2018-01-24 15:06:00

पेरू और चिली की प्रेरितिक यात्रा का संक्षिप्त विवरण


वाटिकन सिटी, बुधवार, 24 जनवरी 2018 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों को अपनी पेरू और चिली की प्रेरितिक यात्रा का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा,

प्रिय भाई एवं बहनों, सुप्रभात।

मैं चिली और पेरू की अपनी प्रेरितिक यात्रा पूरी कर दो दिन पहले वापस आया हूँ। मैं ईश्वर का धन्यवाद करता हूँ कि सारी चीजें विधिवत संपन्न हुईं। प्रेरितिक यात्रा के दौरान मैंने दोनो देशों में ईश्वर के लोगों से मुलाकात की और उन्हें देश के सामाजिक विकास हेतु प्रोत्साहन भरे शब्दों से संबोधित किया। मैं दोनो देशों के सरकारी अधिकारियों, धर्माध्यक्षों और सभी सहयोगियों एवं स्वयंसेवियों का शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने बड़ी उदारता और गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया।

मेरे चिली पहुंचने के पूर्व विभिन्न कारणों से कई तरह के प्रदर्शन हुए। इस विरोध प्रदर्शन ने मेरी यात्रा के आदर्श वाक्य को और भी ज्वलंत और सजीव बना दिया। “मैं तुम्हें अपनी शांति प्रदान करता हूँ।” संत पापा ने कहा कि ये येसु ख्रीस्त के शब्द हैं जिसे उन्होंने अपने शिष्यों से कहा था, जिसे हम प्रतिदिन मिस्सा बलिदान में दुहराते हैं। शांति का यह उपहार जिसे येसु अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान के द्वारा प्रदान करते, उन्हें प्राप्त होता है जो उन पर विश्वास करते हुए अपने को उन्हें सौंप देते हैं।

चिली के नेताओं और अधिकारियों से अपनी मुलाकात के दौरान मैंने उन्हें देश की गणतंत्रता के मार्ग का अनुसार करने को प्रोत्साहित किया। इस संदर्भ में मैंने उन्हें विभिन्न लोगों को सुनने की बात कही विशेष कर जो गरीब हैं, युवा, बुजुर्ग और देश में अप्रवासी हैं, इसके साथ ही मैंने उन्हें पृथ्वी की पुकार को सुनने का आह्वान किया।

शांति और न्याय की स्थापना हेतु अर्पित मिस्सा बलिदान का मुख्य बिन्दु आशीर्वचनों में से एक था,“धन्य हैं वे जो मेल-मिलाप कराते हैं वे ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।” (मत्ती.5.9) यहाँ हमने ईश्वरीय आशीष की अनुभूति की जिसके फलस्वरूप देश, कलीसिया और पूरे समाज में एकता, भाईचारा और सहिष्णुता की भावना पनपती है।

अपनी एकता की इस शैली में शब्दों का महत्व बहुत अधिक है जिसके फलस्वरूप मैंने संत्यागो में महिला कारागार की भेंट की। कैदखाने में महिला कैदियों के वे चेहरे जहाँ कई युवा माताएं थी जिनके हाथों में उनके नवजात शिशु थे जो बहुत सारी बातों के बावजूद आशा को व्यक्त कर रहे थे। मैंने उन्हें इस बात हेतु प्रोत्साहित किया कि वे पुनःस्थापना की माँग करें जो उनके प्रतिदिन की सज़ा को एक तरह से अर्थपूर्ण बनाता है।

चिली के पुरोहितों और धर्माध्यक्षों से अपनी मुलाकात के दौरान मैंने देश और कलीसिया के मध्य तकरार के कारण उत्पन्न घावों का अनुभव किया। इस संदर्भ में मैंने अपने भाइयों को इस बात पर बल दिया कि वे नबालिकों पर होने वाले अत्याचार के विरूद्ध किसी तरह का समझौता न करें, साथ ही, ईश्वर पर अपना भरोसा अडिग बनाये रखें जो कि हमारे जीवन की कठिन परिस्थितियों में हमें परिशुद्ध करते और हमें अपने कार्य हेतु नवीन बनाते हैं।

चिली के अन्य दो ख्रीस्तयाग उत्तरी और दक्षिणी भागों में अर्पित किये गये। दक्षिण का अरौकानिया प्रान्त जहाँ मापुचे भारतीय निवास करते हैं, आनन्द और खुशी में बदल गई क्योंकि उन्होंने हिंसा को नकारते हुए अपनी विविधता को बरकरार रखने हेतु अपने प्रान्त में शांति स्थापना की माँग की। जबकि समुद्र और मरुभूमि के मध्य स्थिति उत्तरी इक्कीक का प्रांत लोगों के मिलन में एक संगीत बन गया जो कि लोगों की बहु प्रचलित धार्मिकता में व्यक्त किया गया।

युवाओं और चिली के काथलिक महाविद्यालय से मेरी मुलाकात ने युवाओं में नई पीढ़ी की चुनौतियों का सामना करने हेतु नये जोश और उमंग से भर दिया। मैंने युवाओं को संत अल्बर्ट हुटाडो के शब्दों से संबोधित किया, “मेरे स्थान पर ख्रीस्त क्या करते”ॽ मैंने महाविद्यालय में विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के नमूने पर बल दिया जो कि ख्रीस्तीयता की पहचान पेश करता और मानव समाज के निर्माण हेतु हमारा आह्वान करता है जहाँ हमारे बीच आपसी तकरार छिपे नहीं रहते वरन हम उसका समाधान वार्ता के द्वारा खोज निकालते हैं।

संत पापा ने कहा कि पेरु की यात्रा का आदर्श वाक्य, “आशा में हमारी एकता” था। हमारी एकता एकरूपता की शुष्कता में नहीं वरन हमारे इतिहास और संस्कृति की विभिन्नता में है जो अपने में बहुमूल्य है। पेरू अमाजोन के लोगों से साथ मुलाकात इसकी निशानी रही जो पैन-अमाजोन धर्म सभा की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता है जिसका अयोजन सन् 2019 में होने वाला है। हमने एक साथ मिलाकर अर्थव्यवस्था और वैचारिक उपनिवेश को “न” कहा।

पेरु के राजनेताओं और अधिकारियों से वार्ता के दौरान मैंने देश के पर्यावरण, संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत की सराहना की और दो बातों पर बल दिया जो देश के लिए घातक है, पर्यावरण-समाज का क्षय और भ्रष्टाचार। संत पापा ने कहा कि हम सभी इससे अछूते नहीं हैं अतः हमें इसका सामना करने हेतु निष्ठावान होने की जरूरत है।

पेरु में हमने त्रुहिलो शहर के निकट, समुद्री तट पर प्रथम ख्रीस्तयाग अर्पित किया जहाँ की आबादी पिछले साल “एल नीनी कासतियेरो” नामक तूफान से प्रभावित हुई थी। मैंने वहाँ के लोगों को न केवल समुद्री तूफान का समाना करने को प्रेरित किया वरन शिक्षा की कमी, श्रम और सुरक्षित निवास के संदर्भ में भी सजग रहने हेतु आह्वान किया। संत पापा ने कहा कि मैंने त्रुहिलो में पुरोहितों और समर्पित लोगों से भेंट की जिन्होंने अपने बुलाहट जीवन और कलीसिया की एकता हेतु अपने प्रेरिताई की खुशी को साझा किया। संत पापा ने उनसे कहा कि वे अपने अतीत की यादों में सुदृढ़ रहते हुए अपने विश्वास में मजबूत रहें। त्रुहिल्लो में माता मरियम का समारोह संपन्न हुआ जहाँ मैंने माता मरियम को “दया और आशा की माता” घोषित किया।

मेरी प्रेरितिक यात्रा का अंतिम दिन रविवार को लीमा में, आध्यात्मिक गहराई और कलीसियाई विशिष्टता में  संपन्न हुई। पेरु के तीर्थस्थल पर जहाँ “चमत्कारी येसु” के चित्र की आराधना की जाती है मैंने 500 मठवासी धर्मसंघियों से मुलाकात की जो अपने विश्वास और प्रार्थना के कारण कलीसिया और समाज के “फेफड़े” हैं। संत पापा ने कहा कि महागिरजाघर में मैंने पेरु के संतों की मध्यस्था द्वारा एक विशेष प्रार्थना की और पेरू के धर्माध्यक्षों से मुलाकात करते हुए उन्हें संत तोरिबियो दी मोग्रोभेजो का अनुसरण करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि मैंने पेरू के युवा संतों की ओर उनका ध्यान आकर्षित कराया जिन्होंने विश्वास के साथ येसु का अनुसरण किया। संत पापा ने कहा कि सुसमाचार के शब्द पेरु और चिली के विश्वासियों हेतु सटीक बैठती है जो मिस्सा के अंतिम भाग में येसु के संदेश को ठोस रुप में प्रस्तुत करता है, “पश्चाताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो।” (मती. 1.15) संत पापा ने कहा कि येसु हमें यह कहते हैं कि मैं तुम्हें अपनी शांति प्रदान करता हूँ जिससे तुम मेरी आशा में बने रहो। 








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