2017-05-02 10:25:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचयः स्तोत्र ग्रन्थ भजन 83 एवं 84


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। ...

"उनके राजकुमारों को ओरेब और ज़एब के सदृश बना दे, उनके सब सामन्तों को ज़बह और सलमुन्ना के सदृश, जो यह कहते थे, "हम ईश्वर के चरागाहों को अपने अधिकार में कर लें"। मेरे ईश्वर! उन्हें बवण्डर के पत्तों के सदृश, पवन में भूसी के सदृश बना दे।" श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 83 वें भजन के अन्तिम पद। विगत सप्ताह हमने इन्हीं पदों की व्याख्या से पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। 83 वाँ भजन शत्रुओं के विरुद्ध प्रभु ईश्वर से की गई इस्राएल की याचना है जिसमें भजनकार कहता है, "ईश्वर! मौन न रह। ईश्वर! शान्त और निष्क्रिय न रह। देख! तेरे शत्रु सक्रिय हैं, तेरे बैरी सिर उठा रहे हैं।" इस्राएल की अपेक्षा थी कि ईश्वर स्वतः को उनके उद्धारकर्त्ता रूप में प्रकट करें।

भजनकार यहाँ तक कह डालता है कि प्रभु शत्रुओं को भूसा बना दें, कहता है, "मेरे ईश्वर! उन्हें बवण्डर के पत्तों के सदृश, पवन में भूसी के सदृश बना दे।" वह दुःखी होकर इतिहास के प्रति अभिमुख होता है तथा ईश्वर को याद दिलाता है कि उन्होंने किस-किस तरह इस्राएल की रक्षा की थी किन्तु यह भूल जाता है कि उन दिनों में इस्राएल युवा था जबकि अब आमोस, मीकाह, होज़ेया तथा इसायाह जैसे महान नबियों की वाणी सुन-सुन कर परिपक्व हो चुका था। इन नबियों ने इस्राएल को ईश्वर के मार्ग से परिचित कराया था जिनके दृष्टिकोण सैमसन और गिदियोन से कहीं अधिक श्रेष्ठकर थे। आगे के पदों में भजनकार, मानों, दुष्टों को अभिशाप देते हुए कहता है, "जिस तरह आग जंगल को भस्म कर देती है, जिस तरह ज्वाला पर्वतों को जलाती है, उसी तरह अपने तूफान से उनका पीछा कर, अपनी आँधी से उन्हें आतंकित कर। प्रभु! उनका मुख कलंकित कर, जिससे लोग तेरे नाम की शरण आयें। वे सदा के लिये लज्जित और भयभीत हों और कलंकित होकर नष्ट हो जायें। वे जान जायें कि तेरा ही नाम प्रभु है, तू ही समस्त पृथ्वी पर सर्वोच्च ईश्वर है।" 

श्रोताओ, इन शब्दों में हम मनुष्य की निस्सहायता और व्यर्थता को देखते हैं। उसकी बेकरारी और बेचैनी को देखते हैं। उसके मन में बस एक ही ख़्याल आता है और वह यह कि उसे कष्ट देनेवाला सदा के लिये नष्ट हो जाये। भूसी के सदृश वह आँधी के साथ उड़ जाये, आग में भस्म हो जाये इत्यादि, इत्यादि। इसी बीच, अचानक उसके मन में यह बात भी आती है कि ईश्वर के कार्य देखकर लोग उनकी शरण जायें। ग़ौर करें कि इस प्रकार के ख़्याल कभी-कभी हमारे मन में भी उठते हैं। वस्तुतः, मानव स्वभाव ही ऐसा है, ईश्वर को तो वह पुकारता है किन्तु साथ ही अन्यों को अभिशाप देता है, अन्यों के लिये अपशब्द बोलता है। अपनी इस निस्सहायता में वह ईश्वर की दुहाई देता है कि प्रभु चमत्कार करें और भजनकार के सदृश कहता है, "जिससे वे जान जायें कि तेरा ही नाम प्रभु है, तू ही समस्त पृथ्वी पर सर्वोच्च ईश्वर है।"

अब आइये स्तोत्र ग्रन्थ के 84 वें भजन पर दृष्टिपात करें। 12 पदों वाला यह भजन, पर्वों के अवसरों पर आयोजित की जानेवाली, तीर्थयात्राओं में गाया जानेवाला भजन है। इसमें यह तथ्य प्रकाशित किया गया है कि हज़ार दिनों तक कहीं और रहने की अपेक्षा एक दिन ईश्वर के प्राँगण में व्यतीत करना सुखद है। इस भजन के प्रथम चार पद इस प्रकार हैं, "विश्वमण्डल के प्रभु! कितना रमणीय है तेरा मन्दिर! प्रभु का प्राँगण देखने के लिये मेरी आत्मा तरसती रहती है। मैं उल्लास के साथ तन-मन से जीवन्त ईश्वर का स्तुतिगान करता हूँ। गौरया को बसेरा मिल जाता है, अबाबील को अपने बच्चों के लिये घोंसला। विश्व मण्डल के प्रभु! मेरे राजा! मेरे ईश्वर! मुझे तेरी वेदियाँ प्रिय हैं।" 

श्रोताओ, हमारा नववर्ष क्रिसमस के आठ दिन बाद आता है जिसे हम बड़े धूमधाम से मनाते हैं। प्रायः तो इसे एक धार्मिक पर्व भी नहीं माना जाता है और सभी लोग नववर्ष का जश्न आतिशबाज़ियों, खान-पान एवं महंगे कपड़ों और साथ ही नई प्रतिज्ञाओं आदि से मनाते हैँ। प्राचीन व्यवस्थान के युग में नववर्ष सितम्बर माह के अन्तिम दिनों में पड़ता था और यह एक धार्मिक पर्व था। यह एक गहन आध्यात्मिक और पवित्र दिन हुआ करता था, इसलिये कि इसी दिन लोग सृष्टिकर्त्ता ईश्वर की चमत्कारिक रचनाओं पर चिन्तन करते तथा उनके लिये ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया करते थे। वे उसी प्रकार प्रभु ईश्वर का स्मरण किया करते थे जैसा कि उत्पत्ति ग्रन्थ के पहले अध्याय के पहले पद में किया गया है, "प्रारम्भ में ईश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी की सृष्टि की।" इस प्रकार इस्राएल के लोग यह याद किया करते थे कि प्रभु ईश्वर सृष्टिकर्त्ता हैं, वे सबकुछ को अनवरत नया करते रहते हैं। वस्तुतः, सितम्बर माह का अन्त तथा अक्टूबर माह का आरम्भ कृषि वर्ष का भी आरम्भ हुआ करता था और अपनी फसलों में लोग प्रभु ईश्वर के प्रेम के दर्शन किया करते थे।

इस्राएली लोग सृष्टि की रचना के पर्व को मनुष्य के प्रति प्रभु ईश्वर के असीम प्रेम एवं उनकी महती दया के पर्व रूप में भी मनाते थे। इसीलिये यह पर्व "दया और क्षमा" का भी पर्व कहलाता था और इसी अवसर पर वे 84 वें भजन के रूप में हमारे समक्ष प्रस्तुत गीत को गाया करते थे। वे कहते हैं, "विश्वमण्डल के प्रभु! कितना रमणीय है तेरा मन्दिर! प्रभु का प्राँगण देखने के लिये मेरी आत्मा तरसती रहती है। मैं उल्लास के साथ तन-मन से जीवन्त ईश्वर का स्तुतिगान करता हूँ।       

इस प्रकार श्रोताओ, इस्राएल ने नववर्ष को प्रभु से वर्षा के आने के लिये प्रार्थना का दिवस माना था ताकि वर्षा के पानी से सूखी हुई भूमि फिर से उर्वरक बन जाये। उन्होंने उसे प्रभु की सृष्टि पर मनन-चिन्तन का दिन माना था क्योंकि उन्हें विश्वास था कि जिस तरह गौरया को बसेरा मिल जाता है प्रभु ईश्वर द्वारा सृजित मनुष्य भी प्रभु ईश्वर का कृपा पात्र बनेगा तथा उनके संरक्षण में जीवन यापन करने का गौरव प्राप्त करेगा।








All the contents on this site are copyrighted ©.