2017-11-20 15:04:00

गरीब हमारे लिए स्वर्ग का द्वार खोलते हैं, संत पापा


वाटिकन सिटी, सोमवार, 20 नवम्बर 2017 (रेई): वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर में रविवार 19 नवम्बर को, गरीबों को समर्पित विश्व दिवस के उपलक्ष्य में संत पापा फ्राँसिस ने ख्रीस्तयाग का अनुष्ठान किया।

इस अवसर पर अपने प्रवचन में उन्होंने कहा, "हमें ईश्वर के वचन की रोटी तोड़ने का आनन्द प्राप्त हुआ है और इसके थोड़ी देर बाद हमें यूखरितीय रोटी को तोड़ने एवं ग्रहण करने का आनन्द प्राप्त होगा जो जीवन यात्रा का भोजन है। यह हम सभी के लिए आवश्यक है और कोई भी इससे बहिष्कृत नहीं है। हम सभी भिखारी हैं क्योंकि हमें ईश्वर के प्रेम की आवश्यकता है जो हमारे जीवन को अर्थ देता, हमें अनन्त जीवन प्रदान करता है। अतः आज हम उनके वरदानों को ग्रहण करने के लिए अपना हाथ उठायें।"

संत पापा ने संत मती रचित सुसमाचार (मती. 25:15) से लिए गये पाठ पर चिंतन किया जहाँ अशर्फियों के दृष्टांत में प्रतिभा के बारे बतलाया गया है। यह बतलाता है कि हमने अपनी योग्यता के अनुसार ईश्वर से प्रतिभा प्राप्त की है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले हम इस बात पर गौर करें कि हममें कौन-कौन सी प्रतिभाएँ हैं। ईश्वर की दृष्टि में हम सभी प्रतिभाशाली हैं। अतः कोई भी यह नहीं सोच सकता है कि वह बेकार है अथवा इतना गरीब है की उसके पास दूसरों को देने के लिए कुछ भी नहीं। हमें ईश्वर ने चुना और आशीर्वाद दिया है जो हमें हर माता-पिता की तरह अपने वरदानों से भर देना चाहते हैं। ईश्वर जिनकी नजरें किसी की अनदेखा नहीं करतीं, उन्होंने हम प्रत्येक को एक मिशन सौंपा है। वास्तव में, जिस तरह वे एक प्रेमी और उदार पिता है, हमें भी जिम्मेदारी देते हैं।    

दृष्टांत में हम देखते हैं कि स्वामी ने हर सेवक को कुछ अशर्फियाँ दी थीं जिनका उन्हें विवेकपूर्ण प्रयोग करना था। जिनमें से दो सेवकों ने तुरन्त जाकर उनके साथ लेन-देन किया तथा और पाँच हजार अशर्फियाँ कमा लीं जबकि तीसरे ने उन अशर्फियों से कुछ नहीं कमाया तथा जो पाया था उसे यह कहते हुए उसी तरह लौटा दिया, "स्वामी मुझे मालूम था कि आप कठोर हैं। आपने जहाँ नहीं बोया वहाँ लुनते हैं और जहाँ नहीं बिखेरा वहाँ बटोरते हैं। इसलिए मैं डर गया और आपका धन भूमि में छिपा दिया। देखिये, यह आपका है इसे लौटाता हूँ। परिणाम यह हुआ कि स्वामी ने उसे दुष्ट और आलसी कहकर फटकारा। (पद. 26)

संत पापा ने प्रश्न किया, "उस सेवक के किस बात ने स्वामी को अप्रसन्न किया?" उन्होंने कहा कि शायद वह शब्द पुराना लगे किन्तु उसकी आवश्यकता अभी भी है, वह शब्द है "चूक"। वह अच्छा काम करने के अवसर से चूक गया। हममें भी कई बार यही विचार उठता है कि हमने कोई गलती नहीं की है और हम अपने आप में संतुष्ट हो जाते हैं, अपने को अच्छा एवं न्यायसंगत मान लेते हैं। किन्तु ऐसा करने के द्वारा हम अयोग्य सेवक की तरह काम करते जिसने कोई गलती नहीं की थी और न ही अपनी क्षमता को नष्ट किया था बल्कि उसने उसे और सुरक्षित, जमीन पर छिपा कर रख दिया था। संत पापा ने कहा किन्तु केवल गलती नहीं करना काफी नहीं है।

ईश्वर कोई कंडक्टर नहीं हैं जो टिकट की जाँच करता। वे एक पिता हैं जो उन बच्चों की खोज करते हैं जिन्हें वे अपनी सम्पति एवं योजना सौंप सकें। यह उनके लिए दुखद है कि अपने बच्चों से वे उदार एवं प्रेमपूर्ण जवाब प्राप्त नहीं करते हैं जो नियमों के पालन से बढ़कर कुछ नहीं कर सकते जैसा कि अयोग्य सेवक ने किया। स्वामी जो बांटना, बढ़ाना एवं उत्साह पूर्वक उनकी देखरेख करना पसंद करते हैं उनसे अशर्फी प्राप्त करने के बावजूद वह मात्र उसे सुरक्षित रखने तक सीमित रहा। संत पापा ने कहा कि जो पुराने खजाने को केवल सुरक्षित रखना एवं संभालना जानता है वह ईश्वर का वफादार सेवक नहीं है जबकि दृष्टांत हमें बतलाता है कि जो अपनी नयी प्रतिभा को उसमें जोड़ता है वह सचमुच निष्ठावान है। क्योंकि वह चीजों को उसी तरह देखता है जिस तरह ईश्वर देखते हैं। वह स्थिर खड़ा नहीं रहता किन्तु प्रेम के कारण जोखिम उठाता है। वह अपने जीवन को दूसरों के लिए अर्पित करता है। वह चीजों को यथावत बनाये रखने में संतुष्ट नहीं रहता बल्कि उसमें अपनी रूचि अनुसार जोड़ देता है और यही उसे चूक से बचाता है।

संत पापा ने कहा कि चूक भी एक बड़ा पाप है जहाँ यह गरीबों से संबंधित है। आज के युग में इसे उदासीनता कहा जा सकता है। जब हम कहते हैं कि यह मेरा मामला नहीं है, मेरा काम नहीं है यह समाज की समस्या है तब हम पाप करते हैं। तब भी पाप होता है जब हम जरूरत में पड़े अपने भाई बहनों से मुख मोड़ लेते हैं, जब कोई चुनौतीपूर्ण सवाल आता है हम बुराई पर क्रोधित हो जाते किन्तु उसके समाधान के लिए कुछ नहीं करते। ईश्वर हमसे नहीं पूछेंगे कि क्या हमने धार्मिक रोष का अनुभव किया था बल्कि वे पूछेंगे कि हमने कोई अच्छा काम किया अथवा नहीं। हम ईश्वर को किस तरह खुश कर सकते हैं? जब हम अपने किसी मित्र को खुश करना चाहते हैं, उदाहरण के लिए हम उसे उपहार देते हैं किन्तु इससे पहले हमें उसी रूचि को जानना पड़ता है अन्यथा यह उपहार पाने वाले से अधिक देने वाले की खुशी के लिए होता है। जब हम प्रभु को कुछ अर्पित करना चाहते हैं तो हमें सुसमाचार के माध्यम से उनकी रूचि से अवगत होना पड़ेगा।

सुसमाचार में येसु कहते हैं, "मैं तुम से यह कहता हूँ मेरे इन भाइयों में से किसी एक के लिए चाहे वह कितना छोटा ही क्यों न हो जो कुछ किया वह तुमने मेरे लिए ही किया।" (मती. 25:40)

ये छोटे भाई-बहनें जिन्हें वे प्यार करते हैं वे हैं भूखे, बीमार परदेशी, कैदी, गरीब, परित्यक्त, जरूरतमंद एवं पीड़ित जिन्हें मदद करने वाला कोई नहीं है। उनके चेहरों पर हम येसु की कल्पना करें तथा उनके होठों से निकलने वाली आवाज में येसु की आवाज सुने, "यह मेरा शरीर है।" (मती. 26:26)

ग़रीबों के माध्यम से येसु हमारे हृदयों में दस्तक देते हैं तथा वे हमारे प्रेम के प्यासे हैं। जब हम अपनी उदासीनता से बाहर आते हैं और येसु के नाम पर हम अपने आप को दूसरों के लिए अर्पित करते हैं। हम उनके अच्छे और विश्वासी मित्र हैं जिनके साथ रहना वे पसंद करते हैं।

संत पापा ने पहले पाठ जो सूक्ति ग्रंथ से ली गयी है उसपर प्रकाश डालते हुए कहा कि ईश्वर सच्चरित्र पत्नी के मनोभाव को अत्यधिक पसंद करते हैं तो ग़रीबों की मदद करती एवं जरूरतमंद लोगों तक पहुँचती है। (सूक्ति. 31:10.20). यहीं हम इसकी सच्ची अच्छाई एवं शक्ति को देखते हैं जो बंद मुट्ठी एवं बंधी बांहों से नहीं किन्तु तत्पर हाथों से ग़रीबों तक पहुँचते हैं जो ख्रीस्त के शरीर के घाव हैं। 

संत पापा ने कहा कि ग़रीबों में ही हम येसु की उपस्थित को देख सकते हैं जो धनी थे किन्तु गरीब बने। (2कोरि. 8:9) जिससे हम उनकी निर्धनता द्वारा धनी बन सकें। अतः उनकी दुर्बलताओं में "मुक्ति की शक्ति" निहित है। यद्यपि दुनिया की नजरों में वे नग्न हैं किन्तु वे हमारे लिए स्वर्ग का द्वार खोल देते हैं। वे स्वर्ग जाने हेतु हमारे लिए "पासपोर्ट" के समान हैं। हमारे लिए सुसमाचारी सलाह है कि हम अपने सच्चे धन से उनकी देखभाल करें, उन्हें न केवल शारीरिक आहार प्रदान कर किन्तु ईश्वर के वचन रूपी रोटी (आध्यात्मिक आहार) तोड़ने के द्वारा भी। ग़रीबों को प्यार करने का अर्थ है, आध्यात्मिक एवं भौतिक हर तरह की गरीबी से जूझना। गरीबों के बीच जाने से वे हमारे जीवन को प्रभावित करेंगे तथा स्मरण दिलायेगा कि हमारे लिए क्या अधिक महत्वपूर्ण है अर्थात् अपने ईश्वर को एवं अपने पड़ोसियों को सबसे अधिक प्रेम करना क्योंकि केवल यही टिका रह सकता है बाकी सबकुछ समाप्त हो जाएगा। प्रेम में हम जो जमा करते हैं वह संचित रहता है बाकी सब खत्म हो जाता है।

संत पापा ने चिंतन करने हेतु प्रेरित करते हुए कहा, "आज हम अपने आप से पूछ सकते हैं- मेरे जीवन में क्या सबसे महत्वपूर्ण है? मैं अपनी पूँजी कहाँ जमा कर रहा हूँ? उस धन में जिससे दुनिया की प्यास कभी नहीं बूझती अथवा ईश्वर प्रदत्त अनन्त जीवन में? हमारे सामने यही चुनाव करना है – धरती पर अधिक धन अर्जित करना अथवा स्वर्ग राज्य की प्राप्ति हेतु उसे दूसरों को दे देना। स्वर्ग राज्य के लिए यह आवश्यक नहीं है कि हमारे पास अधिक धन हो किन्तु हम कितना देते हैं। जो अपने लिए धन जमा करते हैं वे सब के सब ईश्वर की दृष्टि में धनी नहीं हो सकते।"  (लूक.12:21)

संत पापा ने विश्वासियों का आह्वान करते हुए कहा, ″अतः आइये हम हमारे लिए जरूरत से ज्यादा की खोज न करें बल्कि उन चीजों की खोज करें जो दूसरों के लिए अच्छा है और हमारे लिए भी मूल्यवान।"  

उन्होंने प्रार्थना की कि प्रभु ग़रीबों एवं जरूरतमंद लोगों पर दया करे तथा हममें अपनी योग्यता से भर दे, हमें प्रज्ञा प्रदान करे ताकि हम उन चीजों की खोज कर सकें जो वास्तव में हमारे लिए आवश्यक है। प्रभु हमें प्रेम करने का साहस दे न केवल शब्दों से किन्तु कार्यों द्वारा भी।








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