2018-02-14 15:04:00

धर्मसार और विश्वासियों के निवेदन प्रार्थना पर धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार,14  फरवरी 2018 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व के विभिन्न देशों से एकत्रित हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को पवित्र यूखारिस्त बलिदान के दौरान शब्द समारोह के उपरान्त धर्मसार और विश्वासियों के निवेदन प्रार्थना पर अपनी धर्मशिक्षा देते हुए कहा,

प्रिय भाइओ एवं बहनों, सुप्रभात।

बाईबल पाठ उपरान्त उपदेश हमारे लिए ईश्वर के वचनों को एक अमोल निधि स्वरूप लेकर आता है। ईश्वर अपने वचनों के द्वारा हम पुरोहितों और विश्वासियों, सभों के लिए अपना संदेश देते हैं। हम जो यूखारिस्त में सम्मिलित होते हैं, हम किसी भी उम्र और अपने जीवन के किसी भी परिस्थिति में क्यों न हों ईश्वर हम सभों के हृदय द्वारा को खटखटाते हैं। ईश्वर के वचन हमें सांत्वना प्रदान करते हैं, हमारे जीवन को नया बनाते और हमें मेल-मिलाप हेतु निमंत्रण देते हैं जिससे हम नये जीवन की शुरूआत कर सकें।

इस भांति उपदेश के उपरान्त, संत पापा ने कहा कि हमारे लिए एक मौन धारण का समय होता है जो ईश्वर के वचनों को हमारे हृदयों में बीज की भाँति ग्रहण करने में मददगार सिद्ध होता है। यह इसीलिए कि इसके द्वारा पवित्र आत्मा हमारे हृदयों में अपने वरदानों को भरना चाहते हैं।

मौन धारण के बाद हम कलीसिया के विश्वास को हम सभी व्यक्तिगत रुप में व्यक्त करते हैं। हमारे विश्वास की यह अभिव्यक्ति “धर्मसार” के रुप में पूरे समुदाय द्वारा घोषित की जाती है जो सामुदायिक रुप में ईश्वर के सुनाये गये वचनों के प्रति हमारे प्रतिउत्तर को व्यक्त करता है। संत पापा ने कहा कि यह हमारे लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी है जो सुनने और हमारे विश्वास को जोड़ने का कार्य करता है। वास्तव में यह हमारे मन की उपज नहीं है, लेकिन जैसे कि संत पौलुस करते हैं, “इसकी उत्पति ईश्वर के वचनों को सुनने से होती है और सुनना येसु ख्रीस्त के वचनों को सम्मान देना है।” इस तरह हमारा विश्वास ईश्वर के वचनों को सुनने के द्वारा पोषित होता है और यह हमें संस्कार की ओर अग्रसित करता है। अतः धर्मसार की अभिव्यक्ति का अर्थ विश्वासी समुदाय द्वारा विश्वास के रहस्य पर चिंतन करना है जो हमें मिस्सा बलिदान अर्पित करने हेतु तैयार करता है।

संत पापा ने कहा कि यूखारिस्तीय बलिदान हमें अपने बपतिस्मा संस्कार से संयुक्त करता है जिसे हमने पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा ईश्वर के नाम पर ग्रहण किया है, जो हमें इस बात कि याद दिलाती है कि संस्कारों को हम कलीसियाई विश्वास के आधार पर समझ सकते हैं।

ईश्वर के सुने वचनों का प्रतिउत्तर विश्वास में हमारे निवेदन प्रार्थनाओं द्वारा होती है जिसे हम “वैश्विक प्रार्थना” की संज्ञा देते हैं क्योंकि यह कलीसिया और विश्व के सभी आवश्यकताओं को अपने में अंगीकृत करता है। यह विश्वासियों की प्रार्थना भी कहलाती है। 

वाटिकन द्वितीय महासभा के आचार्यों ने इस प्रार्थना को प्रवचन के उपरान्त यथावत रखना चाहा विशेषकर रविवार और महोत्सवों के अवसर पर जिससे विश्वासियों की सहभागिता द्वारा पवित्र कलीसिया के अलावे हमारा मार्गदर्शन करने वालों, विभिन्न आवश्यकताओं में पड़े लोगों, सभी विश्वासियों और विश्व की मुक्ति हेतु प्रार्थना अर्पित की जा सके। इस तरह पुरोहित इसकी अगवाई और इसकी समाप्ति करते हैं। वहीं विश्वासी बपतिस्मा द्वारा प्राप्त अपने पुरोहितिक अधिकार का उपयोग करते हुए सभों की मुक्ति हेतु ईश्वर को अपनी निवेदन प्रार्थनाएं अर्पित करते हैं। हर एक व्यक्तिगत निवेदन प्रार्थना के बाद जिसे उपयाजक या विश्वासी चढ़ता है, पूरा समुदाय एक स्वर में ईश्वर से निवेदन करते हुए कहता है, “हे प्रभु हमारी प्रार्थना सुन” या इसी के समरूप कोई अन्य प्रार्थना उच्चरित की जाती है। यह वह प्रार्थना है जिसे विश्वासी बड़े भरोसे के साथ ईश्वर को चढ़ाते हैं। संत पापा ने कहा कि हमें बड़े ही विश्वास के साथ इस प्रार्थना को करना चाहिए जैसे कि हम इसे सुसमाचार में सुनते हैं। हमारे विश्वास के कारण ईश्वर हमारी माँगों को पूरा करते हैं।                           
संत पापा ने कहा कि वास्तव में हम येसु के उन वचनों की याद करें, “यदि तुम मुझ में रहो और मेरी शिक्षा तुम में बनती रहती है, तो चाहे जो मांगो, वह तुम्हें दिया जायेगा।” (यो.15, 7) हमारी वे मांगें जो हमें स्वर्ग की ओर अग्रसर नहीं करती वरन हमारे व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु होती हैं ईश्वर के द्वारा नहीं सुनी जाती हैं। विश्वासीगण जिन्हें प्रार्थना हेतु निमंत्रण दिया जाता है उन्हें कलीसिया की सामुदायिकता और विश्व हेतु प्रार्थना करने की आवश्यकता है। उन्हें परंपरागत सूत्र और संकीर्ण सोच की प्रार्थना से अपने को दूर रखने की जरूरत है। “वैश्विक” प्रार्थना जो शब्द समारोह का अंतिम भाग है हमें ईश्वर की इच्छा को अपनी इच्छा बनाने की मांग करता है, जो अपने बच्चों की सुधि लेते हैं।
इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और विश्व के विभिन्न देशों से आये सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन किया। उन्होंने विशेष रुप से युवाओं, रोगग्रस्त और नव विवाहितों का अभिवादन किया। संत पापा ने कहा कि आज राख बुध के साथ हम चालीसा काल की शुरूआत करते हैं। प्रिय युवाओ मैं आप से निवेदन करता हूँ कि आप इस कृपा के समय पिता के प्रेम में लौटें जो अपनी बाहों को खुला रखते हुए आप का इंतजार करते हैं। रोगग्रस्त विश्वासियों आप अपने जीवन के दुःखों को उनके मन फिराव हेतु अर्पित करें जो विश्वास से दूर हो गये हैं। और नव विवाहितों मैं आप को निमंत्रण देता हूँ कि आप अपने वैवाहिक जीवन, नये परिवार की नींव ईश्वर के प्रेम में स्थापित करें।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने सभी परिवारों पर येसु ख्रीस्त की शांति और खुशी की कामना की और सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 








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