2017-03-01 10:24:00

बेघर लोगों द्वारा संचालित पत्रिका से सन्त पापा फ्राँसिस की बातचीत


वाटिकन सिटी, बुधवार, 1 मार्च 2017 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने बेघर लोगों द्वारा संचालित इताली पत्रिका "स्कार्प दे टेनिस" अर्थात् टेनिस शूज़ को दी एक भेंटवार्ता में बेघर, आप्रवासी एवं शरणार्थी लोगों की व्यथा पर अपने विचार प्रकट किये हैं। इस भेंटवार्ता की प्रकाशना 28 फरवरी को वाटिकन द्वारा की गई।

इताली पत्रिका "स्कार्प दे टेनिस" बेघर लोगों एवं स्वयंसेवकों द्वारा चलाई जाती है जिसका लक्ष्य हर प्रकार के सामाजिक बहिष्कार का शिकार बने लोगों की व्यथाओं पर चेतना जाग्रत करना है।

भेंटवार्ता में सन्त पापा फ्राँसिस से शरणार्थियों के हित में की गई उनकी पहलों पर प्रश्न किया गया था जिसके उत्तर में उन्होंने बताया कि वाटिकन में शरणार्थियों को शरण प्रदान करने के बाद रोम की समस्त पल्लियों ने शरणार्थियों को आवास प्रदान करने का कार्य आरम्भ कर दिया है। उन्होंने कहा, "वाटिकन में दो पल्लियाँ हैं और ये दोनों पल्लियाँ सिरियाई शरणार्थियों को शरण प्रदान कर रही हैं। इसी प्रकार रोम की कई पल्लियों ने कठिनाइयों में पड़े इन लोगों के लिये अपने द्वार खोल दिये हैं तथा जिन पल्लियों में पुरोहित निवासों की व्यवस्था नहीं है उन पल्लियों ने एक पूरे वर्ष के लिये शरणार्थियों के आवास हेतु किराये का प्रबन्ध कर दिया है।" 

भेंटवार्ता के दौरान सन्त पापा ने कहा कि हम सभी को अन्यों के कष्टों को महसूस करना चाहिये, उन्होंने कहा, "अन्यों के जूतों से चलना यानि अन्यों के दुखों को महसूस करना स्वतः के अहंकार को दूर करना है।" उन्होंने कहा, "अन्यों के जूतों में हम समझदारी की महान क्षमता को सीख पाते हैं तथा अन्यों की कठिन परिस्थितियों से वाकिफ़ होते हैं।"

सन्त पापा ने कहा, "शरणार्थियों एवं ज़रूरतमन्दों की मदद के लिये केवल शब्द काफ़ी नहीं हैं ज़रूरत है, अन्यों के जूतों में पैर रखकर चलने की। कितनी बार मैं किसी ऐसे लोकधर्मी, पुरोहित, धर्मबहन अथना किसी ऐसे धर्माध्यक्ष से मिला हूँ जिसने मुझसे कहा है कि उसने मेरी बातों को सुना किन्तु उन्हें समझा नहीं।"  

शरणार्थियों एवं आप्रवासियों की संख्या को सीमित करने के बारे में सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा, "यह नहीं भुलाया जाना चाहिये कि जो हमारे द्वार खटखटाते हैं इनमें से अधिकांश लोग युद्ध एवं भुखमरी से पीड़ित होते हैं। उन्होंने कहा, "विश्व में व्याप्त युद्धों एवं निर्धनता के लिये हम सब किसी न किसी प्रकार ज़िम्मेदार हैं इसलिये इन समस्याओं का समाधान ढूँढ़ना भी हमारा दायित्व है।"








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