वाटिकन सिटी, बुधवार 30 अगस्त 2017, (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को आशा और यादगारी पर अपनी धर्मशिक्षा के दौरान संबोधित करते हुए कहा,
प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात,
आज मैं पुनः “आशा और यादगारी” जो एक महत्वपूर्ण विषयवस्तु है पर अपना चिंतन साक्षा करना चाहूँगा जो विशेष रुप से हमारी बुलाहट की ओर ध्यान आकृष्ट करता है। इस विषय की व्याख्या हेतु मैं येसु के प्रथम शिष्यों के बुलावे की चर्चा करूँगा। यह अनुभव उनके लिए इतना सजीव और प्रभावकारी था कि यह हमारे लिए एक विशिष्ट समय का वृतांत प्रस्तुत करता है, “उस समय अपाहृन के चार बज रहे थे।” (यो.1.39) सुसमाचार लेखक संत योहन अपनी वृद्धावस्था में अपने युवा काल में घटित उस घटना की याद करते हैं।
संत पापा ने कहा कि ये सारी घटनाएं यर्दन नदी के तट पर घटती हैं जहाँ योहन बपतिस्ता बपतिस्मा दिया करता था और गलीलिया के वे नवयुवक उसे अपने आध्यात्मिक सलाहकार के रुप में देखते थे। येसु योहन के पास बपतिस्मा लेने हेतु आये और दूसरे दिन जब वे वहाँ से पुनः गुजर रहे थे तो योहन उनकी ओर इंगित करते हुए अपने शिष्यों से कहते हैं, “देखो ईश्वर का मेमना।” (यो.1.36)
इतना सुनने की देर थी कि योहन के दो शिष्य अपने पहले गुरु को छोड़ कर येसु के पीछे हो लेते हैं। येसु उन्हें अपने पीछे आता देखकर एक निर्णायक सवाल पूछते हैं, “तुम क्या चाहते होॽ” संत पापा ने कहा कि सुसमाचार में हम येसु को मानव हृदय की थाह लेने वाले के रुप में पाते हैं। येसु उन दो नौजवानों से मिलते हैं जिनका हृदय व्याकुल है जो अधीर होकर किसी चीज की खोज कर रहे होते हैं। संत पापा ने कहा कि क्या युवा अपने सवालों का अर्थपूर्ण उत्तर पाये बिना जीवन में खुश रह सकते हैंॽ उन्होंने कहा कि वे युवा जो अपने जीवन में किसी चीज़ की खोज नहीं कर रहे होते तो वे समय से पहले ही बुढ़ापे की स्थिति को प्राप्त कर लेते हैं। इसके विपरीत हम येसु को पूरे सुसमाचार में एक “आग लगाने वाले” के रुप में पाते हैं विशेष कर उन हृदयों में जिनकी मुलाकात उनसे होती है। अतः शिष्यों को उनके द्वारा पूछा गया सवाल, “तुम क्या चाहते होॽ” हमारे लिए इस बात की ओर इंगित करता है कि हर युवा का दिल अपने में एक जीवन और खुशी को पाने हेतु उत्सुक है।
संत पापा ने कहा कि इस तरह योहन और अन्द्रेयस के बुलाहट की शुरूआत होती है। यह येसु के साथ एक मित्रता में प्रवेश करने की बात को हमारे लिए पेश करता है क्योंकि वे अपने को उनकी ओर आकर्षित होता हुआ पाते हैं। वे दोनों येसु का अनुसरण करते और अतिशीघ्र उनके प्रेरित बन जाते हैं। इसके साथ ही उनके संगे भाई सिमोन और जेम्स इस कड़ी में तुरंत जुड़ जाते हैं। यह एक ऐसा प्रभावकारी हृदयस्पर्शी मिलन था जो शिष्यों के दिल को आनंद से सराबोर कर दिया और वे अपने युवावस्था में इस दिव्य मिलन को जीवन भर नहीं भूल सकें।
संत पापा ने कहा कि हम अपनी बुलाहट को इस दुनिया में कैसे देखते हैंॽ यह कई रूपों में देखा जा सकता है लेकिन सुसमाचार का यह अंश हमारे लिए येसु से मिलन की खुशी को व्यक्त करता है। उन्होंने कहा कि चाहे हम विवाहित, समर्पित, पुरोहिताई जीवन क्यों न जी रहे हों हम प्रत्येक की बुलाहट येसु से मिलन द्वारा शुरू होती है जो हमें खुशी और एक नई आशा प्रदान करती है। यह हमें हमारे जीवन की कठिनाइयों के बावजूद उनसे मिलने हेतु आगे बढने को प्रेरित करता है जहां हम अपनी खुशी की परिपूर्णता को प्राप्त करते हैं।
ईश्वर हम से यह नहीं चाहते कि हम उनके पीछे खुशी की चाह लिये बिना आयें। वे हम प्रत्येक से यही आशा करते हैं कि उनके पीछे आते हुए हम अपने दिल में अनंत खुशी का अनुभव करें जो कि हमारे प्रतिदिन के जीवन को नवीन बनाता है। एक शिष्य जो ईश्वरीय राज्य हेतु खुशी ने भरा हुआ नहीं है वह इस दुनिया में सुसमाचार का प्रचारक नहीं होता है। येसु को प्रचारित करने हेतु उसे साहित्यशास्त्र में निपुण होने के बजाय अपनी आँखों में सच्ची खुशी की चमक को धारण करने की जरूरत है।
संत पापा ने कहा कि यही कारण है कि एक ख्रीस्तीय माता मरियम की भाँति अपनी आंखों में प्रेम की ज्वाला को धारण किये रहता है। उन्होंने कहा कि निश्चय ही हमारे जीवन में तकलीफ़ें हैं जहाँ हम अपने जीवन में कई उदासीन परिस्थितियों से हो कर गुजरते हैं लेकिन हम जानते हैं कि हमारे अंतरात्मा में एक पवित्र आग हमेशा के लिए एक बार प्रज्वलित की गई है। इस तरह हम अपने जीवन के निराशाजनक और दुःखद परिस्थिति से हार नहीं मानते। हम अपने जीवन में उनकी टीका-टिप्पणी से प्रभावित नहीं होते जो जीवन को निराशा और नकारात्मक भाव से देखते हैं। उनकी बातों हमें अपने जीवन में आगे बढ़ने से नहीं रोकती जो उत्साह, जोश और जीवन के हमारे त्याग को व्यर्थ की संज्ञा देते हैं। हम उनसे प्रभावित नहीं होते जो हमारे अंदर के युवा उत्साह और जोश को दमन करने की चाह रखते हैं बल्कि हम अपने में एक सुदृढ़ आदर्श को धारण करते हुए ईश्वरीय सोच और इच्छा अनुसार अपने जीवन की हक़ीक़तों के बावजूद साहस पूर्वक कदम बढ़ाते जाते हैं। हम एक नई क्षितिज को प्राप्त करने का ख्वाब देखते हैं और जब वह ख्वाब टूट भी जाता तो हम पुनः वास्तविकता की ओर अभिमुख होते हुए एक नये जोश में, नये स्वप्न को पुनः दिल में सँजोते हुए आगे बढ़ते हैं। संत पापा ने कहा कि यही हमारे ख्रीस्तीय जीवन का मूलभूत आयाम है जहाँ हम येसु ख्रीस्त, जो हमारे लिए प्रेम की ज्वाला हैं, हमें अपनी आशा में बने रहने हेतु मदद करते जिसके द्वारा हम अपने जीवन की परियोजना को पूरा करते हैं।
इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और माल्टा,
गिनी, फिलीपींस और कनाडा से आये सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया तथा
उन्हें ईश्वरीय विश्वास में मजबूत होने का आहृवान करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।
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