2017-11-30 11:41:00

सन्त पापा फ्राँसिस ने सम्पन्न की म्यानमार यात्रा


याँगून, गुरुवार, 30 नवम्बर 2017 (विभिन्न स्रोत, वाटिकन रेडियो): म्यानमार के मरियम महागिरजाघर में गुरुवार को काथलिक युवाओं के लिये ख्रीस्तयाग अर्पित कर विश्वव्यापी काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु सन्त पापा फ्राँसिस ने म्यानमार की तीन दिवसीय प्रेरितिक यात्रा सम्पन्न की तथा बंगलादेश की ओर प्रस्थान किया। 30 नवम्बर से 02 दिसम्बर तक सन्त पापा फ्राँसिस बंगलादेश का दौरा कर रहे हैं। 27 नवम्बर को सन्त पापा फ्राँसिस रोम के फ्यूमीचीनो अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से म्यानमार और बंगलादेश की छः दिवसीय यात्रा के लिये रवाना हुए थे तथा शनिवार दो दिसम्बर को पुनः रोम लौट रहे हैं। इटली से बाहर सन्त पापा फ्राँसिस की यह 21 वीं प्रेरितिक यात्रा है।  

म्यानमार में सन्त पापा फ्राँसिस ने धार्मिक नेताओं से आग्रह किया कि वे अपनी-अपनी धार्मिक परम्पराओं एवं शिक्षाओं के अनुकूल शांति की दिशा में काम करते रहें तथा म्यानमार के राष्ट्रीय नेताओं का उन्होंने आह्वान किया कि वे संघर्ष को पीछे छोड़कर जाति और धर्म का विभेद किये बिना न्याय एवं प्रत्येक नागरिक के प्रति सम्मान को प्रोत्साहित कर शांति निर्माण में अपना योगदान दें। बौद्ध नेताओं से सन्त पापा ने कहा कि जब तक प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिष्ठा का सम्मान न किया जाये तब तक यथार्थ न्याय एवं स्थायी शांति स्थापित नहीं हो सकती जबकि, काथलिक धर्माध्यक्षों को उन्होंने परामर्श दिया कि वे अतीत के घावों को भरने के लिये क्षमा एवं पुनर्मिलन को प्राथमिकता दें।

अपनी यात्रा के प्रथम दिन से ही सन्त पापा फ्राँसिस न्याय, शांति, सह-अस्तित्व, मानव प्रतिष्ठा और मर्यादा के सम्मान की सर्वत्र पुकार लगाते रहे थे किन्तु इसके बावजूद एमनेस्टी इन्टरनेशनल सहित अनेक मानवाधिकार संगठनों ने गहन निराशा व्यक्त की है कि सन्त पापा फ्राँसिस ने खुलकर रोहिंगिया संकट पर कुछ नहीं कहा। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार म्यानमार की सेना रोहिंगिया मुसलमानों का देश से सफ़ाया करने में जुटी है जिसके तहत रोहिंगिया मुसलमान का उत्पीड़न जारी है। दूसरी ओर, म्यानमार की सरकार का कहना है कि रोहिंगिया जाति के लोग बंगलादेश के मूल निवासी है जो म्यानमार में अवैध रूप से आ बसे हैं। 

वाटिकन ने "रोहिंगिया" शब्द का उपयोग न करने के लिये सन्त पापा फ्राँसिस का बचाव कर कहा है कि सन्त पापा म्यानमार के मेहमान थे तथा उन्होंने स्थानीय कलीसिया द्वारा दी गई सलाह पर गम्भीरता से विचार किया है। काथलिक धर्माध्यक्षों ने सन्त पापा को सलाह दी थी कि वे "रोहिंगिया" शब्द का प्रयोग न करें इसलिये कि म्यानमार में इस जाति को मान्यता प्राप्त नहीं है तथा इससे तनाव सघन हो सकते हैं।

वाटिकन के प्रवक्ता ग्रेग बुर्के ने पत्रकारों से कहा, "परमधर्मपीठ एवं म्यानमार ने हाल ही में कूटनैतिक सम्बन्धों की स्थापना की है तथा दशकों के सैन्य तानाशाही से उभरे बौद्ध बहुल देश में  सन्त पापा फ्राँसिस सेतुओं का निर्माण करना चाहते हैं।" उन्होंने कहा, "आप सन्त पापा की आलोचना कर सकते हैं, उन्होंने क्या कहा और क्या नहीं किन्तु सन्त पापा इस प्रश्न पर अपना नैतिक अधिकार नहीं खो सकते।"

ग्रेग बुर्के ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि प्रत्येक को अपनी बात रखने का अधिकार है और साथ ही इस बात पर भी बल दिया कि म्यानमार में सन्त पापा फ्राँसिस द्वारा अपनाये गये कूटनैतिक रुख से वह सब समाप्त नहीं हो जाता जो कुछ उन्होंने रोहिंगिया भाइयों के पक्ष में व्यक्तिगत अथवा सार्वजनिक रूप से कहा है। उन्होंने स्मरण दिलाया कि सन्त पापा कई मौकों पर रोहिंगिया लोगों पर हो रहे अत्याचारों का खण्डन किया है तथा उन्हें पूर्ण अधिकार देने की मांग की है।

म्यानमार के बौद्ध संघ के सदस्यों से मुलाकात के अवसर पर भी सन्त पापा ने कहा था, "यदि हमें एकता के सूत्र में बँधना है तो हमें हर प्रकार की ग़ैरसमझदारी, असहिष्णुता, पूर्वधारणा एवं घृणा को दूर करना होगा।" गौतम बुद्ध एवं सन्त फ्राँसिस की शिक्षाओं के सन्दर्भ में सन्त पापा ने कहा, "विवेक, धैर्य और समझदारी को पनपने का मौका दें तथा उस संघर्ष को समाप्त करें जिसने दशकों से विभिन्न संस्कृतियों, जातियों एवं धर्मों के लोगों को विभाजित कर रखा है।" 

याँगून के मरियम महागिरजाघर में गुरुवार को युवाओं के लिये ख्रीस्तयाग अर्पण तथा उन्हें दिया सन्देश सन्त पापा फ्राँसिस का म्यानमार में अन्तिम सार्वजनिक समारोह रहा। रंग-बिरंगी पारम्परिक एवं जातीय पोषाकें धारण किये युवाओं ने उत्साहपूर्वक अपने बीच सन्त पापा का हार्दिक स्वागत किया। म्यानमार के काथलिक युवाओं को प्रोत्साहन की आवाज़ निरूपित कर सन्त पापा ने युवाओं का आह्वान किया कि सत्य और न्याय के पक्ष में वे निर्भयतापूर्वक अपनी आवाज़ बुलन्द होने दें। 








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