2017-11-11 14:43:00

विस्थापन के विरोध में आदिवासियों के साथ भारतीय धर्माध्यक्ष


नई दिल्ली, शनिवार, 11 नवम्बर 2017 (ऊकान): झारखंड के 214 गाँवों के हज़ारों लोगों को योजनाबद्ध तरीके से विस्थापित करने हेतु जंगली जानवरों द्वारा भय दिखाने का विरोध करने के लिए काथलिक धर्माध्यक्षों ने झारखंड के आदिवासियों का समर्थन दिया।

सरकार ने योजना बनायी है कि राज्य के चार जिलों में 296 हेक्टर जमीन पर हाथियों के रहने हेतु वन्य जीवों के लिए गलियारे का निर्माण किया जाएगा। इस निर्माण में सरकार को जमीन की आवश्यकता है।

मीडिया रिपोर्ट अनुसार विगत दशकों में यहाँ के जंगलों में रहने वाले हाथियों द्वारा हर साल करीब 59 लोगों की मौत हुई है। 

झारखंड स्थित सिमडेगा के धर्माध्यक्ष विंसेन्ट बारवा ने कहा कि लोगों के लिए इस योजना को समझना मुश्किल है ″क्योंकि एक ओर सरकार जंगल एवं आदिवासियों को बचाने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर, उन्हें विस्थापित करने का काम भी कर रही है।″

धर्माध्यक्ष बारवा जो भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के आदिवासी विभाग के शीर्ष हैं उन्होंने कहा कि धर्माध्यक्ष इस योजना को, हिन्दूत्व समर्थक सरकार द्वारा आदिवासियों को हाशिये पर जीवन यापन करने हेतु मजबूर करने एवं औद्योगिक कंपनियों के लिए उनकी जमीन पर कब्जा करने का नवीनतम रास्ता के रूप में देख रहे हैं। 

उन्होंने कहा कि सरकार विशाल हाथी कॉरिडोर के रूप में चिह्नित क्षेत्रों से लोगों को निकालने की योजना बना रही है। काम शुरू हो चुका है तथा लोगों को उन स्थलों से हटने हेतु अधिकारियों ने लोगों को नोटिस भी जारी किया है।

धर्माध्यक्ष ने कहा, ″किन्तु हम नहीं जानते हैं कि उन्हें कहाँ जाना है। सरकार ने इसके संबंध में कोई विकल्प नहीं बतलाया है। हमें समझ में नहीं आ रहा है कि एक चुनी गयी सरकार कैसे इस तरह व्यवहार कर सकती है।″ 

झारखंड के आदिवासी कार्यकर्ता ग्लैडशन डुँगडुँग ने ऊका समाचार से कहा कि सरकार ने हर प्रभावित परिवार को एक घर एवं एक मिलियन रूपये देने की प्रतिज्ञा की है ″किन्तु ये उन्हें कब और कहाँ मिलेगा, वह स्पष्ट नहीं है।″

उन्होंने कहा कि आदिवासी जीविका हेतु पीढ़ियों से जंगल पर निर्भर करते आये हैं तथा उससे बाहर जीने के लिए वे निपुण नहीं हैं। दूसरी बात है कि विकास परियोजनाओं के कारण इससे पहले भी आदिवासियों का कई बार विस्थापन हुआ है और प्रतिज्ञा के अनुसार उन्हें मुआवाज़ा नहीं दिया गया है।

डुँगडुँग ने कहा कि वर्तमान के इस योजना के कार्यान्वयन में करीब 25 हजार लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा।

धर्माध्यक्ष बरवा एवं डुँगडुँग के अनुसार सरकार लोगों को जंगल क्षेत्र से इसलिए हटाना चाहती है क्योंकि इसने एक पर्यटन विकसित परियोजना के लिए सितंबर 2016 में, कुछ कॉरपोरेट कंपनियों के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट अनुसार राज्य पर्यटन विभाग को आठ परियोजनाओं के माध्यम से  350 मिलियन डॉलर निवेश की उम्मीद है, जो 13,000 लोगों के लिए रोजगार पैदा कर सकता है।

जंगल क्षेत्र में निवेश का एक हिस्सा परियोजनाओं में जाएगा। राज्य पर्यटन विभाग ने पहले ही झारखंड में केबल कारों, साहसिक पर्यटन कार्यक्रमों, कल्याण आश्रम, कैंप और मॉल तथा विभिन्न प्राकृतिक दृश्यों के निर्माण की योजना बनाई है।

झारखंड की राजधानी राँची स्थित संत अल्बर्ड कॉलेज के सेवानिवृत प्राध्यापक, जेस्विट फादर विंसेंट टोप्पो ने कहा कि आदिवासी अगुओं को समझना होगा कि सरकार की योजनाएं आदिवासियों के हित में है अथवा हानि में, क्योंकि विकास के नाम पर आदिवासियों को हमेशा मूर्ख बनाया गया है। 

उन्होंने कहा कि विकास के नाम पर जब भी नई योजनाएँ लागू की गयी हैं आदिवासी उससे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। उनसे बड़ी मुआवजा की बात कही जाती है और सामाजिक आर्थिक विकास का लालच दिया जाता है किन्तु अंत में उन्हें कुछ नहीं मिलता।

धर्माध्यक्ष ने कहा कि झारखंड बिहार राज्य से सन् 2000 ई. में अलग राज्य बना ताकि यहाँ आदिवासियों का राज हो तथा वे सामाजिक-आर्थिक उन्नति कर सके जबकि हिंदूत्व समर्थक सरकार इस समय आदिवासी हितों के खिलाफ कार्य कर रही है।

पिछले साल से ही यह भूमि क़ानूनों में संशोधन करने का प्रयास कर रही है। राज्य में ख्रीस्तीय लोगों पर निशाना बनाकर धर्मांतरण विरोधी कानून पारित किया गया जहाँ अधिकर आदिवासी हैं।

झारखंड में करीब नौ मिलियन आदिवासी रहते हैं जो 33 मिलियन आबादी का 26 प्रतिशत है। राज्य के लगभग 1.5 मिलियन लोग ख्रीस्तीय हैं जिनमें से आधी जनसंख्या काथलिकों की हैं। 








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