वाटिकन सिटी, बुधवार, 3 जनवरी 2018 (रेई): संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन स्थित पौल षष्ठम सभागार में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को “पवित्र यूखरिस्त में पश्चाताप की धर्मविधि”पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ाते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।
"आप मेरी बातों पर विचार करें। क्या आशीष का प्याला जिसपर हम आशीष की प्रार्थना पढ़ते हैं हमें मसीह के रक्त का सहभागी नहीं बनाता? क्या वह रोटी जिसे हम तोड़ते हैं हमें मसीह के शरीर का सहभागी नहीं बनाती? रोटी तो एक ही है इसलिए हम अनेक होते हुए भी एक हैं क्योंकि हम एक ही रोटी के सहभागी हैं।" (1कोरि.15-17)
संत पापा ने कहा, "पवित्र यूखरिस्त पर धर्मशिक्षा माला को पुनः लेते हुए आज हम परिचय की रीति की पृष्ठभूमि पर पश्चाताप की धर्मविधि पर चिंतन करेंगे। अपने संयम में, यह उस मनोभाव का समर्थन करता है जिससे कि व्यक्ति योग्य रीति से पवित्र रहस्यों को मना सके, जो है ईश्वर एवं अपने भाई बहनों के सम्मुख अपने पापों को स्वीकार करना। वास्तव में, पुरोहित का निमंत्रण प्रार्थना में पूरे समुदाय का सम्बोधन है क्योंकि हम सब पापी हैं। उन लोगों को प्रभु क्या दे सकते हैं, जिनका हृदय पहले ही अपने आप से भरा हुआ है, उनकी अपनी ही सफलताओं से? कुछ भी नहीं क्योंकि अभिमानी अपने तथाकथित न्याय के भरे होने के कारण क्षमाशीलता को स्वीकार नहीं कर सकता।"
संत पापा ने कहा, "हम फरीसी एवं नाकेदार के दृष्टांत को लें जिसमें नाकेदार ही पाप मुक्त होकर घर लौटा अर्थात् क्षमा प्राप्त किया।" (लूक. 18: 9-14) उन्होंने कहा, "जो अपनी दुर्गति से परिचित है तथा दीनता में अपनी आँखों को नीचे करता है वह ईश्वर की करुणावान दृष्टि को अपने ऊपर पड़ते हुए महसूस करता है। हम अपने अनुभव से जानते हैं कि केवल वही जो अपनी गलतियों को स्वीकारता तथा उसके लिए पश्चाताप करता है वही दूसरों से क्षमा एवं समझदारी प्राप्त कर सकता है।
संत पापा ने मनन-चिंतन हेतु प्रोत्साहन देते हुए कहा कि एकान्त में अंतःकरण की आवाज सुनने से हम जान सकते हैं कि हमारे विचार ईश्वर के विचारों से भिन्न हैं। हमारे शब्द और हमारे कार्य बहुधा सांसारिक होते हैं यानी हमारे चुनाव सुसमाचार के अनुरूप नहीं होते। अतः पवित्र यूखरिस्त के आरम्भ में हम एक साथ पापा स्वीकार के एक आम सूत्र के द्वारा पश्चाताप की धर्मविधि पूरा करते हैं जिसको एक वचन में, प्रथम व्यक्ति के रूप में उच्चरित किया जाता है। हरेक व्यक्ति ईश्वर एवं पड़ोसी के प्रति मन, वचन, कर्म से किये गये पापों एवं अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं करने के कारण हुए पापों को स्वीकार करता है। कर्तव्य पूरा नहीं करना, इसमें भले कार्यों जिसको में कर सकता था पर पूरा नहीं किया, उस पाप को स्वीकारना। हम बहुधा यह सोच कर अच्छा महसूस कर लेते हैं कि हमने किसी को दुःख नहीं दिया है। वास्तव में, दूसरों को दुःख नहीं देना काफी नहीं है बल्कि यह आवश्यक है कि अच्छे कार्यों को करने के द्वारा येसु के शिष्य होने का चुनाव किया जाए। इस बात पर जोर देना आवश्यक है कि हम ईश्वर एवं पड़ोसी दोनों के प्रति अपने पापों को स्वीकार करते हैं। यह हमें पाप के आयामों को समझने में मदद देता है जो एक ओर हमें ईश्वर से अलग कर देता वहीं दूसरी ओर हमें अपने भाई बहनों से भी अलग कर देता है। मुँह से बोलने के साथ-साथ हम छाती भी पीटते हैं यह स्वीकार करते हुए कि मैंने दूसरों की नहीं बल्कि अपनी ही लापरवाही से पाप किया है। अकसर ऐसा होता है कि भय या लज्जा के कारण हम दूसरों पर गलती थोपना चाहते हैं। दोष स्वीकार करने में भले ही कीमत चुकानी पड़े किन्तु उदारता के साथ उसे स्वीकार करना अच्छा है।
पाप स्वीकार करने के पश्चात हम धन्य कुंवारी मरियम तथा दूतों एवं संतों का आह्वान करते हैं कि वे प्रभु से हमारे लिए प्रार्थना करें। संतों की संगति बहुमूल्य है। उनकी मध्यस्थता तथा उनका आदर्श जीवन हमें ईश्वर के साथ पूर्ण रूप से संयुक्त होने में मदद देता है जब पाप पूरी तरह से नष्ट कर दिये जायेंगे।
पश्चाताप की धर्मविधि पुरोहित के पाप क्षमा की प्रार्थना से समाप्त होता है जो सर्वशक्तिमान ईश्वर का अह्वान करते, उनसे दया की याचना करते, पापों की क्षमा मांगते एवं अनन्त जीवन की ओर ले चलने की अर्जी करते हैं। फिर भी पुरोहित द्वारा दिया गया इस समय के पाप क्षमा का मूल्य पाप स्वीकार संस्कार के बराबर होता। वास्तव में जो गंभीर पाप हैं जिन्हें आत्मा मारू पाप कहा जाता है वह हममें ईश्वरीय जीवन को नष्ट कर देता है जिसके कारण उससे क्षमा प्राप्त करने के लिए पाप स्वीकार संस्कार की आवश्यकता पड़ती है।
पश्चाताप की धर्मविधि को दूसरे सूत्र से भी किया जा सकता है, उदाहरण के लिए, दया याचना की प्रर्थना। रविवार के दिन आशीष एवं पवित्र जल का छिड़काव भी बपतिस्मा की यादगारी का चिन्ह है जो पश्चाताप की धर्मविधि में किया जा सकता है। पश्चाताप की धर्मविधि के रूप में दया याचना के गीत भी गाये जा सकते हैं।
पवित्र धर्मग्रंथ हमें पश्चातापी व्यक्तियों का ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत करता है जो पापों में गिरने के बाद वापस लौटकर आये, पर्दा को हटाने का साहस किया तथा उस कृपा के लिए अपने को खोल दिया जो हमारे हृदय को नवीकृत करता है। हम राजा दाऊद तथा स्तोत्र ग्रंथ में उनके शब्दों की याद करें, "ईश्वर तू दयालु है मुझपर दया कर। तू दया सागर है मेरा अपराध क्षमा कर।" (स्तोत्र. 51.3).
हम उड़ाव पुत्र की याद करें जो अपने पिता के पास लौटा, नाकेदार की प्रार्थना, "हे ईश्वर मुझ पापी पर दया कर।" (लूक.18:13) हम संत पेत्रुस, जकेयुस तथा समारीतानी स्त्री की भी याद करते हैं। हम अपनी तुलना मिट्टी की क्षणभंगुरता से करते हैं हम अनुभवों द्वारा गूंथे जाते जो हमें बल देता है। जब हम अपनी कमजोरियों की गिनती करते हैं तब यह हमारे हृदय को खोल देता है कि हम दिव्य करुणा की गुहार लगा सकें जो हमें परिवर्तित कर देता है।
इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और विश्व के विभिन्न देशों से आये सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया, खासकर, कोरिया, कनाडा एवं अमरीका के तीर्थयात्रियों को। तत्पश्चात उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति एवं परिवार को ख्रीस्त जयन्ती काल के आनन्द की शुभकामनाएँ देते हुए प्रार्थना में शांति के राजकुमार के करीब आने की सलाह दी जो हमारे बीच आये। अंत में उन्होंने सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।
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