2018-01-01 12:40:00

प्रभु ईश्वर के लिये मानवजाति अनमोल एवं पवित्र है, सन्त पापा फ्राँसिस


वाटिकन सिटी, सोमवार, 1 जनवरी 2018 (रेई, वाटिकन रेडियो): सन्त पापा फ्राँसिस ने अपने नववर्ष के प्रवचन में कहा है कि प्रभु ईश्वर के लिये मानवजाति अनमोल एवं पवित्र है इसलिये मानव मात्र की सेवा करना ईश्वर की सेवा है।

वाटिकन स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में नववर्ष के उपलक्ष्य में सोमवार पहली जनवरी को ख्रीस्तयाग के अवसर पर प्रवचन करते हुए सन्त पापा ने कहा कि माता मरियम से जन्म लेकर प्रभु येसु हममें से एक बने और इस प्रकार उन्होंने सम्पूर्ण मानवजाति को अनमोल एवं पवित्र बना दिया। 

इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए कि माँ मरियम के नाम पर हम नये वर्ष का शुभारम्भ करते हैं, सन्त पापा फ्रांसिस ने कहा, "कलीसिया ने यह घोषणा की है कि मरियम ईश्वर की माता हैं। यह शब्द ईश्वर विषयक वैभवशाली सत्य को अभिव्यक्त करते हैं जिसके लिये हमें सदैव कृतज्ञ रहना चाहिये। उस क्षण से जबसे प्रभु ने मरियम में देहधारण किया उसी क्षण से सब समय के लिये उन्होंने हमारी मानव प्रकृति को अपने ऊपर लिया। इसीलिये, अब ईश्वर मनुष्य के बिना नहीं हैं, येसु ने जो देह अपनी माँ से ग्रहण किया वह हमारा ही देह है, आज और अनन्त काल के लिये। मरियम को ईश माता पुकारने का अर्थ हैः ईश्वर मानवजाति के समीप है, उस प्रकार जिस प्रकार माँ अपने शिशु के समीप रहती है।"  

सन्त पापा ने कहा कि माँ जननि है तथा माता के प्रति आदर प्रकट करने का अर्थ है, जीवन का सम्मान करना। गर्भ के आरम्भिक क्षण से लेकर प्राकृतिक मृत्यु तक, बाल्यावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक जीवन का सम्मान करना। रोगियों, पीड़ितों, कठिनाई में पड़े लोगों की सेवा कर जीवन का सम्मान करना।

नववर्ष के लिये निर्धारित सुसमाचार में निहित पाठ के प्रति ध्यान आकर्षित कराते हुए सन्त पापा ने कहा, "येसु गऊशाले में जन्में एक शिशु हैं, वह शिशु जो "बोलने में असमर्थ हैं"। ईश वचन जो सदियों के अन्तराल में कई तरह से हमसे बोलता रहा अब समय की परिपूर्णता आने पर शान्त है। ईश्वर जिनके समक्ष सबकुछ शान्त हो जाता है अब स्वयं मौन हैं। उनका प्रताप शब्दरहित है, उनके प्रेम का रहस्य उनकी अकिंचनता में प्रकट हुई है। मौन एवं विनम्रता ही उनके राजत्व की भाषा है। माँ मरियम भी अपने पुत्र येसु के संग मिलकर चुपचाप सबकुछ को अपने मन में संजोये रखती हैं।"  

सन्त पापा ने कहा कि मौन रहकर ही हम गऊशाले की चरनी में लेटे बालक के रहस्य पर चिन्तन करने में सक्षम बनते तथा प्रभु के प्रेम के मर्म को समझ सकते हैं। प्रभु का प्रेम हमारे कठोर हृदयों का स्पर्श करता तथा हमें विनीत और दयालु बना देता है। अस्तु, उन्होंने कहा, "प्रति दिन एक क्षण प्रभु के लिये मौन धारण करने का अर्थ है ईश्वर के संग होना, अपनी आत्मा को सुरक्षित रखना, उपभोक्तावाद की खामियों, विज्ञापनों के कोलाहल, खोखले शब्दों के प्रवाह और बकवादों से स्वतः को स्वतंत्र रखना है।"    

सन्त पापा ने कहा कि माँ मरियम मौन रहीं और यही था उनके जीवन का रहस्य, सुसमाचार के अनुसार उन्होंने सबकुछ अपने हृदय में संजोकर रखा। उन्होंने कहा, "हृदय हमें व्यक्ति के अन्तर में झाँकने का अवसर देता है वह व्यक्ति का केन्द्र है, वह व्यक्ति के प्रेम और उसके जीवन का केन्द्र है। नववर्ष के प्रारम्भ में, हम भी ख्रीस्तीय तीर्थ यात्री होने के नाते, अपने अन्तरमन से शुरुआत करने की मंशा रखते हैं, अतीत के बोझों को पीछे छोड़कर, उन चीज़ों पर ध्यान देने की अभिलाषा करते हैं जो सचमुच में मायने रखती हैं और इस प्रकार वास्तव में एक नई शुरुआत करना चाहते हैं। आज हमारे समक्ष माता मरियम आदर्श हैं। मरियम के अनुसार हमें वहीं होना चाहिये जैसा ईश्वर हमें चाहते हैं। आज ईश माता का महापर्व हमें स्मरण दिलाता है कि यदि हम आगे बढ़ना चाहते हैं तो हमें पीछे लौटना होगाः गऊशाले से एक नई शुरुआत करनी होगी, उन माँ से जो ईश्वर को अपनी बाहों में लिये हुए है।" 

मरियम भक्ति को प्रोत्साहन देते हुए अन्त में सन्त पापा फ्रांसिस ने कहाः "मरियम भक्ति केवल आध्यात्मिक आचार व्यवहार नहीं है बल्कि यह ख्रीस्तीय जीवन की एक आवश्यकता है। माँ का वरदान, हर माँ और प्रत्येक महिला का वरदान कलीसिया का अनमोल वरदान है। पुरुष अपने विचारों को विश्व के समक्ष रखता है जबकि माँ और महिला सबकुछ को अपने हृदय में संजोकर रखना जानती है।" सन्त पापा ने कहा, "हमारा विश्वास विचार मात्र नहीं होना चाहिये उसे माँ के हृदय की नितान्त आवश्यकता है ताकि अपने आस-पास की धड़कन को सुन सके। मां मरियम इस नये वर्ष में सबकी रक्षा करे तथा अपने पुत्र येसु की शांति से हमारे हृदयों एवं सम्पूर्ण विश्व को परिपूर्ण कर दें।"  








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