2017-03-25 16:32:00

मुक्ति की खुशी प्रति दिन हमारे जीवन में आती, संत पापा फ्रांसिस


मिलान, शनिवार, 25 मार्च 2017 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 25 मार्च मिलान की अपनी एकदिवसीय प्रेरितिक यात्रा के दौरान मोनजा से पार्क में पवित्र युख्रारिस्त बलिदान अर्पित किया।

मिस्सा बलिदान के दौरान उन्होंने माता मरियम को देवदूत द्वारा दिये गये संदेश और योहन बपतिस्ता के पिता जकरियस को मंदिर में मिले दिव्य दर्शन इन दो अति विशिष्ट घटनाओं पर तुलनात्मक मंथन करते हुए विश्वासियों के लिए अपना चिंतन प्रस्तुत किया।

उन्होंने कहा कि जकरियस एक पुरोहित के रुप में प्रभु के निवास स्थल में धर्मविधि का संचालन करते समय योहन बपतिस्ता के जन्म का संदेश पाते हैं वहाँ मंदिर के बाहर सारी जनता उनकी प्रतीक्षा कर रही होती है। इसके विपरीत येसु के जन्म का संदेश गलीलिया के सुदूर प्रान्त की एक अजान युवा नारी जिसका नाम मरियम है जिसे कोई नहीं जानता येसु के जन्म का संदेश दिया जाता है।

हमारे जीवन में किसी भी स्थान का एक महत्व होता है और यहाँ स्थान हमारे लिए ईश्वर के नये मंदिर की बात को घोषित करता है जहाँ वे अपने चुने हुए लोगों से मिलने आते हैं जिसकी आशा हम अपने जीवन में कभी नहीं करते हैं। शहर और भीड़-भाड़ स्थान से अलग, लोगों के ज्ञान से परे ईश्वर शरीरधारण कर अपने लोगों से मिलते आते और उनके साथ-साथ चलते हैं। इस तरह ईश्वर किसी एक स्थान और कुछेक थोड़े लोगों के लिए नहीं वरन सारी जनता हेतु अपने को प्रस्तुत करते हैं जो मंदिर से बाहर उनका इंतजार करते हैं। हम में से कोई भी और कुछ भी उनकी उपस्थिति से अछूते नहीं हैं। मुक्ति की खुशी हमारे रोज दिन के जीवन में नाजरेत की एक युवा नारी मरियम के निवास स्थल से शुरू होती है।
संत पापा ने कहा कि यह ईश्वर हैं जो अपनी ओर से पहल करते हैं और हमारे घरों में, हमारे जीवन की कठिनाइयों मुसीबतों और हमारे साथ रहने आते हैं जैसे कि उन्होंने मरियम के साथ किया। “हम अपने जीवन में आनन्दित हो क्योंकि ईश्वर हमारे साथ हैं।” यह खुशी है जो हममें जीवन का संचार करती, आशा जगाती है और हम इसे जिस दृष्टिकोण से देखते उसी दृष्टि से यह हमारे भविष्य को सकारात्मक भावों से भर देती है। यह हमारी खुशी है जो हमारे जीवन में एकता, आतिथ्य और करुणा के भावों को जागृत करती है।

हम अपने जीवन में मरियम की तरह आश्चर्य करते हैं कि ईश्वर की योजना कैसे हमारे जीवन, कामों और हमारे परिवार में पूरी होगी। हम इसका अंदाजा ग़रीबों, शरणार्थियों और युवाओं के जीवन में नहीं लगा सकते हैं क्योंकि उनके जीवन में सभी चीज़ें अनिश्चित और असुरक्षित दिखाई देती हैं। दुःख तकलीफ हमारे घरों के द्वारों को खटखटाती नजर आती हैं। युवा अवसर की कमी के कारण अपने जीवन में हताश दिखाई देते हैं।

संत पापा ने कहा कि जिस गति से हम दुनिया में परिवर्तन की बयार को आज देखते हैं यह हमारी आशा और खुशी को चुराती हुए नजर आती है। दबाव की स्थिति और विभिन्न परिस्थितियों में शुष्कता विभिन्न चुनौतियों के लिए हमारे हृदयों को उदासीन बन देती है। समाज में विकसित कहलाने और विकसित बनाने के क्रम में हम अपनों को समय नहीं दे पाते हैं। हमारे पास  अपने परिवार, समुदायों, अपने मित्रों के लिए समय नहीं रह जाता है। हम अपने जीवन की पुरानी बातों को याद नहीं कर पाते हैं।
संत पापा ने कहा कि हमारे लिए अपने आप से यह पूछना अच्छा होगा कि हम अपने शहर में कैसे सुसमाचार की खुशी का अनुभव कर सकते हैं? क्या हम ख्रीस्तीय आशा में बने रहते हैं? इस संबंध में दो सवाल हमारे जीवन से जुड़े हुए हैं पहला परिवार में हमारा जीवन और दूसरा अपने देश, शहर में हमारा जीवन। यह हमारे बच्चों के जीवन को प्रभावित करता और उन्हें प्रशिक्षण प्रदान करता है। जब हम अपने जीवन में खुशी और आशा में बन रहते तो हम अपने जीवन के कठिन दौर से बाहर निकलने में सफल होते हैं। जीवन की सारी चीजें हमें साहसपूर्वक हमें जीवन का सामना करने हेतु आहृवान करती हैं जैसा कि नाजरेत की युवा मरियम ने अपने जीवन में किया।

संत पापा ने कहा कि माता मरिया को दिये गये देवदूत संदेश में हम तीन चीजों को पाते हैं जिसके द्वारा हम अपने जीवन में मिले प्रेरितिक कार्य को स्वीकारते और उन्हें पूरा करते हैं।

पहला अतीत की यादः स्वर्गदूत मरियम को अतीत की याद दिलाते हैं कि कैसे ईश्वर ने दाऊद के घराने में मुक्तिदाता की प्रतिज्ञा की थी। मरियम इस विधान की कड़ी में एक पुत्री है। हम प्रतिदिन इस बात को याद करने हेतु बुलाये जाते हैं कि हम कहाँ से आते और हमारा अतीत क्या रहा है। यह हमें अपने पूर्वजों को सदैव याद करने हेतु निमंत्रण देता है क्योंकि हम उनकी बदौलत आज अपने मुकाम में हैं। अतीत की यादें हमें अपने में बंद नहीं करती वरन् यह हमें जीवन की कठिनाइयों को चमत्कारिक ढंग से सुलझाने में मदद करती है।

दूसरा ईश्वर की चुनी हुई प्रजाः अतीत की हमारी यादें हमें ईश्वर की चुनी हुई प्रजा के रुप में अपने को देखने हेतु प्रेरित करती है जैसा कि मरियम ने किया। यह हमें अपने को ईश्वर के लोगों के रुप में देखने हेतु मदद करता है। संत पापा ने कहा कि मिलान के निवासी संत अब्रोमस कहते हैं,“ईश्वर की महान प्रजा होने का एहसास करें।” यह हमें विभिन्नताओं के बावजूद एकता में बनाये रखता है जो अपने में एक बहुत बड़ा धन है। हम अपनी अनेकताओं के बावजूद एक साथ रहते और एक दूसरे का सम्मान करते हुए उन्हें गले लगाते हैं। हम एक दूसरे से भयभीत नहीं होते क्योंकि हम अपने में यह अनुभव करते हैं कि ईश्वर हमारे साथ हैं।

तीसरा हर असंभव संभव हैः “ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।” (लूका. 1.37) देवदूत मरियम के सवालों का अंत इसी उत्तर के साथ करते हैं। संत पापा ने कहा कि जब हम यह सोचते हैं कि सभी चीज़ें हमारे ऊपर निर्भर करती हैं तो हम अपनी क्षमता, योग्यता में कैद होकर रह जाते हैं। लेकिन जब हम अपने को ईश्वर की कृपा के अनुरूप खुला रखते तो सारी असंभव चीज़ें संभव होने लगती हैं।
ईश्वर अपनी ओर से पहल करते और हमारे प्रतिउत्तर का इंतजार करते हैं। ईश्वर हमारे साथ हमारे जीवन में चलते और हमें अपने निमंत्रण को स्वीकार करने का आहृवान करते हैं जिससे वे हमारे द्वारा अपने कामों को पूरा कर सकें। संत अम्ब्रोस के शब्दों में हम कह सकते हैं “ईश्वर मरियम की तरह एक हृदय की खोज करते हैं जो सदैव ईश्वर की योजना को पूरा करने में आशावान बना रहता है।”  








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