2017-08-24 16:58:00

संत पापा ने 68वें राष्ट्रीय धर्मविधि सप्ताह के प्रतिभागियों से मुलाकात की


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 24 अगस्त 2017 (रेई): संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार 24 अगस्त को राष्ट्रीय धर्मविधिक सप्ताह की स्थापना के 70वें वर्षगांठ के उपलक्ष्य में 68वें राष्ट्रीय धर्मविधिक सप्ताह के 800 प्रतिभागियों से, वाटिकन स्थित पौल षष्ठम सभागार में मुलाकात कर उन्हें धन्यवाद दिया तथा प्रोत्साहन दिया कि वे मूल प्रेरणा पर विश्वास रखना जारी रखें जो कि ईश प्रजा की प्रार्थना हेतु एक सेवा है।

उन्होंने कहा, ″धर्मविधिक सुधार का विकास अचानक नहीं हुआ बल्कि यह एक लम्बी तैयारी का परिणाम है। यह द्वितीय वाटिकन महासभा में दस्तावेज साक्रोसंतुम कोनचिलियुम के द्वारा पुष्ट किया गया है जिसका आम सुधार वास्तविक आवश्यकता तथा नवीकरण की ठोस आशा का प्रत्युत्तर देता है, यह कलीसिया के लिए जीवित धर्मविधि की चाह रखता है, रहस्य को मनाने के द्वारा पूरी तरह सजीव है।″

संत पापा ने कहा कि निर्देशन जो महासभा द्वारा रेखांकित कर दिया गया है धन्य संत पापा पौल षष्ठम द्वारा अनुमोदित, संशोधित धर्मविधिक किताबों में अभिव्यक्ति पाती है किन्तु धर्मविधिक किताबों में संशोधन किया जाना काफी नहीं है इसके साथ लोगों के मनोभाव में भी सुधार आने की आवश्यकता है। धर्मविधिक किताबों में संशोधन इस प्रक्रिया का पहला कदम था जो समय, निष्ठापूर्ण स्वीकृति, तत्पर साधना तथा विवेकशील कार्यान्वयन की मांग करता है। पहले भाग में याजकों का किन्तु उनके साथ ही साथ दूसरे सेवकों और निश्चय ही, उन सभी लोगों की सहभागिता है जो धर्मविधि में भाग लेते हैं।  

संत पापा ने धर्मविधि सुधार के प्रतिभागियों से कहा कि इस दिशा में अब भी काम किये जाने की आवश्यकता है, खासकर, धर्मविधिक सुधार हेतु लिए गये निर्णय के कारण का पता लगाना, निराधार और सतही पाठों पर काबू पाना, आंशिक स्वीकृति तथा वे अभ्यास जो इसे बिगाड़ देते हैं। उन्होंने कहा कि उनके चयन पर गौर करते हुए, सुधार पर पुनः चिंतन किये जाने का कोई सवाल नहीं है किन्तु अंदर के कारणों की बेहतर समझ, प्रेरणादायक सिद्धांतों को आत्मसात करने एवं उन अनुशासनों का पालन किये जाने की आवश्यकता है जो इसपर शासन करते हैं।

संत पापा ने कहा कि इस दण्डाधिकार के बाद एवं इस लम्बी यात्रा के पश्चात, हम दावा कर सकते हैं कि धर्मविधिक सुधार अपरिवर्तनीय है।

इस वर्ष के धर्मविधिक सप्ताह में चिंतन हेतु विषयवस्तु है, ″एक जीवित कलीसिया के लिए एक जीवित धर्मविधि।″

संत पापा ने उन्हें सम्बोधित करते हुए तीन मुख्य बिन्दुओं पर प्रकाश डाला-

1. जीवित ख्रीस्त की उपस्थित के कारण ही धर्मविधि जीवित है। ख्रीस्त ही धर्मविधि के केंद्र हैं।

2. धर्मविधि का जीवन ईश प्रजा के कारण है। स्वभाव से ही धर्मविधि लोकप्रिय है न कि याजकीय। यह लोगों के लिए है बल्कि लोगों के द्वारा भी।

3. धर्मविधि एक जीवन है न कि एक विचार जिसे समझा जाना चाहिए। यह हमें एक प्रारंभिक एहसास दिलाता है, एक परिवर्तनीय अनुभव जो हमारे सोच एवं कार्य की प्रणाली में परिवर्तन लाता है। यह ईश्वर के बारे हमारे विचारों को समृद्ध करने का सरल माध्यम नहीं है।

संत पापा ने कहा कि कलीसिया सचमुच जीवित है यदि वह ख्रीस्त के साथ एक ही शरीर का निर्माण करती है। यह जीवन का वाहिका है, माँ के समान है, मिशनरी है, यह बाहर जाकर पड़ोसियों से मुलाकात करती है, सांसारिक शक्तियों का अनुसरण किए बिना सेवा करने के लिए चौकस रहती है।

संत पापा ने अपना वक्तव्य समाप्त करते हुए गौर किया कि कलीसिया प्रार्थना में है जहां तक यह काथलिक है यह रोमन रीति के आगे जाती है अतः यह विस्तृत है तथापि इसके अंदर सिर्फ एक ही रीति है। पूर्व एवं पश्चिम की परम्परागत रीतियों का सामंजस्य, एक ही आत्मा कलीसिया को आवाज देती है, पिता की महिमा के लिए तथा संसार की मुक्ति के लिए ख्रीस्त के द्वारा और ख्रीस्त के साथ और ख्रीस्त में प्रार्थना करती है।  








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