2017-11-29 11:25:00

म्यानमार, दर्दनाक यादों की चंगाई का सन्त पापा फ्राँसिस ने किया आह्वान


याँगून, बुधवार, 29 नवम्बर 2017(विभिन्न स्रोत, वाटिकन रेडियो): म्यानमार के काथलिकों से सन्त पापा फ्राँसिस ने आग्रह किया है कि वे अतीत की दर्दनाक यादों की चंगाई हेतु क्षमा एवं पुनर्मिलन के लिये तैयार होवें। दीर्घकाल से पीड़ित म्यानमार की अल्पसंख्यक जातियों से उन्होंने अपील की कि अपने घावों की चंगाई के लिये वे प्रतिशोध के प्रलोभन में न पड़ें।    

विश्वव्यापी काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष सन्त पापा फ्राँसिस म्यानमार में अपनी तीन दिवसीय प्रेरितिक यात्रा के अन्तिम चरण में पहुँच चुके हैं। 30 नवम्बर को म्यानमार से विदा ले वे बंगलादेश की ओर प्रस्थान करेंगे।

याँगून शहर के केन्द्र स्थित 60 एकड़ ज़मीन पर विस्तृत कायकासेन क्रीड़ांगन में सन्त पापा फ्राँसिस ने बुधवार को म्यानमार के काथलिकों के लिये ख्रीस्तयाग अर्पित किया जिसमें, स्थानीय अधिकारियों द्वारा प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार, लगभग डेढ़ लाख श्रद्धालु उपस्थित हुए। हालांकि मीडिया के अनुसार जनसमुदाय इस संख्या से कहीं अधिक था जिनमें थायलैण्ड, कम्बोडिया एवं वियतनाम के हज़ारों लोग अपने-अपने राष्ट्रीय ध्वजों को फहराते नज़र आये।

कायकासेन क्रीड़ांगन के प्रवेश द्वार पर सन्त पापा फ्राँसिस के आगमन के साथ ही घण्टे बजने लगे, मुस्कुराते हुए सन्त पापा ने उत्साहित जनसमुदाय का अभिवादन किया और फिर ख्रीस्तयाग समारोह के लिये वेदी की ओर बढ़े। इस समारोह में म्यानमार की प्रजातांत्रिक नेता आऊन सान सूकी सहित म्यानमार प्रशासन के कई वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे। 

श्रद्धालुओं को सम्बोधित शब्दों में सन्त पापा फ्राँसिस ने म्यानमार अल्पसंख्यकों एवं सैन्य सुरक्षा बलों के बीच दशकों के संघर्ष को याद किया जो आज भी म्यानमार के कुछेक हिस्सों में बरकरार है। हाल ही में म्यानमार लगभग पचास वर्षों की सैऩ्य तानाशही से उभरा है किन्तु अभी भी कारिन एवं काछिन जैसे राज्यों में जातीय अल्पसंख्यकों को भेदभावों का सामना करना पड़ता है। कायकासेन मैदान स्वयं भी म्यानमार के उपद्रवी एवं अस्त-व्यस्त इतिहास का साक्षी है जब 1962 के तख्तापलट के बाद से सैन्य तानाशाही के दौरान इस मैदान को एक कारावास बना दिया गया था। ग़ौरतलब है कि बर्मा यानि म्यानमार के विख्यात राजनयिक संयुक्त राष्ट्र संघीय महासचिव यू थान्ट के निधन के बाद उनके शव को इसी मैदान में रखा गया था। जब सेना ने वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित नेता यू थांट का सम्मान करने से इनकार कर दिया था तब विश्वविद्यालयीन छात्रों ने अपने महान और प्रिय नेता का शव जब्त कर लिया था।

म्यानमार के अस्त-व्यस्त इतिहास तथा सेना एवं आम लोगों के बीच अनवरत जारी संघर्ष के सन्दर्भ में सन्त पापा फ्रांसिस ने कहा कि वे इस तथ्य से परिचित हैं कि म्यानमार के बहुत से लोग हिंसा के घावों को साथ लिये जी रहे हैं तथा हर चोट एवं हर दर्दनाक स्मृति का उपचार ढूँढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि प्रायः हम क्रोध एवं प्रतिशोध में समाधान खोजते हैं किन्तु समाधान और चंगाई केवल क्षमा, दया एवं पुनर्मिलन से मिल सकती है।  








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