2017-04-01 15:49:00

संत पापा ने स्पानी कॉलेज के विद्यार्थी पुरोहितों से मुलाकात की


वाटिकन सिटी, शनिवार, 1 अप्रैल 2017 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 1 अप्रील को वाटिकन स्थित क्लेमेंटीन सभागार में रोम के परमधर्मपीठीय स्पानी कॉलेज, संत जोसेफ के 160 पुरोहितों से मुलाकात की।

संस्था की स्थापना की 125 वीं वर्षगाँठ पर उनका अभिवादन करते हुए संत पापा ने कहा कि संस्था का जन्म पुरोहितों के प्रशिक्षण के उद्देश्य से किया गया है। उन्होंने पुरोहितों से कहा कि प्रशिक्षण का अर्थ है विनम्रता के साथ प्रभु के पास आना तथा उनसे पूछना है, ″आपकी इच्छा क्या है″? आप मुझसे क्या चाहते हैं?  

संत पापा ने पुरोहितों के लिए धर्मग्रंथ के तीन शब्दों को प्रस्तुत किया जिनको येसु ने लेवी को उत्तर देते हुए कहा था, ″तुम अपने प्रभु ईश्वर को अपने सारे हृदय, सारी आत्मा एवं सारी शक्ति से प्रेम करो।″

संत पापा ने कहा कि सारे हृदय से प्यार करने का अर्थ है उदारता एवं स्वेच्छा पूर्वक, स्वार्थ रहित, अपनी रुचि एवं फायदा की खोज किये बिना प्रेम करना। प्रेरितिक उदारता का अर्थ है लोगों के साथ मिलने हेतु बाहर जाना, उन्हें समझना, स्वीकार करना तथा हृदय से क्षमा कर देना। किन्तु इस उदारता में अकेले बढ़ा नहीं जा सकता। यही कारण है कि ईश्वर हमें समुदाय में बुलाते हैं ताकि उदारतापूर्ण भाईचारे के विशेष संबंध के साथ सभी पुरोहित एक साथ आ सकें। इसके लिए पवित्र आत्मा की सहायता की आवश्यकता है, साथ ही व्यक्तिगत आध्यात्मिक प्रयास की भी। समुदाय में जीने हेतु व्यक्तिवाद से बाहर निकलने एवं विविधता के वरदान को जीने, पुरोहिताई में एकता बनाये रखने जो ईश्वर का चिन्ह है, की लगातार चुनौती है। संत पापा ने कहा कि जब वे एक साथ यूखरिस्त बलिदान अर्पित करते है तब भी वे संस्कारिक रूप से अपने हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम को प्रकट करते हैं।

संत पापा ने सम्पूर्ण आत्मा से प्रेम करने का अर्थ बतलाते हुए कहा कि इसका अर्थ है जीवन को अर्पित करने की चाह। इस मनोभाव को हमारे पूरे व्यक्तित्व से परिलक्षित होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि संस्था के संस्थापक का यही मनोभाव था अतः पुरोहितों के प्रशिक्षण हेतु शिक्षा महत्वपूर्ण एवं आवश्यक होते हुए भी ज्ञान प्राप्त करना मात्र नहीं होना चाहिए बल्कि इसे जीवन के हर पहलुओं में परिलक्षित होना चाहिए। प्रशिक्षण उन्हें बढ़ने के साथ-साथ ईश्वर तथा भाइयों के करीब आने में मदद करे। संत पापा ने कहा कि एक शिष्य के रूप में सुसमाचार का प्रचार करने के लिए उन्हें आत्म परीक्षण की आदत में बढ़ना होगा जो उन्हें हर क्षण एवं हर कार्य को महत्व देने के लिए प्रेरित करेगा।

ईश्वर को प्रेम करने के तीसरे तरीके, अपनी सारी शक्ति से प्रेम करने के बारे संत पापा ने कहा कि यह हमें स्मरण दिलाता है कि जहाँ हमारी पूंजी होगी वहीं हमारा हृदय भी होगा। (मती. 6,21) हमारे हृदय में हमारी छोटी चीजें, हमारी सुरक्षा एवं अनुराग होता है जिसको त्यागते हुए हम ईश्वर को हाँ कह सकते हैं अथवा धनी युवक की तरह वापस लौट सकते हैं।

संत पापा ने कहा कि पुरोहित सामान्य एवं आरामदायक जीवन से संतुष्ट नहीं रह सकते जो उन्हें चिंता मुक्त एवं ख्रीस्त की निर्धनता की भावना से दूर रखे। हम ईश्वर के सच्चे संतान होने की स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए बुलाये गये हैं। जिसके लिए हमें संसार एवं संसार की वस्तुओं के बीच समुचित संबंध बनाये रखने की आवश्यकता है।

संत पापा ने सभी पुरोहितों को सलाह दी कि वे प्राप्त वरदानों के लिए सदा कृतज्ञता की भावना रखें, ग़रीबों एवं दुर्बलों के करीब रहें तथा सादगी और त्यागमय जीवन द्वारा सच्चे सामाजिक न्याय को प्रोत्साहन दें। 








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