2017-05-16 15:42:00

येसु प्रदत्त शांति कष्टों के बीच भी बनी रहती है


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 16 मई 2017 (वीआर सेदोक): सच्ची शांति हम खुद नहीं ला सकते, यह पवित्र आत्मा का वरदान है। यह बात संत पापा फ्राँसिस ने मंगलवार 16 मई के वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मर्था के प्रार्थनालय में ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए प्रवचन में कही।

संत पापा ने ″शांति जो क्रूस के बिना मिलती है, येसु की शांति नहीं है″ पर प्रकाश डाला तथा स्मरण दिलाया कि कठिनाइयों के बीच मात्र ख्रीस्त हमें शांति प्रदान कर सकते हैं।

प्रवचन में उन्होंने सुसमाचार पाठ के उस अंश पर चिंतन किया जहाँ येसु अपने शिष्यों को शांति प्रदान करते हैं। ″मैं तुम्हारे लिए शांति छोड़ जाता हूँ। अपनी शांति तुम्हें प्रदान करता हूँ।″ उन्होंने प्रभु द्वारा प्रदान किये गये शांति का अर्थ समझाया।

प्रेरित चरित से लिए गये पाठ की ओर विश्वासियों का ध्यान आकृष्ट करते हुए संत पापा ने संत पौलुस एवं बरनाबस द्वारा सुसमाचार प्रचार के दौरान उठाये गये कष्टों की ओर संकेत करते हुए  सवाल किया कि क्या यही शांति है जिसे येसु हमें प्रदान करते हैं? संत पापा ने इस बात पर भी गौर किया कि येसु हमें जो शांति प्रदान करते हैं वह दुनिया की शांति नहीं है। 

उन्होंने कहा कि दुनिया जो शांति हमें प्रदान करती है वह कठिनाईयों से रहित है, एक कृत्रिम शांति है और मात्र शांत रहने तक सीमित है। यह एक ऐसी शांति है जो सिर्फ अपने लाभ और आश्वासनों को देखती है ताकि उनमें से कुछ भी न खो जाए। संत पापा ने उसे एक धनी ग़ोताख़ोर की शांति कहा जो अपने में बंद होकर बाहर कुछ भी नहीं देख सकता। दुनिया प्रदत्त शांति हमें जीवन की सच्चाई अर्थात् दुःख को देखने नहीं देती है। यही कारण है कि संत पौलुस विश्वासियों को ढाढ़स बँधाते हुए कहते हैं, ″हमें बहुत सारे कष्ट सह कर ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना है।″

संत पापा ने प्रश्न किया कि क्या कष्टों के बीच शांति प्राप्त किया जा सकता है? उन्होंने कहा, ″जी नहीं, पीड़ा, बीमार एवं मृत्यु जैसे विभिन्न कष्टों के कारण हम खुद शांति का निर्माण नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि शांति हमें येसु प्रदान करते हैं जो एक वरदान है पवित्र आत्मा का वरदान। यह शांति कष्टों के बीच भी बनी रहती है।

ईश्वर की शांति एक वरदान है जो हमें आगे बढ़ने में मदद देती है। अपने शिष्यों को शांति प्रदान करने के पश्चात् येसु ने ज़ैतून की वाटिका में कष्ट उठाया। वहाँ उन्होंने सब कुछ पिता की इच्छा को अर्पित किया तथा कष्ट को स्वाकार किया किन्तु उस समय उसे ईश्वर से कोई सांत्वना नहीं मिली। सुसमाचार बतलाता है कि स्वर्ग से एक दूत ने आकर उन्हें सांत्वना प्रदान किया।   

ईश्वर की शांति एक सच्ची शांति है जो वास्तविक जीवन से होकर गुजरती है जो जीवन की उपेक्षा नहीं करती। दुनिया में दुःख, बीमारी, युद्ध और कई तरह की बुरी चीजें हैं किन्तु अंदर से मिलने वाली शांति उनसे बाधित नहीं होती, वह दुःख एवं पीड़ाओं का सामना करती है। क्रूस के बिना शांति येसु की शांति नहीं है। इसे हम खुद ला सकते हैं किन्तु यह स्थायी नहीं होता।

संत पापा ने कहा कि जब कोई नाराज रहता है तो वह कहता है कि मैं शांति खो चुका हूँ। उन्होंने कहा कि हम तभी परेशान रहते हैं जब हम येसु की शांति के लिए अपना हृदय नहीं खोलते क्योंकि हम दुःखों एवं पीड़ाओं के साथ जीवन को स्वीकार नहीं कर सकते हैं। ऐसे समय में हमें प्रभु से शांति की कृपा के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

शांति की कृपा द्वारा हम आंतरिक शांति को बनाये रख सकते हैं। संत अगुस्टीन ने कहा है, ″ख्रीस्तीय जीवन दुनिया के अत्याचार एवं ईश्वर की सांत्वना के बीच एक यात्रा है।″

संत पापा ने प्रार्थना की कि प्रभु हमें पवित्र आत्मा द्वारा प्रदान की जाने वाली शांति को स्वीकार करने की कृपा प्रदान करे। 








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