वाटिकन सिटी, सोमवार, 11 दिसम्बर 2017 ( रेई) : ″हमें गुनाहों और शिकायतों को छोड़कर ईश्वर से सांत्वना लेने के लिए सीखनी चाहिए।″ यह बात संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मार्था के प्रार्थनालय में सोमवार 11 दिसम्बर को युखरीस्तीय समारोह के दौरान प्रवचन में कही।
संत पापा ने इसायस नबी के ग्रंथ से लिये गये पहले पाठ पर मनन चिंतन करते हुए कहा कि प्रभु हमें सांत्वना देने इस दुनिया में आये। जिस प्रकार प्रेरितों को येसु के पुनरुत्थान की खुशी को स्वीकार करना कठिन था उसी तरह बहुधा हमें ईश्वर की सांत्वना को स्वीकार करना कठिन लगता है जिसे ईश्वर हमारे जीवन में चमत्कार स्वरुप देते हैं।
संत पापा ने कहा कि खुद को सांत्वना देने की बजाय दूसरों को सांत्वना देना आसान है। संत लूकस के सुसमाचार में हम पाते हैं कि लकवाग्रस्त रोगी अपने बिस्तर में सालों से पड़ा था वह येसु की बातें सुनकर भी उठ कर चलना नहीं चाहता था उसी रोगी की तरह बहुधा हम अपने पापों और नकारात्मक कमजोरियों को छोड़ना नहीं चाहते हैं। हम द्वेष और शिकायतों को अपने से अलग नहीं करना चाहते हैं इस तरह हम अपने दिल को और कठोर बना देते हैं। उस रोगी के समान हम भी ईश्वर के मधुर सांत्वना की बजाय आदि पाप के कड़वे फल खाना ही पसंद करते हैं।
इस तरह की कड़वाहट हमेशा हमें शिकायत करने की ओर ले जाती है। संत पापा ने नबी योब को शिकायत के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता के रूप में वर्णित किया, जिन्होंने ईश्वर की सभी चीजों के बारे में शिकायत की थी।
ऐसे कड़वाहट, क्रोध और शिकायत का सामना करते हुए, कलीसिया यह चाहती है कि हमें लकवाग्रस्त व्यक्ति के दोस्तों की तरह साहस भी होना चाहिए, जिन्होंने फरीसियों की प्रतिक्रिया के बारे में नहीं सोचा था लेकिन उनका ध्यान अपने मित्र की मदद करने में था।
प्रवचन के अंत में संत पापा ने आत्मनिरीक्षण के लिए कुछ प्रश्न सामने रखे। क्या हमारे अंदर किसी प्रकार की कड़वाहट या चिंता है? क्या हम खुले दिल से ईश्वर की प्रशंसा कर सकते हैं या क्या हम किसी न किसी बात पर हमेशा ही शिकायत करते हैं? आइये हम प्रभु से कृपा मांगे कि वे हमारे जीवन में आये और हमें अपनी सांत्वना प्रदान करें।
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