2017-05-13 18:39:00

फातिमा की ज्योति हमारी रक्षा करती है


पुर्तगाल, शनिवार, 13 मई (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने पुर्तगाल, फातिमा की अपनी दो दिवसीय तीर्थयात्रा के दौरान फातिमा में रोजरी की माता महागिरजाघर में मिस्सा बलिदान अर्पित किया।

संत पापा ने पवित्र यूख्रारिस्त बलिदान के दौरान अपने प्रवचन में कहा कि हमारी एक अति सुन्दर मां है जैसे कि आज से सौ साल पूर्व 13 मार्च को फातिमा में मिले दर्शन के बाद दर्शन प्राप्त बच्चों ने एक दूसरे के साथ बातें करते हुए कहा था। संत योहन भी अपने सुसमाचार में हमें कहते हैं, “यह तुम्हारी माता है।” (यो.19.27) उस रात को जसिंता अपने में इस बात को गुप्त नहीं रख सकी और उनसे अपनी माँ से कहा, “आज मैंने माता मरियम को देखा।” उन्होंने स्वर्ग में माता मरियम के दर्शन किये थे। हम में से कितने हैं जो माता मरियम को देखने की चाह रखते हैं लेकिन हम उन्हें नहीं देख पाते हैं। कुंवारी माता हमारे यहाँ नहीं हैं जिससे कि हम उन्हें देख सकें। उन्हें देखने हेतु हमें अनंत राज्य में प्रवेश करना की आवश्यकता है, हमें स्वर्ग जाने की जरूरत है।

संत पापा ने कहा कि माता मरियम ने हमें इस बात से सतर्क किया कि हम कैसे अपने कार्यों के द्वारा ईश्वर को उनके सृष्टि प्राणियों में अपमानित करते हैं जो सदैव हमें नरक की ओर ले चलता है। मरियम हमें इस बात की याद दिलाने हेतु आती हैं कि ईश्वरीय ज्योति हम में निवास करती और हमें सुरक्षित रखती है। लुसी के द्वारा दिये गये बयान के अनुसार तीन बच्चे ईश्वर की ज्योति से घिरे पाये गये और यह माता मरियम के द्वारा प्रविष्ट हुई। वे उन्हें अपने ज्योतिर्मय वस्त्र में लपेट लेती हैं जो उन्हें ईश्वर की ओर से प्राप्त है। बहुत से तीर्थयात्रियों के अनुभव द्वारा हम इस बात से अवगत किये जाते हैं कि फातिमा की ज्योति हमारी रक्षा करती है। हमें माता मरियम के इस सुरक्षा में पनाह लेते हुए यह उच्चरित करने की आवश्यकता है, “प्रणाम मरियम, हमें येसु के पास ले चलिए।”

संत पापा ने कहा कि हमारी एक माता है। हम बच्चों की माफिक उनसे चिपकते और आशा में बने रहते हैं जो येसु में निहित है जैसा कि आज का दूसरा पाठ हमें कहता है, “जिन्हें ईश्वर की कृपा तथा पाप मुक्ति का वरदान प्रचुर मात्रा में मिलेगा, वे एक ही मनुष्य ईसा मसीह के द्वारा जीवन का राज्य प्राप्त करेंगे।” (रोमि. 5.17) येसु हमारे लिए स्वर्गीय पिता की मानवता को लेकर आते हैं और हम उसी मानवता में आशा युक्त बने रहते हैं। यही वह आशा है जो हमें सदैव सजीव बनाये रखती है।

इसी आशा में मजबूत बन रहते हुए हम सभी यहाँ विगत सौ सालों में ईश्वर से मिले मूल्यवान कृपादानों हेतु अपनी कृतज्ञता अर्पित करने को जमा हुए हैं। इसे हम संत फ्रांसिस, संत जसिंता के उदाहरणों में देख सकते हैं जिन्हें कुंवारी मरियम ने अपनी ईश्वरीय ज्योतिमय सागर से सराबोर करते हुए आराधना करने की शिक्षा दी। यह उनके दुःख और प्रतिरोध की स्थिति में साहस का कारण बना। ईश्वर की उपस्थिति उनके जीवन में सदैव बनी रही जिसके कारण वे अपने जीवन में पापियों के मन फिराव हेतु निरंतर प्रार्थना में संलग्न रहे और उनका हृदय वेदी में उपस्थिति येसु के निकट बने की तमन्ना से सदैव प्रबल रहा।

अपने संस्मरण (III, 6) में  सिस्टर लुसी, जसिंता के बारे में कहती हैं जिन्हें दिव्य दर्शन प्राप्त हुए थे, “क्या तुम उस गलियों, चौवराहों और खेतों में भरे हुए लोगों को नहीं देखती हो जो खाद्य सामग्री का माँग करते हुए रोते हैं फिर भी उन्हें खाने को कुछ नहीं मिलता हैॽ और संत पिता गिरजाघर में माता मरियम के निष्कलंक हृदय के सामने प्रार्थना कर रहे हैंॽ और बहुत से लोग उनका साथ देने में संलग्न हैंॽ” संत पापा फ्राँसिस ने सभी विश्वासी भक्तों के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करते हुए कहा कि मेरे साथ यहाँ आने के लिए धन्यवाद। मैं यहाँ माता मरियम की आराधना करने और विशेष रुप से उनके बेटे-बेटियों को उन्हें सुपुर्द करने को आता हूँ। उनकी छत्र छाया में वे नहीं खोते और उनके आलिंगन से उन्हें आशा और शांति मिलती है जो उनकी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मैं विशेष रुप से उन लोगों के लिए आशीष की कामना करता हूँ जो रोगी, असहाय, बंदी, बेरोजगार, गरीब और परित्यक्त हैं। उन्होंने विश्वासी समुदाय से आहृवान किया कि वे आशा के साथ ईश्वर से प्रार्थना करें कि दूसरे उनकी सुनें, और इस तरह हम अपनी निश्चितता में अन्यों से वार्ता करें कि ईश्वर हमारी सहायता करेंगे।

वास्तव में ईश्वर ने हमें इसलिए बनाया है कि हम अन्यों के लिए उनकी स्थिति के अनुरूप आशा का कारण बन सकें। एक दूसरे की “चिंता” और “सेवा” के द्वारा हम अपने उत्तरदायित्व का निर्वाहन करते जिसके द्वारा ईश्वर हमारे उदासीन और सुषुप्त हृदय को क्रियाशील बनाते हैं। हमारा जीवन हमारी उदारता के कारण सजीव बनता है। “जब तक गेहूँ का दाना मिट्टी में गिर कर नहीं मर जाता अकेला ही रहता है, लेकिन यदि वह मर जाता तो बहुत फल देता है।” (यो.12.24) येसु ख्रीस्त जो हमारे जीवन में सदा हमारे साथ चले उन्होंने ऐसा कहा और ऐसा किया है। जब हम अपने जीवन में क्रूस का अनुभव करते तो हम अनुभव करें कि उन्होंने स्वयं इसका अनुभव हमसे पहले किया है। हम येसु को पाने हेतु क्रूस पर आरोहित नहीं किये जाते वरन् येसु हमें पाने हेतु अपने को क्रूस के काठ पर अर्पित कर देते हैं जिससे वे हमारे हृदय के अंधकार रुप बुराई को दूर कर सकें और हमें पुनः ज्योति में ला सकें।

संत पापा ने कहा कि मरियम की सुरक्षा में हम प्रभात की दुनिया में प्रवेश कर सकें, येसु ख्रीस्त के सच्चे चेहरे को जिसे वे अपने पास्का में हमारे लिए प्रस्तुत करते हैं देख सकें और उन पर चिंतन कर सकें। इस तरह हम कलीसिया के युवा और सुन्दर चेहरे को पुनः देख सकेंगे जो अपनी प्रेरिताई में अन्यों का स्वागत करती, विश्वासी बन दूसरों को स्वतंत्रता प्रदान करती, अपनी निर्धनता में भी निष्ठावान बन रहती और अपने को प्रेम में धनी बनाये रखते हुए सदैव अपने में चमचमाती है।








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