2017-11-23 17:19:00

फ्राँसिसकन "विनम्रता" एक मुलाकात स्थल


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 23 नवम्बर 2017 (रेई): संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार 23 नवम्बर को वाटिकन के क्लेमेंटीन सभागार में फ्राँसिसकन परिवार के प्रथम एवं तृतीया ऑर्डर के सदस्यों से मुलाकात की। 

अपने सम्बोधन में संत पापा ने ऑर्डर के नाम "ऑर्डर ऑफ फ्रायर मायनर पर गौर किया।" माइनर" (छोटा) शब्द उनके धर्मसमाजी जीवन का आवश्यक पहलू है। अतः वे केवल साधारण धर्मसमाजी बंधु नहीं हैं किन्तु "छोटे" बंधु।

अपने धर्मसमाजी भाइयों के लिए संत फ्राँसिस को इसकी प्रेरणा ख्रीस्त एवं उनके सुसमाचार को अपने जीवन का आधार बनाने के लिए मिली। हालांकि संन्यासी और सामाजिक प्रेरणाओं की कमी नहीं है यह मुख्य रूप से ईश्वर के पुत्र ख्रीस्त पर चिंतन से आता है जो यद्यपि धनी थे, अपने आप को गरीब बनाया। नुकसान या रिक्त किये जाने के विचार को संत फ्राँसिस ने हूबहू जिया जब उन्होंने अपने आप को ईश्वर को पूरी तरह सौंपने के लिए पृथ्वी की हर वस्तु से विरक्त कर लिया।  

संत पापा ने कहा कि संत फ्राँसिस का जीवन ईश्वर से मुलाकात द्वारा प्रभावित था जिन्होंने अपने को गरीब बनाया। एक विनम्र और छिपी हुई उपस्थिति, जिसकी आराधना एवं चिंतन असीसी के छोटे गरीब व्यक्ति ने शरीर धारण, पवित्र क्रूस एवं पवित्र यूखरिस्त में किया था।"

उन्होंने कहा कि यह आमतौर पर फ्रांसिस्कन "छोटापन" या विनम्रता ईश्वर के साथ मुलाकात करने और उनके साथ संयुक्त होने के लिए सहायक है। अपने धर्म भाइयों, अन्य लोगों एवं सृष्टि के साथ सामंजस्य बनाये रखने हेतु मददगार है।

ईश्वर के साथ मुलाकात का स्थान

संत पापा ने कहा कि फ्राँसिसकन धर्मबंधुओं का ईश्वर के साथ संबंध में इस छोटेपन का एक खास स्थान है इसके लिए उन्हें जिसे विनम्र एवं विश्वस्त होना चाहिए, उसी तरह जिस तरह एक बालक होता है, साथ ही साथ, सुसमाचार के नाकेदार के समान अपने पापी स्वभाव के प्रति सचेत रहना चाहिए। 

इस संबंध का एक खास पहलू है "ईश्वर को वापस करने की आध्यात्मिकता।" हमें जानना चाहिए कि हम जो कुछ ग्रहण करते हैं वह ईश्वर से आता है जो सर्वोच्च अच्छाई के स्रोत हैं तथा हर अच्छी चीज उन्हें ही अर्पित किया जाना चाहिए। हम इसे प्रशंसा द्वारा करते हैं, उपहार को सुसमाचारी तर्क के अनुसार जीते हैं जो हमें अपने आप से बाहर निकल कर दूसरों से मुलाकात करने एवं हमारे जीवन में स्वागत करने का परामर्श देता है।

धर्मबंधुओं एवं स्त्री-पुरूषों से मुलाकात का स्थान

यह हमें दूसरे तरह की मुलाकात हेतु प्रेरित करता है, लोगों के साथ मुलाकात। संत पापा ने कहा कि इस मुलाकात को धर्मसमाजियों को अपने धर्मबंधुओं और जिन्हें ईश्वर ने हमें उपहार के रूप में दिया है उनके साथ संबंध के द्वारा किया जा सकता है। इस संबंध में अधिकार की भावना को दूर किया जाना चाहिए और आपस में सम्मान, समझदारी, प्रेम एवं दया की भावना होनी चाहिए।  

फ्राँसिसकन छोटेपन को विश्व के दूसरे लोगों के साथ संबंध द्वारा जिया जाना चाहिए। इस संबंध में भी अधिकार की हर मनोभावना को दूर किया जाना चाहिए, विशेषकर, जब धर्मबंधु निम्न, बहिष्कृत और नगण्य लोगों के हित में काम करते हैं। यह किसी भी श्रेष्ठता की कुर्सी से नहीं किया जाना चाहिए जो कि लोगों को दूर करने के लिए मजबूर करेगा।

संत पापा ने सभी सदस्यों को सम्बोधित कर कहा, "अपना हृदय द्वार खुलें तथा हमारे समय के कुष्ठ रोगियों का आलिंगन करें। जिस दया को हमने ईश्वर से प्राप्त किया है उसी दया को उन्हें प्रदान करें जैसा कि संत फ्राँसिस ने किया। वे बीमारों के साथ बीमार बनें, पीड़ित लोगों के साथ शोक मनायें, इस तरह फ्राँसिसकन "छोटापन" अस्पष्ट भावना मात्र नहीं रह जाएगा बल्कि उनके जीवन में गहरा प्रभाव डालेगा।  

सृष्टि के साथ मुलाकात का स्थान

अंततः संत पापा ने फ्राँसिसकन छोटेपन में सृष्टि के साथ मुलाकात का स्थान बतलाया। उन्होंने कहा, ″संत फ्राँसिस ने सृष्टि को एक बहन अथवा एक माता कहा किन्तु आज ये बहनें एवं माताएँ विद्रोह कर रही हैं क्योंकि वे अपने साथ बुरा व्यवहार किये जाने का एहसास कर रही हैं।

संत पापा ने उन्हें सृष्टि के साथ बातचीत करने की सलाह दी, सृष्टि के साथ ईश्वर की महिमा गाने तथा उसकी विशेष देखभाल करने की, आमघर की देखरेख हेतु जो पहल लिये जाते हैं उनके साथ सहयोग करने की। पृथ्वी के ग़रीबों और दुर्बलों के साथ संबंध में हमेशा विशेष ध्यान दें। 








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