2017-04-19 16:29:00

पुनरुत्थान हमारे विश्वास का आधार


वाटिकन सिटी, बुधवार, 19 अप्रैल 2017 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को आशा पर अपनी धर्मशिक्षा को आगे बढ़ते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात

हम आज पुनरुत्थान की ज्योति में मिलते हैं जिसे हमने पास्का के रुप में मनाया और इन दिनों कलीसिया की धर्मविधि में मना रहे हैं। आज की धर्मशिक्षा में हम ख्रीस्तीय आशा पर चिंतन करेंगे जो येसु के पुनरुत्थान पर आधारित है जिसकी चर्चा संत पौलुस कुरिंथियों के नाम लिखित अपने प्रथम पत्र में करते हैं। कुरिंथियों के समुदाय में पुनरुत्थान एक चर्चा का विषय था जिसे वे स्पष्ट करना चाहते हैं। पुनरुत्थान का जिक्र संत पौलुस कुरिंथियों के नाम अपने पहले पत्र के सबसे अंतिम अध्याय में करते हैं किन्तु महत्वपूर्णतः के क्रम में यह प्रथम स्थान पर आता है क्योंकि बाकी अन्य चीज़े इसी पर आधारित हैं।

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि संत पौलुस हमें कहते हैं कि यह किसी बुद्धिमान व्यक्ति के निर्णयात्मक चिंता से नहीं वरन एक सत्य से शुरू होती है जिसके द्वारा लोग अपने जीवन में प्रभावित होते हैं। ख्रीस्तीयता का उद्गम यहीं से होता है। यह कोई विचार धारा नहीं है और न ही दार्शनिक प्रणाली वरन यह विश्वास की एक यात्रा है जो एक घटना के द्वारा शुरू होती है जिसका साक्ष्य येसु के प्रथम शिष्यों ने दिया। संत पौलुस संक्षेप में इसे प्रस्तुत करते हुए कहते हैं- “येसु हमारे पापों के कारण मर गये, दफनाये गये और तीसरे दिन मृतकों में से जीव उठते और अपने शिष्यों को दिखाई दिये।” (1 कुरि. 15. 3-5)

यह घटना हमारे विश्वास का आधार है जिसकी चर्चा करते हुए संत पौलुस पास्का के रहस्य पर जोर देते हैं जो कि येसु ख्रीस्त का पुनरुत्थान, उनका सचमुच मुर्दों में से जी उठा है। येसु के पुनरुत्थान में हम अपने विश्वास के मूल रुप को पाते हैं। हमारा विश्वास येसु के क्रूस मरण पर पूर्णतः को प्राप्त नहीं करती वरन यह उनके जी उठने पर अपनी पूर्णतः को प्राप्त करती है। अतः हमारे विश्वास का जन्म पास्का रविवार की सुबह को होता है। संत पौलुस हमें उन सभी लोगों का एक विवरण प्रस्तुत करते हैं जिन्हें पुनर्जीवित प्रभु येसु ख्रीस्त ने दर्शन दिये।(1 कुरि. 15.5-7) इसमें सर्वप्रथम केफस अर्थ पेत्रुस और बारह शिष्यों का समुदाय और इसके अलावे पाँच सौ की संख्या में विश्वासी का समुदाय शामिल हैं जो उनके दर्शन का साक्ष्य देते हैं जिनमें योहन का नाम भी शामिल है। इन सभों की सूची में संत पौलुस का नाम सबसे नीचे आता है जो अपने को परित्यक्त, सबसे अयोग्य समझते हैं।

संत पौलुस अपने लिए इन शब्दों का उपयोग करते हैं क्योंकि उनके व्यक्तिगत जीवन को हम एक नाटकीय रुप में पाते हैं। वे कलीसिया को प्रताड़ित करते थे। उन्हें अपने धर्म सतावट के कार्यों पर तब तक गर्व था जब तक उनकी मुलाकात आश्चर्यजनक रुप से पुनर्जीवित प्रभु येसु से दमिश्क की राह पर नहीं होती है। वे न केवल जमीन पर अधोमुँह गिरे वरन उस गिरने के द्वारा उनके सम्पूर्ण जीवन का अर्थ ही बदल गया।  

ख्रीस्तीयता के बारे में विचार करना हमारे लिए कितना अच्छा है जहाँ हम ईश्वर और अच्छाई की खोज नहीं करते वरन हम स्वयं में अपने ईश्वर की खोज करते हैं। ईश्वर हमें अपने में पकड़ कर रखते हैं उन्होंने हमारे लिए विजय प्राप्त की है और वे हमें कभी नहीं छोड़ते हैं। ख्रीस्तीयता हमें आश्चर्य नहीं करती वरन यह हमारे हृदय में विस्मय के भाव जागृत करती है।

अतः संत पापा कहते हैं कि यदि हमारे अच्छे सोच केवल काग़ज़ों तक ही सीमित होकर रह गये हों या हम अपने जीवन में अवलोकन करते हुए इस बात का एहसास करते हैं कि हम में बहुत सारी बुराइयाँ हैं तो हम पास्का के सुबह की तरह उन लोगों की भाँति कार्य करें जिनकी चर्चा सुसमाचार हमारे लिए करता है, हम येसु की कब्र के पास जायें और बड़े पत्थर जिसे हटा दिया गया है, देखें और ईश्वर के बारे में चिंतन करें जो हमारे भविष्य के बारे में सोचते हैं। यहाँ हम अपने जीवन में अंधकार, दुःख और हार के बदले आनन्द, खुशी और जीवन का अनुभव करते हैं।

इस तरह ख्रीस्तीय होना मृत्यु का नहीं वरन ईश्वर के प्रेम का अंग होना है जो हमारे जीवन से हार और शत्रु की कटुता को दूर करती है। ईश्वर किसी भी चीज से बड़े हैं। हमें अंधकार पर विजय प्राप्त करने हेतु एक मोमबत्ती की जरूरत है। संत पौलुस कहते हैं, “मृत्यु कहाँ है तेरी विजय? कहाँ है तेरा दंश?” पास्का काल की इस अवधि में हम इन वचनों को अपने हृदय में झंकृत होने दें और यदि हम अपने में पूछें कि क्यों हमारे चेहरे पर मुस्कान है, हम क्यों धैर्य को एक दूसरे के साथ साझा करते हैं तो इसका उत्तर हमारे लिए यही है कि येसु हमारे साथ हैं, वे हमारे बीच रहना जारी रखते हैं।
इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया और सबों को पास्का के पुण्य अवधि की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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