2017-05-31 13:58:00

पवित्र आत्मा पर संत पापा की धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 31 मई 2017 (सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

पेंतेकोस्त महापर्व के संदर्भ में हम कलीसिया और पवित्र आत्मा के बीच के संबंध की चर्चा किये बिना नहीं रह सकते हैं। पवित्र आत्मा वह वायु है जो हमें हमारे जीवन में आगे बढने हेतु मदद करता है। वह हमारे जीवन का मार्ग प्रशस्त करते हुए हमें अनुभूति दिलाता है कि हम इस दुनिया में तीर्थयात्री के समान हैं जो अपने में कभी बैठे नहीं रह सकते और न ही कभी “विराम” की स्थिति में बने रह सकते हैं।

इब्रानियों के नाम संत पौलुस का पत्र हमारे लिए आशा को सुदृढ़ लंगर के सदृश प्रस्तुत करता है जो समुद्री लहरों के मध्य जहाज को आगे की ओर ले चलती है। हमारी आशा उसकी पाल की तरह है जो पवित्र आत्मा की शक्ति को हममें संचित करती और हमारे जीवन रूपी नाव को जीवन के तूफान भरी विभिन्न परिस्थितियों में आगे की ओर ले चलती है।

संत पौलुस रोमियों के नाम अपने पत्र में हमें कहते हैं, “आशा के स्रोत, ईश्वर आप लोगों को विश्वास द्वारा प्रचुर आनन्द और शांति प्रदान करे, जिससे पवित्र आत्मा के सामर्थ्य से आप लोगों की आशा परिपूर्ण हो।” (रोमि.15.13)

“आशा का ईश्वर”, यह अभिव्यक्ति ईश्वर को हमारी आशा का आधार केवल नहीं कहता, वरन् उनके साथ एक दिन अनंत जीवन में हमारे मिलन की बात कहता है। इसका अर्थ हमारे लिए यह भी है कि ईश्वर ही हैं जो हमें आशा में बनाये रखते और इस आशा में हमें जीवन की खुशी प्रदान करते हैं। आशा आप को आनन्दित बनाये रखे। (रोमि. 12.12) एक सुप्रसिद्ध कहावत “जब तक हमारा यह जीवन है हमारी आशा बनी हुई है” और इसके विपरीत एक दूसरी बात भी अपने में सच है कि जब तक आशा है तब तक जीवन है। संत पापा ने कहा मनुष्य को जीवन जीने हेतु आशा की जरूरत है और आशा में बन रहने हेतु पवित्र आत्मा की जरूरत है।

संत पौलुस हमें आशा में बने रहने का आह्वान करते हैं। आशा में बने रहने का अर्थ है अपने जीवन में निराश नहीं होना, वरन जीवन की सारी विषम परिस्थितियों में भी आशावान बने रहना। (रोमि. 4.18) अब्राहम के लिए यह अपने एक मात्र बेटे को ईश्वर के आज्ञानुसार बलि चढाना था और माता मरियम को विकट परिस्थिति में अपने बेटे येसु के क्रूस के नीचे खड़ा होना था।

पवित्र आत्मा हमारे हृदय की गहराई में इस बात की प्रेरणा देते हुए कि हम ईश्वर की संतान और उनके उत्तराधिकारी हैं, आशा से रूबरू करता है। “उसने अपने निजी पुत्र को भी नहीं बचाया, उसने हम सब के लिए उसे समर्पित कर दिया। तो, इतना देने के बाद क्या वह हमें सब कुछ नहीं देगाॽ” (रोमि.8.32) “आशा व्यर्थ नहीं होती क्योंकि ईश्वर ने हमें पवित्र आत्मा प्रदान किया है और उसके द्वारा ही ईश्वर का प्रेम हमारे हृदयों में उमड़ पड़ा है।” (रोमि. 5.5)

संत पापा ने कहा कि पवित्र आत्मा न केवल हमें आशा में बने रहने को प्रेरित करता बल्कि वह हम में आशा के बीज बोता है जिससे द्वारा हम अपने जीवन में अन्यों के लिए, विशेषकर, अपने भाई-बहनों के लिए सहायक बनते, उनकी देख-रेख और रक्षा करते हैं। धन्य कार्डिनल न्यूमैन ने अपने प्रवचन में विश्वासियों से कहा था, “अपने जीवन में अपने दुःखों और अपनी तकलीफों द्वारा हम शिक्षा ग्रहण करते हैं, वास्तव में, हम अपने पापों के कारण अपने मन और हृदय में जरूरमंदों की स्नेहमय सहायता करने हेतु आगे आना सीखते हैं। हम अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार अन्यों के लिए सहायता, परामर्श और सांत्वना के स्रोत बनते हैं। हमारे शब्द और हमारी सलाह, हमारे कार्य करने के तरीके, हमारी आवाज और हमारी नजरें नर्म और कोमल बनते हैं। हमारे जीवन में गरीब, परित्यक्त और नाकारे भाई-बहनों को हमारे प्रेम की आवश्यकता है।

पवित्र आत्मा न केवल हमारे हृदयों में आशा को जागृत करता वरन् सारी सृष्टि में इसे प्रसारित करता है। संत पौलुस कहते हैं, “यह सृष्टि को जो इस संसार की असारता के अधीन हो गयी है-अपनी इच्छा से नहीं, बल्कि उसकी इच्छा से, जिसने उसे अधीन बनाया है- किन्तु यह आशा भी बनी रही कि वह असारता की दासता से मुक्त हो जायेगी और ईश्वर की संतान की महिमामय स्वतंत्रता की सहभागी बनेगी। हम जानते हैं कि समस्त सृष्टि अब तक मानो प्रसव-पीड़ा में कराहती रही है और सृष्टि ही नहीं, हम भीतर-ही-भीतर कराहते हैं।” (रोमि.8. 20-22) संसार को संचालित करने वाली शक्ति कोई अज्ञात अंधी शक्ति नहीं है बल्कि यह ईश्वर का आत्मा है जो सागर पर विचरण करता है। यह हमें सारी सृष्टि का सम्मान और उसकी देख-रेख करने को प्रेरित करता है।  

पेंतेकोस्त का त्योहार हमें माता मरियम येसु की मां और हमारी माँ के साथ प्रार्थना में संलग्न पायें जिससे कि हम आत्मा के वरदानों से अपने को विभूषित कर पायें जो हममें आशा का संचार करता है।
इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया। संत पापा फ्रांसिस ने विशेष रूप से काथलिक करिश्माई नवीकरण की पचासवीं वर्षगांठ के अवसर पर पेन्तेकोस्त प्रार्थना में भाग लेने आए प्रतिभागियों का अभिवादन किया और उन पर पवित्र आत्मा की आशीष और वरदानों की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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