2017-03-22 14:35:00

धैर्य और सांत्वना पर संत पापा की धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 22 मार्च 2017 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात

संत पौलुस हमारे जीवन के दो महत्वपूर्ण मनोभावों “धैर्य और सांत्वना” के आधार पर हमें ख्रीस्तीय आशा को समझने हेतु मदद करते हैं। रोमियों के नाम संत पौलुस का प्रेरितिक पत्र हमें सबसे पहले सुसमाचार और दूसरा ईश्वर के बारे में बतलाता है। वास्तव में इनका गूढ़ अर्थ हमारे लिए क्या है?  ये कैसे हमें आशा की वास्तविकता में बने रहने को मदद करते हैं? 

धैर्य को हम अपने जीवन में निष्ठा के रुप में परिभाषित कर सकते हैं विशेष कर हमारे जीवन के उन क्षणों में जहाँ हम नकारात्मक विचारों के प्रभावित होते हुए सारी चीजों और लोगों का भी परित्याग करने की परीक्षा में पड़ जाते हैं। जबकि सांत्वना हमारे लिए कृपा लाती है जहाँ हम अपने दुःख और निराशा के क्षणों में भी इस बात को जानने और समझने की स्थिति में रहते हैं कि ईश्वर की उपस्थिति और उनका प्रेम सदैव हमारे जीवन में बना रहता है। संत पौलुस हमें याद दिलाते हुए कहते हैं कि धर्मग्रंथ में धैर्य और सांत्वना विशेष रूप से हमारे जीवन में आते हैं। धर्मग्रंथ हमारी निगाहों को येसु ख्रीस्त पर टिकाये रखने हेतु प्रेरित करता है जिसके द्वारा हम उन्हें और अच्छी तरह जानते हुए उन्हें आत्मसात करते तथा उनकी तरह बनाने की कोशिश करते हैं। दूसरी बात धर्मग्रंथ हमें यह बतलाता है कि ईश्वर धैर्य और सांत्वना के स्रोत हैं। वे हमारे साथ रहते, हमें प्रेम करते और अपनी करुणा और अच्छाई में हमारी सुधि लेते हैं।

इस संदर्भ में हम संत पौलुस के इन वचनों को समझ सकते हैं, “हम लोगों को, जो समर्थ हैं, अपनी सुख-सुविधा का नहीं, बल्कि दुर्बलों की कमजोरियों का ध्यान रखना चाहिए।” (रोमि.15.1) “हम जो समर्थ हैं”, यह वाक्य हमें अपने में मजबूती का एहसास दिलाती है लेकिन तार्किक रुप में देखा जाये तो ऐसा नहीं है क्योंकि हम अपने में समर्थ नहीं हैं वरन ईश्वर हमें अपनी शक्ति में समर्थ प्रदान करते हैं। हम जो अपने जीवन में ईश्वर के निष्ठावान प्रेम और सांत्वना का अनुभव करते हैं हमें चाहिए कि हम दुर्बलों और कमजोर भाई-बहनों का सहारा बनें। यदि हम अपने जीवन में ईश्वर की निकटता का अनुभव करते हैं तो यह हमें कमज़ोरों के प्रति संवेदनशील बनने और उनके प्रति दया के भाव रखते हुए उनकी सहायता करने को प्रेरित करता है। हम अपने समर्थ के कारण ऐसा नहीं करते बल्कि ईश्वर की कृपाओं के कारण ऐसा कर पाते हैं जो हमारे जीवन में “आशा” को सृजित करता है। संत पापा ने कहा कि ईश्वर हमें अन्यों के लिए सांत्वना और आशा की निशानी बनने को कहते हैं जो हमारे लिए सहज नहीं है।

हमारा समुदायिक जीवन विभिन्न श्रेणियों में विभक्त नहीं है और न ही कुछ लोग उत्तम वर्ग और अन्य निचले या कमजोर तबक़े के हैं, वरन संत पौलुस कहते हैं कि हम सभी येसु ख्रीस्त में एक हैं। ईश वचन हमारे जीवन को आशा से पोषित करता है जो एक-दूसरे की सेवा में परिलक्षित होता है क्योंकि जो अपने जीवन में समर्थ हैं वे अतिशीघ्र अपने जीवन में कमजोरी का शिकार हो जाते और उन्हें दूसरों की सहायता की आवश्यकता होती है। हम अपनी कमजोरी के क्षणों में अपनी मुस्कान द्वारा अपने हाथों को अन्यों की ओर बढ़ते हैं। यह हमारी समुदायिकता की निशानी है जिसके द्वारा हम ईश्वर की महिमा करते हैं। संत पापा ने कहा कि ये सारी चीज़ें हमारे जीवन में तब संभव होतीं हैं जब हम येसु को अपने जीवन का केन्द्र-बिन्दु बनाते हैं। यह वे हैं जो हमें अपनी शक्ति, धैर्य और आशा से भर देते हैं जो हमारे लिए सांत्वना का स्रोत बनाता है। उन्होंने जोर देते हुए कहा, “ये वे और केवल वे हैं जो एक समर्थ भाई की भांति हमारी सेवा करते हैं। वास्तव में हम सभी को भले गड़ेरिया के कंधों में व्यवस्थित होने और उनके कोमल प्रेम तथा कृपादृष्टि से सराबोर होने की जरूरत है।

संत पापा ने कहा कि हम ईश वचनों के लिए ईश्वर का धन्यवाद करें जिसके द्वारा हम पोषित किये जाते हैं। धर्मग्रंथ के माध्यम से वे हमें अपने बेटे येसु ख्रीस्त में अपने धैर्य और सांत्वना से भरते हैं जिसके द्वारा हमें यह अनुभूति होती है कि हमारी आशा हमारी शक्ति में नहीं वरन यह ईश्वर के निष्ठावान प्रेम में निहित है जिसके द्वारा हमें सांत्वना प्राप्त होती है।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया और उन्हें चालीसा काल की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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