2017-04-29 17:23:00

संत पापा का कॉप्टिक ऑरथोडोक्स कलीसिया के धर्मगुरु को संबोधन


काहिरा, शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017 (सेदोक): काथलिकों के सार्वभौमिक धर्मगुरू संत पापा फ्रांसिस ने अपनी मिस्र की दो दिवसीय प्रेरितिक यात्रा के दौरान शुक्रवार 28 अप्रैल को काहिरा के कॉप्टिक ऑरथोडोक्स महागिरजाघर में कॉप्टिक ऑरथोडोक्स कलीसिया के धर्मगुरु तावाद्रोस द्वितीय से मुलाकात की और अपने संबोधन के दौरान हिंसा के रोकथाम पर जोर देते हुए विश्व को ख्रीस्त के प्रेम का साक्ष्य देने पर बल दिया। 

इस मुलाकात के दौरान उन्होंने कहा कि हमने फिलहाल ही प्रभु के पुनरुत्थान का महोत्सव मनाया है जो ख्रीस्तीय जीवन का केन्द्र बिन्दु है। हम पुनरुत्थान के संदेश को घोषित करते और प्रथम शिष्यों की अनुभूति को यह उच्चरित करते हुए अपने जीवन में जीने की कोशिश करते हैं, “वे येसु को देख कर आनंदित हुए।” (यो.20.20) पास्का की यह खुशी हमारा प्रेममय मधुर आलिंगन शांति की एक निशानी है। एक तीर्थयात्री के रुप में मैं सहृदय अपनी कृतज्ञता अर्पित करता हूँ क्योंकि मेरा यहाँ आना निश्चय ही एक भाई के रुप में मुझे बहुप्रतीक्षित कृपाओं से भर देगा। मुझे इस प्रेममय मिलन की प्रतीक्षा थी क्योंकि मैं प्रत्यक्ष रुप से आपके धर्मगुरु की रोम यात्रा की याद करता हूँ जिसे उन्होंने 10 मई 2013 को अपने निर्वाचन के उपरान्त किया था। वह दिन कॉप्टिक और ख्रीस्तीय कलीसिया की मित्रतापूर्ण मिलन की वर्षगाँठ को याद करने का एक अवसर बना।

संत पापा ने कहा कि जब हम अन्तरकलीसियाई यात्रा में खुशी पूर्वक आगे बढ़ रहे हैं तो मैं संत  पेत्रुस और संत मारकुस, इन दोनों धर्मपीठों के संबंधों की केन्द्र-बिन्दु को याद करता हूँ जिसकी घोषणा करते हुए हमारे पूर्वाधिकारी ने एक सामान्य घोषणा पर 10 मई सन् 1973 को हस्ताक्षर किया था। सदियों के “कठिन इतिहास” जहाँ ईश शास्त्र में भिन्नता और कई गैर-धार्मिक कारकों का विकास उनका प्रसार और उनकी बढ़ोतरी ने हमारे बीच अविश्वास को जन्म दिया लेकिन उस दिन ईश्वर की कृपा से हमने इस बात में आपसी सहमति जताई कि “येसु ख्रीस्त अपनी दिव्यता में सम्पूर्ण ईश्वर और अपनी मानवता में पूर्ण मानव हैं।” (Common Declaration of Pope Paul VI and Pope Shenouda III, 10 May 1973). 

इस घोषणा के तुरन्त बाद के महत्वपूर्ण शब्द जहाँ हम येसु को “हमारे प्रभु, ईश्वर, मुक्तिदाता और राजा की संज्ञा” देते हैं। इन शब्दों के माध्यम से संत मारकुस और संत पेत्रुस के धर्मपीठ येसु के प्रभुत्व को घोषित करते हैं। इसके साथ ही हम इस बात को स्वीकार करते हैं कि हम येसु के हैं वे हमारे सब कुछ हैं।

उन्होंने कहा कि इससे भी बढ़कर हम इस बात का अनुभव करते हैं कि हमारा संबंध उनके साथ है अतः उनके शिष्यों के रुप में हम अलग-अगल मार्ग में नहीं चल सकते क्योंकि यह उनकी शिक्षा को खंडित करता है, “हम एक हों जिससे विश्व हम पर विश्वास करे।” (यो.17.21) ईश्वर अपनी नजरों में हमें पूर्ण एकता में बने रहने का आहृवान करते हैं। संत पापा जोन पौल द्वितीय इस बात पर बल देते हुए कहते हैं, “हमें इसे खोने हेतु समय नहीं है। येसु ख्रीस्त में हमारी एकजुटता, पवित्र आत्मा और एक बपतिस्मा हमारे लिए एक मूलभूत सच्चाई की ओर इंगित करता है।” (अन्तर कलीसियाई संगोष्टी, 25 फरवरी 2000) इसके परिणाम स्वरूप हमारे विश्वास के कारण हमारे बीच एक प्रभावकारी एकता स्थापित होती है जिसकी नींव स्वयं येसु हैं और हम उनमें एक नई सृष्टि बनते हैं। “एक ही शरीर है, एक ही आत्मा और एक ही आशा, जिसके लिए हम लोग बुलाये गये हैं।” (एफे.4.5)

यह एक प्रेरणात्मक यात्रा है जहाँ हम अपने में अकेले नहीं हैं वरन् येसु ख्रीस्त हमारे साथ चलते और हमारी सुरक्षा करते हैं। इस यात्रा में हम अपने महान संतों और लोहू गवाहों का सानिध्य प्राप्त हैं जो ईश्वरीय एकता में निवास करते हुए हमें अपने जीवन में एक सजीव “नवीन येरुसालेम” बनने को प्रेरित करते हैं। उन संतों के बीच हम पेत्रुस और मारकुस को अपने प्रतिदिन के जीवन में पाते हैं। वे एक-दूसरे के साथ एक विशेष एकता में संलग्न थे। संत मारकुस अपने सुसमाचार के केन्द्र बिन्दु में संत पेत्रुस के विश्वास उद्घोषणा की चर्चा करते हैं, “आप मसीह हैं।” यह उत्तर येसु के एक अति आवश्यक प्रश्न का है, “और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँॽ (मार.8.29) आज बहुत से लोग इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकते हैं लेकिन हम जो इसका जवाब देने को सक्षम हैं उन्हें येसु को जाने की एक विशेष खुशी होती है। हमें उन्हें एक साथ जानने की एक अत्यन्त खुशी की अनुभूति होती है।

संत पापा ने कहा कि हम सब एक साथ मिलकर अपने विश्वास को विश्व के सामने व्यक्त करते हुए उनका साक्ष्य देने हेतु बुलाये गये हैं, विशेषकर, अपने जीवन के द्वारा जिससे हम अपने आचार-विचार और व्यवहार के माध्यम से व्यक्त करते और उनकी उपस्थिति का एक ठोस प्रेम पूर्ण संवाद प्रस्तुत करते हैं। काप्टिक ऑरथोडक्स और काथलिक कलीसिया के रुप में हम एक साथ मिलकर इस प्रेम की भाषा को अपने भाई-बहनों के बीच अपने कार्यों के द्वारा कर सकते हैं जो येसु पर विश्वास करते हैं। इस तरह हम अपने जीवन के द्वारा एकता की एक मजबूत मिसाल पेश कर सकते हैं जहाँ पवित्र आत्मा, निश्चय ही, हमारे लिए आशातीत मार्गों का खुलासा करेंगे।

संत पापा ने संत पेत्रुस और संत मारकुस के बीच प्रेमपूर्ण संबंध को जिक्र करते हुए कहा कि पेत्रुस मारकुस को “मेरा पुत्र” कह कर संबोधित करते हैं। (1पेत्रु.5.13) सुसमाचार रचयिता संत मारकुस का संत पौलुस के साथ भ्रातृत्वपूर्ण संबंध रहा जिसका जिक्र हमारे लिए संत पौलुस के प्रेरितिक पत्रों में मिलता है। वे उन्हें प्रेरिताई हेतु उपयोगी, भ्रातृत्व प्रेम और प्रेरिताई में संलग्न व्यक्तित्व की संज्ञा देते हैं। (1तिम.4.11, फिलो. 24, कलो. 4.10) धर्मग्रंथ का ये संदेश हमें एक-दूसरे के साथ प्रेम पूर्ण संबंध में संयुक्त करते हैं।

हमारी अन्तरकलीसियाई यात्रा जो रहस्यात्मक और अपने में महत्वपूर्ण है अन्तरकलीसियाई शहीदों से प्रभावित और स्थापित है। संत योहन इसकी चर्चा करते हुए कहते हैं, “येसु ख्रीस्त जल और रक्त” द्वारा आते हैं (1यो.5.6) “जो उन पर विश्वास करता है उसे संसार पर विजयी प्राप्त होती है।” (1यो.5.5) जल और लोहू हमें अपने बपतिस्मा की याद दिलाती है जो हमारे लिए प्रेम की निशानी है। मिस्र की इस पवित्र भूमि में कितने ही ख्रीस्तीयों ने अपने विश्वास के कारण एक साहसिक अगुवे के रुप में अपने प्राणों की आहूति दी और बुराइयों पर विजय प्राप्त की है। कॉप्टिक कलीसिया की शहादत पूर्ण इतिहास इस बात का साक्ष्य प्रस्तुत करता है। आज भी कितने ही निर्दोष सुरक्षा विहीन ख्रीस्तीयों का बहता रक्त हमें एकता में पिरोकर रखता है। संत पापा ने कहा कि जिस तरह स्वर्गीय येरुसालेम एक है उसी तरह हमारी शहादत भी एक है। आप के दुःख-दर्द हमारे दुःख-दर्द हैं। इस साक्ष्य को अपने में मजबूत करते हुए हमें हिंसा को रोकने हेतु अपने में संवाद, अच्छाई और एकता के बीज बोने की जरूरत है जिससे भविष्य में शांति बहाल हो सकें।

इस प्रभावकारी पवित्र भूमि का इतिहास केवल शहीदों के द्वारा प्रतिष्ठित नहीं होता है। प्राचीन समय में हुए सतावट का अंत होने पर ईश्वर में एक नये आत्मत्यागी जीवन की शुरुआत हुई जहाँ लोगों ने मरुभूमि में एक मठवासी जीवन की शुरूआत की। इस तरह ईश्वर के द्वारा मिस्र और लाल सागर में किये गये चमत्कारिक कार्य नये जीवन, पवित्रता के रुप में मरुभूमि में प्रस्फुटित हुई। मैं इस पवित्र भूमि में एक तीर्थयात्री के रुप में आया जिसे ईश्वर ने अपने प्रेम में चुना है। वे यहाँ सिनाई पर्वत पर आये (निर्ग.24.16) और अपनी नम्रता में उन्होंने एक छोटे बालक के रुप में यहाँ पनाह ली।(मती.2.14)

अपने संबोधन के अंत में संत पापा ने कहा कि ईश्वर हमें आपसी एकता में अपनी शांति का संदेशवाहक बनाये। हमारी इस तीर्थयात्रा में माता मरियम हमारे हाथों को पकड़ कर हमारी अगुवाई करे, जिन्होंने येसु को यहाँ लाया, जिसे मिस्र के महान ईश शास्त्रियों ने “थियोटोक्स” ईश्वर की माता की संज्ञा दी। इस संज्ञा में मानवता और ईश्वरता का समिश्रण है क्योंकि ईश्वर की माता द्वारा ईश पुत्र सदा के लिए मानव बना। कुंवारी माता जो सदैव हमें येसु के पास ले चलती, जो ईश्वर और मानव के मिलन को मधुर संगीत का रुप देती है हमें इस धरा को पुनः एक बार स्वर्ग में परिणत करने में सहायता करे।








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