2017-11-13 15:10:00

भारतीय कलीसियाओं ने दलितों के लिए न्याय रविवार का आयोजन किया


मुम्बई, सोमवार,13 नवम्बर 2017 (मैटर्स इंडिया) : भारत में ख्रीस्तीयों ने 12 नवंबर को दलित मुक्ति रविवार के रुप में अंकित कर समाज में “आवाजहीनों की आवाज" बनने की आवश्यकता को उजागर करने का प्रयास किया है।

दलित पहले से ही अछूत के रूप में जाने जाते हैं और अनुसूचित जाति के सदस्य के रूप में भी जाने जाते हैं। हिंदू धर्म की कठोर वर्ण व्यवस्था के तहत वे सबसे नीचे वर्ण अर्थात पायदान में आते हैं।

भारत ने दलितों के उत्थान के लिए कई सार्वजनिक कार्यक्रमों की स्थापना की है लेकिन उनके प्रति व्यापक भेदभाव और हाशिए पर बनाये रखना जारी है। देश की पूरी आबादी का 15 से 20 प्रतिशत जनसंख्या दलितों की है।

भारत में ख्रीस्तीयों की संख्या 2.3 प्रतिशत है जिसमें 60 प्रतिशत ख्रीस्तीय दलित हैं।

भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अनुसूचित जाति एवं पिछड़े वर्ग के लिए बने विभाग के सचिव फादर जेड. देवसहाय राज ने कहा,"इस आधुनिक युग में भी दलितों के खिलाफ अत्याचारों में कमी नहीं हुई बल्कि यह बढ़ रही है।" इसी कारण से, काथलिक धर्माध्यक्षों ने भारत की कलीसियाओं के राष्ट्रीय परिषद के साथ मिलकर प्रतिवर्ष नवंबर के दूसरे रविवार को दलित लिबरेशन रविवार के रुप में घोषित किया है।

इस वर्ष दलित लिबरेशन रविवार का विषय है, “दलितों की धार्मिक स्वतंत्रता”

फादर जेड. देवसहाय राज ने कहा कि हिन्दू होने पर भी दलितों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है लेकिन वे दलित, जो ख्रीस्तीय हैं, उन्हें विश्वास के आधार पर अतिरिक्त भेदभाव सहना पड़ता है, साथ ही वे अन्य दलितों के लिए उपलब्ध सरकारी सहायता कार्यक्रमों से भी वंचित किये जा रहे हैं।

भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने 1950 में एक राष्ट्रपति के आदेश पर हस्ताक्षर किया, जिसमें कहा गया कि "हिंदू धर्म से अलग कोई भी धर्म अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।" बाद में सिख धर्म को(1956) से और बौद्ध धर्म को (1990) से दलितों के लिए लागू कानूनों से लाभ प्राप्त करने की अनुमति दी गई है।

उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति के सदस्यों को उनकी धार्मिक स्वतंत्रता से वंचित कर दिया गया है यह "संविधान में निहित है।"

भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अनुसूचित जाति एवं पिछड़े वर्ग के लिए बने विभाग के अध्यक्ष धर्माध्यक्ष अंथोनीसामी नीथीनाथान ने कहा कि दलित न केवल आर्थिक रुप से गरीब है परंतु राजनीतिक रूप से शक्तिहीन और सामाजिक रूप से बहिष्कृत हैं।

उन्होंने एक बयान में कहा, "मानव निर्मित जाति व्यवस्था जो पीढ़ियों से एक सामाजिक कलंक है, हमें विभाजित कर दी है, ताकि हम अपने जीवन में ईश्वर की असली उपस्थिति का अनुभव न कर सकें। पिता ईश्वर ने हमें बनाया ताकि हम उनके प्यारे बेटे बेटियाँ और ख्रीस्त के समान बन सकें। पर यथार्थ में हम मसीह के रहस्यमय शरीर के खिलाफ भेदभाव करके ईश्वर के लिए भी अजनबी बन गये हैं।"

धर्माध्यक्ष नीथीनाथन ने भी इस बात का दुःख व्यक्त किया कि वास्तव में दलित ख्रीस्तीय अक्सर अपने ही ख्रीस्तीय भाई-बहनों द्वारा भेदभाव का सामना करते हैं, जो अब भी प्रमुख जाति व्यवस्था के सामाजिक पूर्वाग्रहों को मानते हैं।

उन्होंने कहा कि रविवार 12 नवम्बर भारत में अनुसूचित जाति के सदस्यों को "सशक्तीकरण और उत्थान के लिए आशा देने का एक अवसर है।"








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