2017-12-20 13:22:00

पवित्र यूखरिस्त के आरम्भिक भाग पर संत पापा की धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 20 दिसम्बर 2017 (रेई): संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर पौल षष्ठम सभागार में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को “पवित्र यूखरिस्त” पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ाते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।

आज मैं पवित्र यूखरिस्त समारोह के केंद्र में प्रवेश करना चाहता हूँ। पवित्र यूखरिस्त दो भागों से बना है- शब्द समारोह एवं यूखरिस्त की धर्मविधि, जो एक पूर्ण पूजनविधि समारोह बनाने के लिए एक-दूसरे से अति करीबी से जुड़े हैं।

पवित्र यूखरिस्त की शुरूआत, तैयारी की रीति से शुरू होती तथा अन्य रीतियों से समाप्त हो जाती है किन्तु समारोह एक ही शरीर के समान है जिसे अलग नहीं किया जा सकता। बेहतर रूप से समझने के लिए मैं इसके अलग-अलग भागों को स्पष्ट करने का प्रयास करूँगा ताकि इसका प्रत्येक भाग हमारे जीवन को स्पर्श कर सके एवं हम इसमें शामिल हो सकें। यह आवश्यक है कि हम इन पवित्र चिन्हों को जानें जिससे कि पवित्र यूखरिस्त को पूरी तरह जी सकें एवं उसकी सुन्दरता का सुख प्राप्त कर सकें।

जब लोग एक साथ जमा होते हैं, तब समारोह परिचयात्मक रीति से आरम्भ होता है जिसमें प्रवेश, अभिवादन, पश्चाताप, क्षमा-याचना, मंगल गान तथा सामूहिक प्रार्थना आता है। इसका उद्देश्य है यह सुनिश्चित करना कि लोकधर्मी जो एक साथ एकत्रित हैं वे एक समुदाय का निर्माण करते हैं तथा ईश वचन को विश्वास के साथ सुनने एवं पवित्र यूखरिस्त को योग्य रीति से मनाने हेतु अपने आपको समर्पित करते हैं।

जब प्रवेश भजन गाया जाता है पुरोहित अन्य सेवकों के साथ जुलूस में वेदी तक पहुँचता तथा झुककर वेदी को प्रणाम करता है। सम्मान के चिन्ह स्वरूप वह वेदी का चुम्बन करता तथा उसे धूप चढ़ाता है। यह भाव जिनमें ध्यान नहीं देने का खतरा रहता है, अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आरम्भ से प्रकट करता है कि मिस्सा बलिदान ख्रीस्त के साथ प्रेम मिलन है जिन्होंने अपने शरीर को क्रूस पर अर्पित किया तथा स्वयं वेदी, बलि और याजक बन गये। वास्तव में, वेदी  ख्रीस्त का प्रतीक है, कृपा के कार्य का केंद्र जो यूखरिस्त में पूर्ण होता है। 

उसके बाद क्रूस का चिन्ह बनाया जाता है। ख्रीस्तयाग का मुख्य अनुष्ठाता अपने ऊपर क्रूस का चिन्ह बनाता है और साथ ही साथ पूरा समुदाय क्रूस का चिन्ह बनाता है जो इस बात का स्मरण दिलाता है कि यह धर्मविधिक कार्य पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर सम्पन्न किया जा रहा है अर्थात् सभी प्रार्थनाएँ त्रियेक ईश्वर के पास जाती हैं जो अनन्त समुदाय है। जिसका उदगम एवं अंत त्रियेक ईश्वर के प्रेम में है जो ख्रीस्त के क्रूस द्वारा हमारे लिए प्रकट हुआ है। वास्तव में, इसका पास्का रहस्य त्रियेक ईश्वर का वरदान है तथा पवित्र यूखरिस्त उनके छिदे हृदय से प्रवाहित होता है। यह हमें क्रूस के चिन्ह से अंकित करता है इस तरह हम न केवल अपने बपतिस्मा की याद करते हैं बल्कि यह सुनिश्चित करते कि धर्मविधि की प्रार्थना ख्रीस्त में ईश्वर के साथ मुलाकात है। जिन्होंने हमारे लिए शरीरधारण किया, क्रूस पर मरे एवं महिमा के साथ जी उठे।

इसके उपरांत पुरोहित धर्मविधिक अभिवादन करता है, "प्रभु आपके साथ हो" जिसका उत्तर विश्वासी समुदाय देता है "और आपके साथ भी"। इस तरह हम पवित्र यूखरिस्त आरम्भ करते हैं हमें इन सभी चिन्हों और शब्दों के अर्थ पर चिंतन करना चाहिए। हम एक स्वर से उत्तर देते हैं जिसमें कई तरह के आवाज मिले होते हैं। मौन का वक्त भी होता है जिसमें हम सभी प्रतिभागियों के साथ समझौता करते हैं। जिसको कहा जा सकता है कि हम एक ही उद्देश्य के लिए, एक आत्मा द्वारा संचालित होते हैं। वास्तव में याजक के अभिवादन और विश्वासियों के प्रत्युत्तर में कलीसियाई समुदाय का रहस्य प्रकट होता है। इस तरह प्रभु से संयुक्त होने के लिए एक विश्वास एवं आपसी चाह और पूरे समुदाय के साथ एकता में जीने की अभिलाषा व्यक्त होती है।

संत पापा ने पश्चाताप की रीति पर प्रकाश डालते हुए कहा, "सामूहिक प्रार्थना का स्वर एक हृदय स्पर्शी वातावरण तैयार करता है क्योंकि जो ख्रीस्तयाग अर्पित करता वह निमंत्रण देता है कि सभी अपने-अपने पापों को स्वीकार करें।" यह अपने पापों के बारे सोचना केवल नहीं है बल्कि उससे बढ़कर, ईश्वर एवं अपने भाई बहनों के सामने दीनता एवं ईमानदारी से अपने पापों को स्वीकार करने का निमंत्रण है, ठीक उसी तरह जिस तरह मंदिर में नाकेदार ने किया था। यदि पवित्र यूखरिस्त सचमुच पास्का रहस्य को प्रस्तुत करता है अर्थात् ख्रीस्त की मृत्यु से जीवन में पार होने की घटना को, तो पहली चीज हमें यह करना चाहिए कि हम अपने मरण की स्थिति पर गौर करें कि क्या मैं जी उठकर उनके साथ नया जीवन में प्रवेश करने योग्य हूँ। यह हमें समझने में मदद देता है कि पश्चाताप की धर्मविधि कितना महत्वपूर्ण है।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और विश्व के विभिन्न देशों से आये सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया तथा आगमन काल की शुभकामनाएँ देते हुए सबों पर ईश्वर के प्रेम और खुशी की कामना की और सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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