2017-09-05 15:32:00

संत पापा ने शालोम समुदाय के सदस्यों से मुलाकात की


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 5 सितम्बर 2017 (वीआर अंग्रेजी): संत पापा फ्राँसिस ने सोमवार 4 सितम्बर को वाटिकन में शालोम समुदाय के सदस्यों से मुलाकात की। मुलाकात के दौरान उन्होंने समुदाय के युवाओं के तीन सवालों का उत्तर दिया जिसमें उन्होंने संत पापा से प्रश्न किया था कि उदासीनता एवं निराशा से चिह्नित इस विश्व में वे अपने विश्वास का साक्ष्य किस तरह दे सकते हैं।

शालोम काथलिक समुदाय की स्थापना सन् 1980 ई. में ब्राजील के उत्तर पूर्व फ़ोर्टालेज़ा शहर में हुआ था। आज इसमें कुल 3,800 सदस्य हैं। यह समुदाय कई विभिन्न देशों में फैल चुका है तथा चिंतन-प्रार्थना, एकता एवं सुसमाचार के प्रचार पर विशेष ध्यान देता है।

चिले के जुआन नामक युवक के सवाल का उत्तर देते हुए संत पापा ने अपने आप से बाहर निकलने के महत्व पर प्रकाश डाला ताकि दूसरों के बीच ईश्वर के सुसमाचार का प्रचार किया जा सके। उन्होंने कहा, ईश्वर सदा हमारे साथ हैं, और हमारे जीवन के सबसे कठिन पलों में भी हमारा इंतजार करते हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह पिता अपने उड़ाव पुत्र का इंतजार बेसब्री कर रहा था यद्यपि पुत्र ने उनके विरूद्ध कई पाप किया था।

कलीसिया के जीवन एवं मिशन में युवा की भूमिका के प्रश्न पर एक फ्राँसिसी युवती को जवाब देते हुए संत पापा ने कहा कि आनन्द जो उदासी को परास्त करता है वह हमेशा अपने अंतःस्थल से प्रस्फुटित होता है।

अहंकार एक बीमारी है वह उदासी का मूल कारण है जो हमें हर दिन परेशान करता कि हम किस तरह अपनी वास्तविकता से अधिक अच्छे लगें। संत पापा ने इसे ″दर्पण की बीमारी″ की संज्ञा दी तथा उस दर्पण को तोड़ डालने एवं दूसरों को देखने की सलाह दी, जो आज के उपभोक्तावादी संस्कृति से बचने का एक उत्तम तरीका है।

मुलाकात में संत पापा ने एक ऐसे ब्राजीलियाई युवा के सवाल का भी उत्तर दिया जिसने शालोम समुदाय में प्रवेश करने पूर्व, नशीली पदार्थों के सेवन की बुरी लत में कई साल बीताया था।

संत पापा ने कहा कि जब व्यक्ति का जीवन नशीले पदार्थों के चंगुल में पड़ जाता है तब वह उसके मूल एवं उसके हृदय के करीब, सब कुछ को नष्ट कर देता है। संत पापा ने युवा को इससे बचने के लिए सचेत रहने की सलाह दी और कहा कि उन्होंने जो वरदान प्राप्त किया है उसे दूसरों के बीच बांटे।

अंततः संत पापा ने सभी सदस्यों को सलाह दी कि वे समुदाय के पुराने सदस्यों की प्रज्ञा से सीख लें, विशेषकर, अपने दादा-दादी से। उन्होंने उन्हें आपस में बातचीत करने की सलाह दी तथा बतलाया कि पीढ़ियों के बीच बातचीत का अभाव आज समाज में एक बड़ी चुनौती बन चुकी है। 








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