2017-03-27 16:00:00

विश्व पत्र ‘पॉपुलोरम प्रोग्रेसियो’ के पचास वर्ष


वाटिकन सिटी, सोमवार, 27 मार्च 2017 (सेदोक) : पचास वर्ष पहले 26 मार्च सन् 1967 को धन्य पापा पॉल छठे ने लोगों के विकास पर अपने सामाजिक विश्व पत्र 'पॉपुलोरम प्रोग्रेसिओ' को प्रख्यापित किया था। अपने विश्व पत्र में धन्य पापा पॉल छठे ने सभी देशों को वार्तालाप और सहयोग शुरु करने का आह्वान किया । इसमें विकासशील देशों को ऋण में डूबने की जोखिम से उबरने और लोगों के साथ एकता के सिद्धांत की अभिव्यक्ति है।

द्वितीय वाटिकन महासभा के ख्रीस्तीय एकता वर्धक वार्ता के परिणाम एवं धन्य पापा पॉल छठे के इस सामाजिक विश्व पत्र के बारे में अधिक जानने के प्रयास में वाटिकन रेडियो की वेरोनिका ने रोम स्थित परमधर्मपीठीय संत थोमस विश्वविद्यालय के काथलिक सामाजिक शिक्षण के प्रोफेसर दोमेनिकन फादर अलेकजांद्रो क्रॉस्तवाइट के साथ साक्षात्कार में बताया कि संत पापा पॉल छठे के समय में द्वितीय वाटिकन महासभा के बाद काथलिक कलीसिया आशावादी बन गई थी। एक तरह से कहें तो वह समय आंदोलन और परिवर्तन का समय था। द्वितीय महासभा का ‘गौदियुम एत्सपेस’ ने कलीसिया को ईश्वर के सेवक की संज्ञा दी जिसका सिद्धांत था मानवता की आवश्यकता पर ध्यान देना। मानव गरिमा के ध्यान देना। व्यक्ति विशेष पर ध्यान देते हुए उसका आध्यात्मिक और सामाजिक विकास करना। फादर अलेकजांद्रो ने कहा कि यही वजह थी कि संत पापा पॉल छठे ने अपने विश्व पत्र का नाम 'पॉपुलोरम प्रोग्रेसिओ'  यानि ″ लोगों की प्रगति ″ रखा। इसमें संत पापा लोगों की प्रगति और विकास के बारे में लिखते हैं। विकासशील देश में उन्हें लोगों की विशेष चिंता थी। सभी मिलकर एकसाथ विकास के मार्ग में आगे बढ़ें।

संत पापा ने दक्षिण अमेरिका को ध्यान में रखते हुए अपने पत्र में मुक्ति धर्मशास्त्र के सिद्धांत की बात लिखी है। लोगों की मुक्ति तथा लोगों का आर्थिक विकास हो। संत पापा ने लोगों के संपूर्ण विकास का आहृवान किया है।

संत पापा हमें याद दिलाते हैं कि मनुष्य को केंद्र में रखते हुए किसी भी क्षेत्र में विकास करना चाहिए। मनुष्य की गरिमा के बिना विकास कोई मायने नहीं रखता। अतः संत पापा का विश्व पत्र 'पॉपुलोरम प्रोग्रेसिओ' आज भी बहुत महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक है।








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