2017-10-28 16:29:00

हिंसा प्रभावित ख्रीस्तीय मुआवजे के इंतजार में हैं


भुवनेश्वर, शनिवार, 28 अक्टूबर 2017 (उकान) : ख्रीस्तीय एकता वर्धक प्रतिनिधिमंडल ने ओडिशा राज्य सरकार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक साल पहले दिये गये ख्रीस्तीय-विरोधी हिंसा के शिकार लोगों को मुआवजे का भुगतान बढ़ाने के निर्देश को लागू करने की मांग की है।

छः ख्रीस्तीय नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल 25 अक्टूबर को कंधमाल जिले के अधिकारियों से आधिकारिक तौर पर मिला और ख्रीस्तीय-विरोधी हिंसा के शिकार लोगों को मिलने वाले मुआवजे के भुगतान में इतने लम्बे विलम्ब के लिए शिकायत की।

विदित हो कि कंधमाल में 2008 में हुए ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा के दौरान करीब 100 लोगों को मार डाला गया था जिसमें बुजुर्गों के साथ विकलांग लोग, बच्चे और महिलाएँ भी शामिल थीं, जबकि 56,000 लोग बेघर हो गये थे। करीब 300 गिरजाघरों, धार्मिक संस्थाओं एवं 600 घरों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस हिंसक घटना की शुरूआत हिन्दू नेता स्वामी लक्ष्मानन्द सरस्वती की हत्या के बाद हुई थी जिसका आरोप ख्रीस्तीयों पर लगाया गया था।

भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने 2 अगस्त 2016 में ओडिशा राज्य सरकार को ख्रीस्तीय-विरोधी हिंसा के शिकार लोगों को मुआवजे का भुगतान बढ़ाने के निर्देश दिये थे। भारतीय इतिहास में वह सबसे क्रूर ख्रीस्तीय-विरोधी हिंसा थी।

फादर अजय कुमार सिंह उन्हीं हिंसा के शिकार लोगों के लिए काम करते हैं उन्होंने ऊका न्यूज से कहा कि राज्य के उच्चाधिकारी ने बताया कि प्रशासनिक जटिलताओं की वजह से भुगतान में देरी हो रही थी, लेकिन दो महीने के अंदर ही भुगतान कर दिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि हर मृत व्यक्ति के नाम पर रिश्तेदारों को  300,000 रुपये (यूएस $ 4,600) के अतिरिक्त मुआवजे का भुगतान किया जाए, इसके अलावा 500,000 रुपये पहले ही आवंटित किए गए 39 मृत लोगों के परिवारों को आवंटित किए गए हैं।

साथ ही बढ़ते भुगतान का उन परिवारों के लिए भी आदेश दिया गया था जिनके घर पूरी तरह से नष्ट हो गए थे या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए थे।

फादर सिंह ने शिकायत की कि प्रारंभ में जो मुआवजा मिलना था वह भी नहीं दिया गया है। जितने भी लोग इस हिंसा में मरे थे और जितने भी धर एवं गिरजाघर नष्ट हुए थे, सभी सरकार की पहचान में नहीं थे। उन्होंने बताया कि हिंसा में करीब 100 मारे गये। पर सरकार ने सिर्फ 39 लोगों के लिए मुआवजा देने को राजी हुई है।

फादर सिंह ने कहा, "दस साल एक व्यक्ति के जीवन में एक लंबी अवधि है और न्याय में देरी करना उन्हें  न्याय से वंचित करना है, परंतु हमारे लोगों के लिए कानूनी लड़ाई जारी रहेगी।"








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