2018-01-10 15:24:00

भारतीय दलितों ने हिंदू कट्टरपंथियों के श्रेष्ठ विचारधाराओं को चुनौती दी


नई दिल्ली, बुधवार 10 जनवरी 2018 (उकान) : भारतीय दलितों ने  कट्टर हिंदू समूहों के श्रेष्ठ विचारधाराओं को चुनौती दी है। जिन्होंने 1 जनवरी को 19वीं सदी में उनके ऊपरी जाति के सरदारों के खिलाफ विजय का जश्न मनाते वक्त हुए हमले को हिंदू कट्टरवाद को जिम्मेदार ठहराया है।

जनवरी के शुरू में पश्चिम महाराष्ट्र राज्य के कई हिस्सों में दलितों और उच्च जाति के मराठों के बीच हिंसक झड़पों की एक श्रृंखलाबद्ध सूचना मिली।

एक जनवरी को स्थानीय शासकों और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं के बीच 1818 की लड़ाई की शताब्दी का जश्न मनाते समय दलित लोगों पर हमले हुए जिसमें एक व्यक्ति की मौत हुई और सौ से भी अधिक घायल हो गये।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार भगवा ध्वज वाले कट्टर हिंदू समूहों ने दलितों पर पत्थराव किया और उन्हें जवाबी कार्रवाई करने के लिए प्रेरित किया।

इस संघर्ष में, बसों और पुलिस के वाहनों के साथ-साथ निजी वाहनों सहित 30 से अधिक वाहनों को आग लगा दी गई या क्षतिग्रस्त हो गई। 28 वर्षीय राहुल फतगाले को पत्थर लगने की वजह मौत हो गई।

काथलिक नेता जोसेफ डायस ने कहा,"यह एक बहुत खतरनाक प्रवृत्ति है क्योंकि हम 1947 की ओर पीछे लौट रहे हैं जब जाति और पंथ ने देश को विभाजित किया था।" यह चौंकाने वाली बात है कि 100 साल जो पहले हुआ था वह अभी भी संघर्ष का कारण बना है।″

पत्रकार साकिब सलीम ने एक टिप्पणी में कहा कि दलित लोगों को भारत के पूर्व ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों के समर्थकों के रूप में देखा गया और इसी कारण हिंसा शुरु हुई।

भारतीय धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के दलित और अदिवासियों के लिए बने कार्यालय के सचिव फादर जेड. देवसहाय राज ने कहा कि हमला वर्षों-पुरानी धारणा के कारण हुई जिसके अनुसार दलितों को ऊपरी जाति के हिंदुओं का दास होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऊपरी जाति के हिंदू समूह यह स्वीकार नहीं कर सकते कि दलित लोग अपने अधिकारों की मांग करें।








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