओं और परदेशियों पर आक्रमण करते तथा अनाथों का वध करते हैं। उन मासूम बच्चों को मार डालते हैं जिनका कोई आसरा नहीं होता। भजनकार ने हम सबका ध्यान समाज के दुर्बल सदस्यों के प्रति आकर्षित कराते हुए स्मरण दिलाया है कि इन दुर्बलों की सुरक्षा को सुनिश्चित्त करना हम सबका दायित्व होना चाहिये। एक प्रकार से भजनकार यहाँ शिकायत करता है कि घमण्डी, दुष्ट और दुर्जन अपने दुष्कर्मों में लगे रहते हैं और ईश्वर उन्हें दण्डित करने के लिये कुछ नहीं करते। वह चाहता है कि अनाथ बच्चों की उचित परवरिश हो सके, विधवाओं को जीवन यापन का सहारा मिल सके और तथा परदेशियों को विदेशों में प्रतिष्ठापूर्ण जीवन यापन का मौका मिल सके। इसीलिये प्रभु ईश्वर से आर्त निवेदन कर, कहता है कि प्रभु, उठें और अपना न्याय प्रकट करें।

अब आइये स्तोत्र ग्रन्थ के 94 वें भजन के आठ से लेकर 11 तक के पदों पर दृष्टिपात करें। इन पदों में भजनकार दुष्टों से कहता है कि वे इस भ्रम में न पड़े कि प्रभु ईश्वर उनके कुकर्मों से वाकिफ़ नहीं हैं क्योंकि प्रभु सबकुछ को देखते तथा प्रत्येक के विचार जानते हैं। ये पद इस प्रकार हैं, "निर्बुद्धियों सावधान रहो। मूर्खों! तुम कब समझोगो? जिसने कान बनाया, क्या वह नहीं सुनता? जिसने आँख बनायी, क्या वह नहीं देखता? जो राष्ट्रों का शासन करता है, क्या वह दण्ड नहीं देता? जो मनुष्यों को शिक्षा देता है, क्या वह नहीं जानता? प्रभु मनुष्यों के विचार जानता है; वह जानता है कि वे व्यर्थ हैं।"

श्रोताओ, भजन के इन पदों में हम ईश्वर के प्रत्युत्तर को पाते हैं। दुष्ट कर्मों में लगे लोगों को याद दिलाया गया है कि प्रभु ईश्वर सर्वशक्तिमान्, सर्वव्यापी एवं अन्तरयामी हैं। उनकी इच्छा के बग़ैर धरती पर कोई पत्ता तक नहीं हिलता इसलिये बुराई में संलग्न लोग इस भ्रम में न पड़ें कि प्रभु ईश्वर नहीं सुनते और न ही देखते हैं। भजनकार मानों कहता है कि दुष्ट लोग मूर्ख हैं, उनके पास बुद्धि नहीं है  क्योंकि यदि वे मूर्ख नहीं होते और उनके पास बुद्धि होती तो वे यह समझ पाते कि जिसने सुनने के लिये कान और देखने के लिये आँखें बनायी है वह सबकुछ को देख सकता है। नवीन व्यवस्थान पर यदि ग़ौर करें तो हम इन शब्दों को सुसमाचारों में भी पाते हैं। एम्माऊस के रास्ते पर जाते शिष्यों को आपस में येसु के पुनःरुत्थान के बारे में बातें करते सुन पुनर्जिवित प्रभु येसु ख्रीस्त ने जो कहा था उसे हम सन्त लूकस रचित सुसमाचार के 24 वें अध्याय के 25 वें और 26 पदों में पाते हैं, येसु कहते हैं, "निर्बुद्धियो! नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम उस पर विश्वास करने में कितने मन्दगति हो। क्या यह आवश्यक नहीं था कि मसीह वह सब सहें और इस प्रकार अपनी महिमा में प्रवेश करें?"  येसु मसीह द्वारा उच्चरित ये शब्द 94 वें भजन के सदृश ही हैं जिनमें येसु अविश्वासी शिष्यों को मन्द बुद्धि वाले कहकर पुकारते हैं।

श्रोताओ, कहने का सार यह कि जो लोग ईश्वर के कार्यों पर विश्वास नहीं करते अथवा उनके कार्यों को देखने असमर्थ रहते हैं उनमें ज्ञान का अभाव है। इसी प्रकार जो लोग यह सोचकर कि ईश्वर हमारे कार्यों को देखने और सुनने में असमर्थ हैं बुराई में लगे रहते हैं तथा समाज के कमज़ोर वर्ग पर अत्याचार किये चले जाते हैं वे भी निर्बुद्धि अथवा मन्द बुद्धि वाले एवं मूर्ख हैं। भजनकार इस तथ्य की पुनरावृत्ति करता है कि ईश्वर के आगे मनुष्यों के विचार श्वास मात्र हैं, मनुष्यों के विचार व्यर्थ हैं। भजनकार कहता है, "जो राष्ट्रों का शासन करता है, क्या वह दण्ड नहीं देता? जो मनुष्यों को शिक्षा देता है, क्या वह नहीं जानता? "।

श्रोताओ, हम विश्वास करते हैं कि ईश्वर ने सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की और उसकी देख-रेख के लिये मनुष्यों का सृजन किया। वे सम्पूर्ण धरती के राष्ट्रों पर शासन करते हैं, वे मनुष्यों को शिक्षा देते हैं कि वे अपना जीवन किस तरह यापन करें, वे किस तरह अपना पालन पोषण करें, किस तरह अपनी जीविका कमायें तथा प्रभु के आदेशों पर चलते हुए जीवन पथ पर आगे बढ़ते रहें। भजन के 12 वें पद में भजनकार कहता है, "प्रभु! धन्य है वह मनुष्य, जिसे तू सुधारता और अपनी संहिता की शिक्षा देता है!" यह पद दुष्ट अथवा कुकर्मों में संलग्न लोगों के लिये नहीं हैं अपितु ईश प्रजा के लिये कहे शब्द हैं। उन लोगों को धन्य कहा गया है जिन्होंने ईश्वर के आदेशों को समझ लिया है तथा उनका अपने जीवन पर अमल करते हुए अनाथों, विधवाओं एवं परदेशियों की मदद का बीड़ा उठाते हैं, ऐसे ही लोग धन्य हैं, ऐसे ही लोग प्रभु ईश्वर के कृपा पात्र होंगे। 

 








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