2017-04-28 17:32:00

संत पापा ने शांति हेतु अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को सम्बोधित किया


मिस्र, शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने शुक्रवार 28 अप्रैल को मिस्र की प्रेरितिक यात्रा के प्रथम पड़ाव पर अल अज़हर में आयोजित शांति हेतु अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया तथा सम्मेलन को सम्बोधित कर शांति हेतु कार्य करने की अपील की।

उन्होंने कहा, ″आपको शांति मिले।″ मैं इसे एक महान वरदान मानता हूँ कि मिस्र के दौरे को मैं यहाँ आरम्भ कर रहा हूँ तथा आप सभी को, शांति हेतु इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में सम्बोधित कर रहा हूँ।″ संत पापा ने सम्मेलन के आयोजन हेतु अल अजहर के ग्रैड ईमाम को धन्यवाद दिया।  

संत पापा ने मिस्र की भूमि को सभ्यता की धरती की संज्ञा देते हुए कहा, ″प्राचीन समय से ही जिस संस्कृति का विकास नील नदी के तट पर हुआ वह सभ्यता का प्रतीक है। मिस्र ने ज्ञान के दीपक को उठाया, एक अनन्य सांस्कृतिक विरासत को जन्म दिया जो बुद्धि और सरलता, गणितीय और खगोलीय खोज, और वास्तुकला और आलंकारिक कला के उल्लेखनीय रूप से बना है। ज्ञान की जिज्ञासा तथा शिक्षा को दिया गया मूल्य इस देश के प्राचीन निवासियों के निर्णय का परिणाम है ताकि भविष्य के लिए अधिक फल उत्पन्न किया जा सके। उसी तरह आज भी हमारे भविष्य के लिए निर्णय लेने की आवश्यकता है, शांति का निर्णय क्योंकि शिक्षा के बिना नई पीढ़ी शांतिपूर्वक  जीवन यापन नहीं कर सकेगी और न ही आज के युवा सच्ची शिक्षा हासिल कर सकेंगे जब तक कि वे उस प्रशिक्षण को प्राप्त न कर लेंगे, जिसके द्वारा वे मानव के उस स्वभाव को प्रकट कर सकेंगे कि वह एक खुला और विचारशील प्राणी है।

शिक्षा तभी जीवन के लिए प्रज्ञा बन जाता है जब यह स्त्रियों एवं पुरूषों को उनकी अच्छाईयों को निखारने में मदद देता है एवं ईश्वर एवं लोगों से मुलाकात करने में, खुलापन के व्यक्तित्व को प्रोत्साहन देता है न कि अपने आप में बंद होता। प्रज्ञा दूसरों की खोज करता है कठोरता एवं बंद मानसिकता के प्रलोभन से ऊपर उठता है। यह विनम्र तथा जिज्ञासु होता है, इतिहास को महत्व देता तथा उसे आज के संवाद में शामिल करता है। परिस्थिति का सही व्याख्या देता है। प्रज्ञा भविष्य की योजना बनाता जिसमें लोग मात्र अपने विचारों को नहीं ढकेलते किन्तु दूसरों को भी पूर्ण रूप से शामिल करते हैं। प्रज्ञा अथक रूप से मुलाकात करने एवं साझा करने का समय खोजती है। बीते समय से वह सीख लेती है कि बुराई मात्र अधिक बुराई को बढ़ावा देती है तथ हिंसा अधिक हिंसा को। कुंडली अंत में सभी को कैद कर लेती है।

प्रज्ञा बेईमानी एवं सत्ता के दुरुपयोग का बहिष्कार करती है बल्कि मानव प्रतिष्ठा पर केंद्रित है। मानव प्रतिष्ठा ईश्वर की दृष्टि में मूल्यवान है जो व्यक्ति उसके योग्य है वह दूसरों से भय नहीं रखता तथा निडर होकर सृष्टिकर्ता द्वारा प्रदत्त ज्ञान का प्रयोग करता है। संत पापा ने कहा कि यह वार्ता का क्षेत्र है, खासकर, अंतरधार्मिक वार्ता का। हम एक साथ चलने के लिए बुलाये गये हैं यह विश्वास करते हुए कि भविष्य में भी धर्मों एवं संस्कृतियों के बीच वार्ता जारी रहेगी। जिसके लिए अंतरधार्मिक वार्ता हेतु गठित परमधर्मपीठीय समिति एवं अल अज़हर में वार्ता हेतु गठित समिति ने एक ठोस एवं प्रोत्साहनात्मक आदर्श प्रस्तुत किया है।

संत पापा ने कहा कि तीन मूल क्षेत्र आपस में एक-दूसरे से जुड़कर वार्ता को मदद कर सकते हैं, अपनी तथा दूसरों की पहचान को सम्मान देना, विविधताओं को स्वीकार कर पाने का साहस एवं इरादों में ईमानदारी।

संत पापा ने मिस्र को व्यवस्थान की भूमि कहा। उन्होंने कहा कि मिस्र में न केवल प्रज्ञा का उदय हुआ किन्तु विभिन्न धर्मों का बहुरंगी प्रकाश भी चमका। सार्वजनिक भलाई हेतु एक साथ काम करने के महत्व को समझते हुए कई धर्म तथा संस्कृति बिना संदेह एक-दूसरे से घुल मिल गये। संत पापा ने पर्वत पर व्यवस्थान को प्रतीक के रूप में लेते हुए कहा कि सिनाई पर्वत उस सच्चे व्यवस्थान को दर्शाता है जिसके द्वारा पृथ्वी पर स्वर्ग को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता तथा क्षितिज से ईश्वर को दूर कर, मानव एक-दूसरे के साथ शांति से नहीं रह सकता, न ही वह अपने लिए सच्चे ईश्वर की खोज हेतु पहाड़ पर चढ़ सकता है।

संत पापा ने कहा कि वर्तमान समय के एक खतरनाक विरोधाभास के चेहरे पर, यह समय एक स्मारक पत्र है, एक ओर धर्म व्यक्तिगत मामला के समान लगता है, मानो कि यह मानव व्यक्ति और समाज का एक आवश्यक आयाम नहीं हो सकता। जबकि धार्मिक और राजनीतिक आयाम स्पष्ट नहीं लगता तथा ये दोनों में अच्छी तरह से भेद नहीं किया जा सका है। संत पापा ने कहा कि दुनिया ने कई उपयोगी तकनीकी उपकरणों के वैश्वीकरण को देखा है किन्तु दूसरी ओर उदासीनता एवं उपेक्षा के वैश्विकरण को भी देखा है और यह एक उन्मत्त गति से बढ़ रहा है जिसको रोकना मुश्किल है। परिणामतः, जीवन के अर्थ के बारे में महान प्रश्नों में नए सिरे से दिलचस्पी ली जा रही है। ये वे सवाल हैं जिन्हें धर्म लेकर आते हैं। हम इस दुनिया के अनिश्चित और नश्वर वस्तुओं में शक्ति खर्च करने के लिए नहीं हैं किन्तु हमारी यात्रा का अंतिम लक्ष्य शाश्वत की ओर है। इन सभी कारणों से धर्म आज एक समस्या नहीं किन्तु उसका समाधान है।

संत पापा ने सिनाई पर्वत पर ईश्वर द्वारा दस आज्ञाओं को प्रदान किये जाने की घटना की याद दिलाते हुए कहा कि दस आज्ञाएँ पत्थर की पट्टी पर अंकित थीं। दस आज्ञा के केंद्र में निहित आज्ञा, ″हत्या मत करो″ हमें तथा सभी युगों के लोगों को आवाज दे रहा है। जीवन के प्रेमी ईश्वर मनुष्य को प्रेम करने से कभी नहीं थकते, अतः वे हमारा अह्वान कर रहे हैं कि हम हिंसा के रास्ते को छोड़ दें जो पृथ्वी पर व्यवस्थान का सबसे आवश्यक शर्त है। खासकर, हमारे समय में धर्म निमंत्रण दे रहे हैं कि हम इस अति आवश्यक शर्त का सम्मान करें।

संत पापा ने धार्मिक नेताओं के कर्तव्यों की याद दिलाते हुए कहा, ″धार्मिक नेताओं के रूप में हम हिंसा के रहस्य को खोलने के लिए बुलाये गये हैं जो पवित्रता का ढ़ोंग रचता है और जो ईश्वर के प्रति सच्चे खलेपन के बदले खुद के स्वार्थ पर आधारित है। उन्होंने कहा कि हम मानव प्रतिष्ठा और मानव अधिकार के हनन का बहिष्कार करने तथा धर्म के नाम पर हर प्रकार की घृणा को न्यायसंगत ठहराने के प्रलोभन का पर्दाफाश करने तथा हर तरह की मूर्तिपूजाओं की निंदा करने के लिए बाध्य हैं क्योंकि ईश्वर पवित्र हैं वे शांति के ईश्वर हैं। उन्होंने कहा कि हम एक साथ कहें कि हम जितना अधिक ईश्वर के प्रेम में बढ़ेंगे उतना ही अधिक पड़ोसियों के प्रेम में भी बढ़ेंगे।

संत पापा ने धर्म के अन्य कर्तव्यों को प्रकट करते हुए कहा कि इसका अर्थ न केवल बुराई के भेद को खोलना है किन्तु शांति को प्रोत्साहन देना है। हमारा कर्तव्य है एक-दूसरे के लिए प्रार्थना करना ईश्वर से शांति की याचना करना। एक-दूसरे के साथ मुलाकात करना, उनके साथ वार्ता करना तथा मित्रता एवं सौहार्द की भावना में बढ़ना। संत पापा ने ख्रीस्तीयों की विशेषता बतलाते हुए कहा कि हम पड़ोसियों के साथ प्रेम पूर्ण बर्ताव किये बिना ईश्वर से सच्ची प्रार्थना नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि आज हमें शांति का निर्माण करने वालों की आवश्यकता है उनकी नहीं जो विभाजन और तनाव लाते हैं बल्कि उनकी जो मेल-मिलाप का प्रचार करते हैं। विनाश लाने वालों की आवश्यकता नहीं है।

तनाव को दूर करने तथा शांति का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि हम गरीबी तथा शोषण की स्थिति को दूर करने के लिए प्रयास न करें। संत पापा ने हथियारों के निर्माण तथा बिक्री की निंदा की। उन्होंने राष्ट्र के नेताओं, संस्था एवं मीडिया को इसके निराकरण हेतु जिम्मेदार कहा। उन्होंने कहा कि शांति हेतु प्रार्थना करना सभी का कर्तव्य है। ईश्वर, इतिहास एवं भविष्य द्वारा हमसे मांग की जा रही है कि हम शांति हेतु पहल करें। राष्ट्रों और लोगों के बीच ठोस सहमति बनायें। उन्होंने आशा व्यक्त की कि मिस्र, ईश्वर की कृपा से व्यवस्थान के शर्त की मांग को पूरा करता रहेगा, इस प्रकार यह अपने देश एवं समस्त मध्यपूर्व में शांति प्रक्रिया के विकास में अपना सहयोग दे पायेगा। 








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