2017-04-05 17:06:00

भातृप्रेम पर संत पापा की धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 05 अप्रैल 2017 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संत पेत्रुस के पहले पत्र पर आधारित “भ्रातृप्रेम” पर अपनी धर्मशिक्षा माला देते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात

संत पेत्रुस के पहले पत्र (1 पे.3.8-17) में हमारे लिए एक अतिविशिष्ट संदेश है। यह हममें सांत्वना और शांति प्रसारित करते हुए हमें इस बात की अनुभूति प्रदान करता है कि ईश्वर सदैव हमारे साथ हैं और वे हमारा परित्याग कभी नहीं करते हैं विशेष कर हमारे जीवन के अतिसंवेदनशील क्षणों और जब हम मुसीबतों के दौर से होकर गुजर रहे होते हैं। लेकिन इस पत्र का रहस्य हमारे लिए क्या है, यह हमें क्या विशेष संदेश देता है? संत पापा ने कहा कि मैं आशा करता हूँ कि अब आप धर्मग्रंथ के नये विधान का अध्ययन ध्यानपूर्वक करते हुए इसमें निहित रहस्य को जानने का प्रयास करेंगे।

इस पत्र का रहस्य इस बात पर आधारित है कि हम सभी येसु की मृत्यु और पुनरुत्थान में सीधे तौर से जुड़े हुए हैं जो हमारे जीवन के केन्द्र-विन्दु हैं जिसके द्वारा हम अपने जीवन में आनन्द और खुशी का अनुभव करते हैं। येसु ख्रीस्त सचमुच में जीव उठे हैं इसे हम पास्का पर्व मनाते हुए एक दूसरे का अभिवादन करते हुए घोषित करते हैं, “ख्रीस्त जी उठे हैं, ख्रीस्त जी उठे हैं।” जीवित प्रभु हम सभों के जीवन में, हमारे साथ रहते हैं। इसी कारण संत पेत्रुस हमें बल पूर्वक यह निमंत्रण देते हुए कहते हैं कि हम अपने हृदय में उनकी महिमा करें। ईश्वर बपतिस्मा के द्वारा हमारे जीवन में निवास करते और पवित्र आत्मा के द्वारा अपने प्रेम से सदैव हमारे जीवन को नवीन बनाते हैं। इसी कारण प्रेरित हमें अपनी आशा में बने रहने का आहृवान करते हैं। हमारी आशा कोई अनुभव नहीं वरन यह स्वयं व्यक्ति के रुप में येसु ख्रीस्त हैं जो हमारे जीवन और हमारे भाई-बहनों के जीवन में निवास करते हैं।

संत पापा ने कहा कि अतः हमें इस आशा को अपने जीवन के द्वारा अपने समुदाय और अपने समुदाय के बाहर साक्ष्य के रुप में प्रस्तुत करना है। यदि ख्रीस्त जीवित हैं और हमारे जीवन में निवास करते हैं तो हमें उन्हें छिपाने के बजाय अपने जीवन के कार्यों द्वारा व्यक्त करने की जरूरत है। इस अर्थ हमारे लिए यही है कि येसु हमारे जीवन में एक विशेष आदर्श बनते और हम उनकी तरह ही व्यवहार करने तथा अपने जीवन को जीने हेतु बुलाये जाते हैं। येसु ने जैसा किया है हम भी वैसा ही करने हेतु बलाये जाते हैं। इस तरह आशा जो हमारे हृदय की गहराई में निवास करती है वह छिपी नहीं रह सकती है यदि ऐसा होता है तो हमारी यह आशा सुषुप्त आशा है जिसमें अपने को व्यक्त करने का साहस नहीं है। हमारी आशा को नम्र, सम्मानजनक और अन्यों के प्रति भ्रातृप्रेम से पूर्ण होने की जरूरत है जो अपने अपराधियों को जहाँ तक बन पड़े क्षमा प्रदान करती है। व्यक्ति जिसमें आशा की कमी है वह दूसरों को क्षमा नहीं कर सकता, वह दूसरों को सांत्वना प्रदान नहीं कर सकता और न ही अपने में सांत्वना का अनुभव करता है, ऐसा इसलिए क्योंकि यह येसु ख्रीस्त के द्वारा होता है जिसे हम अपने हृदय में एक जगह देते हैं। बुराई के द्वारा बुराई पर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती है वरन बुराई पर नम्रता, करुणा और दीनता के द्वारा ही जीत हासिल की जाती सकती है। हुड़दंगी अपने में सोचते हैं कि वे बुराई के द्वारा बुराई पर विजय हासिल करेंगे अतः वे बदला लेते और बहुत सारी चीजों को करते हैं जिन से हम वाकिफ हैं। वे करुणा, नम्रता और दीनता को नहीं जानते क्योंकि उनमें आशा की कमी है।

संत पेत्रुस कहते हैं, “बुराई करने की अपेक्षा भलाई करने के कारण दुःख भोगना कहीं अच्छा है।” इस अर्थ हमारे लिए यही है कि हम अपनी भलाई के कारण दुःख उठाते तो हम येसु ख्रीस्त के साथ संयुक्त होते हैं जो हमारी मुक्ति हेतु दुःख भोगे और क्रूस पर मारे गये। जब हम अपने जीवन में छोटे-बड़े दुखों को स्वीकार करते तो हम येसु के पुनरुत्थान का अंग बनते हैं। हम अंधेरे में ज्योतिपुंज बनते हैं। अतः प्रेरित संत पेत्रुस हमें बुराई के बदले अच्छाई करने को कहते हैं जो हमारे लिए एक वरदान बनता जिसे हम अन्यों के साथ साझा करते हैं। इस तरह हम ईश्वर और उनके अनंत प्रेम की घोषणा करते हैं जो कभी असफल और खत्म नहीं होता जिसमें हमारी आशा सदैव बनी रहती है।

संत पापा ने कहा, “प्रिय मित्रों अब हम समझते हैं कि क्यों संत पेत्रुस हमें “धन्य” कहते हैं।” यह हमारी नैतिकता या तप मात्र नहीं लेकिन जब-जब हम बुराई का बदला बुराई ने नहीं लेते वरन बदले की भावना से ऊपर उठ कर क्षमा करते हैं तो हम दीपक की तरह जगमगाते और ईश्वरीय  हृदय के अनुसार अन्यों के लिए सांत्वना और शांति का कारण बनते हैं। अतः हम दीनता और नम्रता में उनके लिए भलाई करें जो हमें हानि पहुँचाते हैं।
इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया और सबों को चालीसा काल की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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