2017-11-22 14:17:00

पवित्र यूखरिस्त, ख्रीस्त के पास्का रहस्य की स्मृति


वाटिकन सिटी, बुधवार, 22 नवम्बर 2017 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को “पवित्र यूखरिस्त” पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ाते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।

पवित्र यूखरिस्त पर धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ाते हुए, हम अपने आप से पूछ सकते हैं : पवित्र यूखरिस्त वास्तव में क्या है? पवित्र यूखरिस्त ख्रीस्त के पास्का रहस्य की स्मृति है। वे हमें पाप और मृत्यु पर अपनी विजय के सहभागी बनाते तथा हमारे जीवन को पूर्ण अर्थ प्रदान करते हैं।″

पवित्र यूखरिस्त के महत्व को समझने के लिए हमें बाईबिल के "स्मृति" शब्द को समझना होगा। यह बीती घटना की याद मात्र नहीं है किन्तु यह उसे वर्तमान की घटना के रूप में प्रस्तुत करता है। यह ठीक उसी तरह है जिस तरह इस्राएली मिस्र से मुक्त होना चाहते थे। हरेक बार जब पास्का पर्व मनाया जाता है निर्गमन ग्रंथ की उसी घटना की याद की जाती है जिससे कि विश्वासी अपने जीवन में सुदृढ़ हो सकें। येसु ख्रीस्त ने अपने दुखभोग, मृत्यु, पुनरुत्थान तथा स्वर्गारोहण द्वारा पास्का को पूर्ण किया एवं पवित्र यूखरिस्त जो उनके पास्का की स्मृति है उन्होंने उसको हमारे लिए पूरा किया है ताकि हमें बंधन से मुक्त कर सके और हम अनन्त जीवन के प्रतिज्ञात देश में प्रवेश कर सकें।

पवित्र यूखरिस्त हमें निरंतर ईश्वर की मुक्ति के शिखर पर ले चलता है जहाँ प्रभु येसु हमारे लिए रोटी तोड़ते, अपनी पूर्ण दया एवं प्रेम को हम पर उँडेलते हैं, जैसा कि उन्होंने क्रूस पर किया जिससे कि हमारे हृदय, हमारे अस्तित्व और उनके एवं अपने पड़ोसियों के साथ हमारे संबंध को नवीकृत कर सके। द्वितीय वाटिकन महासभा कहता है, "जब कभी क्रूस बलिदान जिसके द्वारा हमारे पास्का के मेमने ख्रीस्त का बलिदान किया गया था, वेदी पर मनाया जाता है, मुक्त का कार्य सम्पन्न होता है।" (लुमेन जेनसियुम, 3)

संत पापा ने कहा, "हर पवित्र यूखरिस्त समारोह सूर्य की एक ऐसी किरण है जो कभी ओझल नहीं होती जो कि स्वयं पुनर्जीवित येसु ख्रीस्त हैं। पवित्र यूखरिस्त में भाग लेना, खासकर, रविवार को, पुनर्जीवित ख्रीस्त की विजय में सहभागी होना है, उनके प्रकाश से आलोकित किया जाना तथा उनके स्नेह की ऊर्जा से पोषित होना। पवित्र यूखरिस्त समारोह द्वारा पवित्र आत्मा हमें ईश्वरीय जीवन के सहभागी बनाता है जिसमें हमारे नश्वर जीवन को बदलने का सामर्थ्य होता है। मृत्यु से जीवन, सीमा से अनन्त के इस पास्का में प्रभु येसु हमें अपने साथ पास्का मनाने हेतु प्रेरित करते हैं। पवित्र यूखरिस्त के द्वारा हम उनके साथ एक हो जाते हैं। जैसा कि संत पौलुस कहते हैं, सचमुच ख्रीस्त हममें जीते और हम उनमें जीते हैं और यह जीवन जो मेरे शरीर में है ईश पुत्र के विश्वास से जीता है जिन्होंने मुझे प्यार किया है तथा अपने आप को मेरे लिए अर्पित किया है।(गला. 2: 19-20)

उनका लोहू हमें मृत्यु एवं मृत्यु के भय से मुक्त करता है। वे हमें न केवल शारीरिक मृत्यु से मुक्त करते वरन् आध्यात्मिक मृत्यु से भी बचाते हैं जो बुराई और पाप है और हमें ईश्वर और अपने पड़ोसियों से दूर ले जाता है इस प्रकार हमारा जीवन प्रदूषित, कुरूप एवं अर्थहीन हो जाता तथा दुःखों से घिर जाता है।

ख्रीस्त दूसरी ओर जीवन की परिपूर्णता हैं जब उन्होंने मृत्यु सहा उनके शरीर का अंत हो गया किन्तु जी उठने के द्वारा उन्होंने मृत्यु पर विजय पायी एवं जीवन को नवीकृत किया जिसकी घोषणा पवित्र यूखरिस्त समारोह में की जाती है। ख्रीस्त का पास्का मृत्यु पर उनकी अंतिम जीत है क्योंकि उन्होंने मृत्यु को प्रेम के महान कार्य के रूप में परिवर्तित कर दिया है और पवित्र यूखरिस्त द्वारा वे उस भावुक और विजयी प्रेम को प्रकट करना चाहते हैं। जब हम उसे विश्वास में ग्रहण करते हैं तब हम भी ईश्वर एवं पड़ोसियों को सचमुच प्यार कर सकते हैं। हम भी उन्हीं की तरह प्यार कर सकते हैं जैसा कि उन्होंने जीवन देकर किया।

यदि ख्रीस्त का प्रेम मुझ में है तो मैं भी अपने आपको दूसरों को दे सकता हूँ उस निश्चितता से कि यदि दूसरे मुझे कष्ट भी दें तब भी मैं नहीं मरूँगा। ख्रीस्त की मृत्यु पर विजय की इसी निश्चितता के लिए शहीदों ने अपना जीवन अर्पित किया। यदि हम ख्रीस्त की इस शक्ति जो प्रेम की शक्ति है उसका एहसास कर लेंगे, तब हम मुक्त रूप से देने के लिए भय रहित होंगे।

संत पापा ने कहा कि यह स्पष्ट हो गया होगा कि जब-जब हम पवित्र यूखरिस्त में भाग लेते हैं तब- तब यह पास्का साक्षात् एवं सक्रिय घटना बन जाता है। यही है स्मृति का भाव। पवित्र यूखरिस्त में भाग लेने से हम ख्रीस्त के पास्का रहस्य में भाग लेते हैं जो हमें अपने साथ मृत्यु से जीवन में पार होने देता है।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और विश्व के विभिन्न देशों से आये सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया तथा सबों पर ईश्वर के प्रेम और खुशी की कामना करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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