2017-02-08 15:28:00

आमदर्शन समारोह के दौरान ख्रीस्तीय आशा पर संत पापा की शिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 08 फरवरी 2017 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम् सभागार में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को आशा में बने रहने की धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात। 

हम पिछले बुधवार को थेसलनिकीयों के नाम संत पौलुस के पहले पत्र पर चिंतन किया था जहाँ वे विश्वासी समुदाय को पुनरुत्थान की आशा में बने रहने को कहते हैं। इसी संदर्भ में प्रेरित संत पौलुस इस बात पर भी बल देते हैं कि ख्रीस्तीय आशा व्यक्तिगत सांस लेने की क्रिया नहीं वरन् यह सामुदायिक और कलीसियाई एकता की निशानी है। हम आशा में एक समुदाय के रुप में बने रहते हैं। अतः संत पौलुस ख्रीस्तीय समुदाय को एक-दूसरे के लिए प्रार्थना और सहायता करने का अनुरोध करते हैं। वे समुदाय के अगुवों को जिन्हें समुदाय की देख-रेख की जिम्मेदारी सौंपी गई है इस कार्य के निर्वाहन हेतु निवेदन करते हैं। वे हमारी सहायता करें और हमें आशा में बने रहने को मदद करें। यह इसलिए नहीं कि वे दूसरों से श्रेष्ठ हैं वरन् उन्हें ईश्वर की ओर से दिया गया यह दिव्य कार्य उनके व्यक्तिगत सामर्थ्य से बढ़कर है और यही कारण है कि उन्हें सबों से आदर, समझदारी और सहायता मिले।

इस तरह हम देखते हैं कि यहाँ इस बात पर जोर दिया गया है कि हमें उन भाई –बहनों की सहायता करने की जरूरत है जो अपने आशा को खोते नजर आते, जो अपने जीवन में निराश जान पड़ते हैं। निराशा हमें कई बुरी चीज़ों की ओर ले जाती है। यहां हमारा ध्यान उन लोगों की ओर कराया गया है जो निराश, कमजोर, जीवन से थके-मांदे, हताश और अपने पापों के कारण जीवन की राह में आगे बढ़ते हेतु अपने को बेबस पाते हैं। ऐसी परिस्थिति में ख्रीस्तीय समुदाय का कार्य ऐसे लोगों के प्रति और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है जहाँ वे करुणा में दुःखियों के निकट रहने, उनके दुःख को अपने जीवन में अनुभव करने हेतु बुलाये जाते हैं। संत पापा ने कहा कि हमें उन्हें स्नेह और सांत्वना देते हुए दृढ़ता प्रदान करने की जरूरत है।

रोमियों के नाम अपने पत्र में संत पौलुस हमें कहते हैं, “हम लोगों को, जो समर्थ हैं, अपनी सुख-सुविधा का नहीं, बल्कि दुर्बलों की कमजोरियों का ध्यान रखना चाहिए।” (रोम.15.1) इसके द्वारा हम अपने सामाजिक जीवन में दीवारों और सेतुओं का निमार्ण करते हैं, बुराई के बदले बुराई नहीं वरन् बुराई पर हम अपनी अच्छाई द्वारा विजय हासिल करते हैं। ख्रीस्तीय के रुप में हम यह कभी नहीं कह सकते कि तुम्हें इसका परिणाम भुगतना होगा, यह ख्रीस्तीयता की निशानी नहीं है। बुराई पर हम अपनी क्षमाशीलता से विजय प्राप्त करते और सभों के साथ शांति में निवास करते हैं। संत पापा ने कहा कि यह कलीसिया हैं जहाँ हम आशा में बने रहते हैं।

उन्होंने कहा कि हम आशा को अकेले में नहीं सीखते हैं। यह संभव नहीं है। आशा को मूर्त रूप देने हेतु हमें एक “शरीर” रूपी परिवार की जरूरत है जहाँ हम एक दूसरे की मदद करते और जीवन यापन करते हैं। इसका अर्थ यही है कि हम अपने भाई-बहनों के कारण जीवन में आशा को सजीव बनाये रखते हैं। हमारे जीवन में बहुत सारे भाई-बहनें हैं जो अपने जीवन में सबल बने रहते हुए इस आशा का साक्ष्य हमें देते हैं क्योंकि दुःख, शोषण और मृत्यु के बाद हमारे लिए जीवन की शांति है। जो आशा में बने रहते हैं वे अपने जीवन में ईश्वर के इन शब्दों को सुनते हैं, “आओ, आओ मेरे भाइयों, आओ मेरे बहनों मेरे पास आओ, स्वर्गराज्य में निवास करो।”

संत पापा ने कहा कि जिस तरह हमने चिंतन किया कि आशा का प्रकृति घर हमारा शरीर है, ख्रीस्तीय आशा का शरीर माता कलीसिया है जिसकी आत्मा और जीवनदायी सांस पवित्र आत्मा है। पवित्र आत्मा के बिना हम आशा में बने नहीं रह सकते हैं। इसीलिए संत पौलुस पवित्र आत्मा का आहृवान करते हैं। संत पापा ने कहा कि आशा और विश्वास में बने रहना हमारे लिए कठिन है लेकिन पवित्र आत्मा जो हमारे हृदयों में निवास करते हैं हमें इस तथ्य को समझाते हैं कि हमें डरने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ईश्वर हमारे निकट हैं और हमारी देख-रेख करते हैं। वे हमारे समुदायों को पवित्र आत्मा के साहचर्य में आशा की निशानी बनाते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया और उन्हें शांति और खुशी की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया। 








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