चेन्नई, मंगलवार, 28 फरवरी 2017 (एशिया न्यूज ) : समाजसेवी पुरोहितों और धर्मबहनों के एक दल ने गरीबों खासकर दलितों को उत्पीड़न से बाहर निकालने और उनके प्रति उपेक्षा को समाप्त करने के लिए एक कार्य योजना तैयार की है।
भारत के 14 राज्यों से एकत्रित, 34 धर्मसमाज के न्याय और शांति के लिए बने धार्मिक मंच के 68 धर्मसंघियों का दो दिवसीय सेमिनार 17 और 18 फरवरी को चेन्नई में आयोजन किया गया था जिसमें उन्होंने भारतीय संविधान के आधार पर जातीय असंवेदीकरण और समावेशी समुदायों के निर्माण पर विचार विमर्श किया।
मंच ने एक बयान जारी किया है कि काथलिक पुरोहितगण और धर्मबहनें येसु ख्रीस्त के पद चिन्हों पर चलते हुए अन्यायपूर्ण सामाजिक ढांचे के खिलाफ विद्रोह करें और एक समतावादी समाज के निर्माण हेतु कार्य करें।
सेमिनार में प्रख्यात दलित वक्ताओं ने वर्तमान सामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक परिस्थिति में दलित सशक्तिकरण के तरीकों, भारतीय कलीसिया के अंदर दलित भेदभाव का निपटारा, एक महिला के नजरिए से जातीय भेदभाव जैसे विषयों पर प्रकाश डाला। कुछ दलित महिलाओं ने जातिवाद की अनैतिकता के खिलाफ कठिन संघर्ष के अपने अनुभवों को साझा किया।
मंच के राष्ट्रीय संयोजक जेकब पीनिकापारंबिल और राष्ट्रीय कार्यकारिणी सचिव मंजू कुलामपुरम द्वारा हस्ताक्षर किये गये बयान के अनुसार,″हर छठा भारतीय दलित है। जाति पदानुक्रम विनाशकारी, विभेदक, दलितों विशेषकर दलित महिलाओं के प्रति दमनकारी है।″
हमारे देश की स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद भी जाति प्रथा के कारण अस्पृश्यता की क्रूरता और दलितों के खिलाफ अमानवीय अत्याचार बढ़ रहे हैं।
धर्मसंघियों के रुप में हमारा प्रेरितिक कार्य और उत्तरदायित्व है कि हम हाशिये पर जीवन यापन करने वालों का पक्ष लें जैसा कि बाइबिल में ईश्वर ने और येसु ने अपने जीवन काल में किया था।
हमें दलितों के साथ हो रहे अन्याय के प्रति जागरुक रहने और उन अन्यायों के उन्मूलन के लिए तरीके खोजने और उनके अनुसार काम करने की जरुरत है।
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