2017-12-06 14:55:00

म्यानमार एवं बंगलादेश में प्रेरितिक यात्रा का वृतांत


वाटिकन सिटी, बुधवार, 6 दिसम्बर 2017 (रेई): संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन स्थित पौल षष्ठम सभागार में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को “म्यानमार एवं बंगलादेश में प्रेरितिक यात्रा” का वृतांत जारी करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।

आज में अपनी प्रेरितिक यात्रा पर बात करना चाहूँगा जिसको मैंने पिछले दिनों म्यानमार एवं बंगलादेश में सम्पन्न किया है। यह ईश्वर का एक महान वरदान है अतः मैं उन्हें सबकुछ के लिए धन्यवाद देता हूँ, विशेषकर, उन मुलाकातों के लिए जिनको मैंने पूरा किया। मैं उन दोनों देशों के अधिकारियों एवं वहाँ के धर्माध्यक्षों के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करता हूँ उनकी सभी तरह की तैयारियों एवं मेरे तथा मेरे सहयोगियों के स्वागत के लिए धन्यवाद देता हूँ। म्यानमार एवं बंगलादेश के लोगों को मैं सम्बोधित करना चाहता हूँ जिन्होंने मेरे प्रति बहुत अधिक श्रद्धा एवं स्नेह प्रकट किया है।   

म्यानमार में संत पापाओं की पहली यात्रा का जिक्र करते हुए संत पापा ने कहा, "संत पेत्रुस के एक उतराधिकारी ने पहली बार म्यानमार की प्रेरितिक यात्रा की है और यह परमधर्मपीठ एवं म्यानमार के बीच राजनयिक संबंध स्थापित करने के कुछ ही समय बाद हुआ है।" इस कारण मैं उन लोगों के लिए ख्रीस्त एवं कलीसिया के सामीप्य को व्यक्त करना चाहता हूँ जो संघर्ष एवं दमन के कारण दुःख सह रहे हैं और जो अभी धीरे से स्वतंत्रता एवं शांति की स्थिति की ओर आगे बढ़ रहे हैं। वहाँ एक ऐसी जनता है जिनमें भगवान बुद्ध के धर्म की जड़ अपनी आध्यात्मिक एवं नैतिक सिद्धांतों के साथ गहरी है और जहाँ ख्रीस्तीय एक छोटे समुदाय एवं ईश राज्य के ख़मीर के रूप में उपस्थित हैं। यह कलीसिया जो जीवित एवं सक्रिय है मैंने विश्वास एवं एकता को सुदृढ़ करने में आनन्द का अनुभव किया तथा देश के धर्माध्यक्षों के साथ मुलाकात की और दो बार ख्रीस्तयाग सम्पन्न किया। पहला ख्रीस्तयाग यांगून के एक बड़े खेल मैदान में आयोजित किया गया था, जिसमें सुसमाचार ने येसु में विश्वास के कारण अत्याचार का स्मरण दिलाया जो उनके शिष्यों के लिए आम बात है, यह साक्ष्य देने का अवसर है, "फिर भी, सिर का एक बाल भी बांका नहीं होगा।"(लूक. 21: 12-19).

म्यानमार में दूसरा ख्रीस्तयाग वहाँ पर प्रेरितिक यात्रा का अंतिम कार्यक्रम था जो युवाओं के लिए समर्पित था। यह आशा के एक चिन्ह एवं माता मरियम के विशेष उपहार के रूप में था जो उन्हीं के नाम को समर्पित महागिरजाघर में सम्पन्न हुआ। उन युवाओं के चेहरे आनन्द से पूर्ण थे, मैंने उनमें एशिया का भविष्य देखा, एक ऐसा भविष्य जिसमें हथियार बनाने वाले नहीं बल्कि भाईचारा बोने वाले होंगे। मैंने आशा के साथ गुरूकुल एवं राजदूतावास समेत 16 गिरजाघरों के पहले पत्थर पर आशीष दी।

काथलिक समुदाय के अलावा, मैंने म्यानमार के अधिकारियों से भी मुलाकात की तथा देश में शांति निर्माण के प्रयास को प्रोत्साहन दिया और आशा करता हूँ कि आपसी सम्मान के इस प्रयास को सहयोग देने में राष्ट्र का कोई भी घटक नहीं छूटेगा। इस विचार से मैंने देश के विभिन्न धार्मिक समुदायों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की, खासकर, बौद्ध भिक्षुओं के सर्वोच्च परिषद से। मैंने कलीसिया की प्राचीन आध्यात्मिक परंपरा के लिए उसके प्रति सम्मान व्यक्त किया। मैं विश्वास करता हूँ कि ख्रीस्तीय एवं बौद्ध एक साथ ईश्वर एवं पड़ोसियों को प्यार करने में मदद दे पायेंगे तथा हर तरह की हिंसा का बहिष्कार करते हुए बुराई का सामना अच्छाई से कर पायेंगे।

म्यानमार से विदा लेकर मैं बंगलादेश गया जहाँ मैंने सबसे पहले राष्ट्र पिता एवं उन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की जिन्होंने देश की आजादी हेतु संघर्ष किया था। बांग्लादेश की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा मुस्लिम धर्म मानता है, अतः धन्य संत पापा पौल षष्ठम एवं संत पापा जोन पौल द्वितीय के पदचिन्हों पर मेरी यात्रा ने ख्रीस्तीय एवं इस्लाम धर्मावलंबियों के बीच सम्मान एवं वार्ता के कदमों को आगे बढ़ाया।

मैंने देश के अधिकारियों को स्मरण दिलाया कि परमधर्मपीठ ने बंगाली लोगों की इच्छा को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित करने के लिए शुरू से ही समर्थन दिया है, साथ ही साथ धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा की आवश्यकता को भी स्वीकृति प्रदान की है। मैं खासकर, रोहिंग्याई शरणार्थियों की अपने ही क्षेत्र में मदद करने में बंगलादेश की प्रतिबद्धता के प्रति एकात्मता व्यक्त करना चाहता हूँ जहां जनसंख्या घनत्व पहले से ही दुनिया में सबसे ज्यादा है।

ख्रीस्तयाग समारोह ढाका के एक ऐतिहासिक पार्क में सम्पन्न हुआ जिसे 16 नये पुरोहितों के अभिषेक ने अधिक भव्य बना दिया। यह प्रेरितिक यात्रा का एक सबसे महत्वपूर्ण एवं आनन्दमय घटना थी। म्यानमार एवं बंगलादेश दोनों ही देशों में बुलाहट की कमी नहीं है जो जीवित समुदाय का चिन्ह हैं जहाँ ख्रीस्त का अनुसरण करने की गूँज अब भी सुनाई पड़ती है। मैंने इस खुशी को बंगलादेश के धर्माध्यक्षों के साथ बांटा तथा उन्हें परिवारों, ग़रीबों, शिक्षा, वार्ता एवं सामाजिक शांति के लिए उनके उदार कार्यों को प्रोत्साहन दिया। मैंने अपने इस आनन्द को देश के पुरोहितों, धर्मसमाजियों, समर्पित लोगों एवं गुरूकुल छात्रों तथा नवशिष्यों के साथ साझा किया। जिनमें मैंने उस धरती पर कलीसिया के अंकुरण को देखा।

ढाका में हमने अंतरधार्मिक एवं ख्रीस्तीय एकतावर्धक वार्ता के एक खास समय का एहसास किया जहाँ मुझे मुलाकात, सौहार्द एवं शांति की संस्कृति के आधार के रूप में हृदय को खोलने के महत्व पर रेखांकित करने का अवसर प्राप्त हुआ।  

मैंने मदर तेरेसा केंद्र का भी दौरा किया जहाँ उस शहर में रहते वक्त संत मदर तेरेसा ठहरीं थीं। केंद्र ने कई अनाथ एवं विकलांग बच्चों का स्वागत किया है। उनकी विशिष्टता के आधार पर धर्मबहनें प्रतिदिन आराधना प्रार्थना करतीं एवं ग़रीब तथा पीड़ित ख्रीस्त की सेवा करतीं हैं। 

वहाँ की आखिरी मुलाकात युवा बंगलादेशियों के साथ थी जो साक्ष्यों, संगीत एवं नृत्य से पूर्ण थी। वह एक ऐसा उत्सव था जो सुसमाचार के आनन्द को प्रकट करता है जिसको वहाँ की संस्कृति ने स्वीकार कर लिया है। यह आनन्द कई मिशनरियों, प्रचारकों तथा ख्रीस्तीय माता-पिताओं के बलिदान से उपजाऊ बनाया गया है। इस मुलाकात में मुस्लिम एवं अन्य धर्मों के युवा भी उपस्थित थे जो बंगलादेश, एशिया एवं समस्त विश्व के लिए एक आशा का चिन्ह है। 

इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और विश्व के विभिन्न देशों से आये सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया तथा सबों पर ईश्वर के प्रेम और खुशी की कामना करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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