जेनेवा,बृहस्पतिवार, 2 मार्च 2017 (वीआर सेदोक): संयुक्त राष्ट्र के लिए वाटिकन के स्थायी पर्यवेक्षक महाधर्माध्यक्ष इवान जुरकोविक ने मानव अधिकार समिति की बैठक की 34 सत्र में ‘मृत्यु दण्ड’ पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने मृत्युदण्ड के प्रयोग को हटाये जाने के प्रयास की सराहना की।
वाटिकन प्रतिनिधि ने कहा, ″मैं इस बात पर बल देता हूँ कि जीवन पवित्र है, माता की कोख में आने से लेकर स्वाभाविक मृत्यु तक।″ उन्होंने संत पापा के शब्दों का स्मरण कर कहा कि यहाँ तक कि एक अपराधी भी जीवन के अधिकार का हकदार है।
उन्होंने कहा कि इस सम्बन्ध में, इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि मानवीय न्याय अविश्वसनीय है तथा मृत्यु दण्ड अपने आप में अचल। हमें यह भी हमेशा स्मरण रखना चाहिए कि मौत की सज़ा के साथ निर्दोष के जीवन को समाप्त करने की संभवना बनी रहती है।
उन्होंने मृत्यु दण्ड को नाकामयाबी करार देते हुए कहा कि मृत्युदण्ड के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष को हाल में लिखे एक पत्र में संत पापा ने कहा था कि ″एक संवैधानिक राज्य के लिए मौत की सजा एक विफलता का प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि यह राज्य को न्याय के नाम पर मारने के लिए बाध्य करता है जबकि एक इंसान की हत्या कर न्याय तक कभी नहीं पहुँचा जा सकता।"
महाधर्माध्यक्ष का मानना है कि अपराध का सामना करने के लिए मानवीय उपाय अपनाये गये हैं ताकि उसके शिकार लोगों को इंसाफ मिल सके तथा अपराधी को सुधार का अवसर दिया जा सके। इसके अलावा, सच्चा और निष्पक्ष समाज ही, मानव गरिमा के लिए पूर्ण सम्मान को बढ़ा सकता है।
अंततः वाटिकन प्रतिनिधि ने कहा कि वह मृत्यु दण्ड के प्रयोग पर रोक लगाने के हेतु पूर्ण प्रतिबद्ध है तथा अधिस्थगन 2014 के आम विधानसभा संकल्प द्वारा स्थापित एक अंतरिम उपाय के रूप में, इसका मजबूती से समर्थन करती है। उन्होंने देशों को प्रोत्साहन दिया कि वे आपराधिक स्थिति पर ध्यान दिये बिना प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिष्ठा सुनिश्चित करने हेतु क़ैदख़ानों की स्थिति में सुधार लायें तथा एक निष्पक्ष सुनवाई हेतु उचित प्रक्रिया अपनायें।
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