2017-02-04 16:06:00

फोकलारे मूवमेंट के प्रतिनिधियों को संत पापा का सम्बोधन


वाटिकन सिटी, शनिवार, 4 फरवरी 2017 (वीआर सेदोक):  संत पापा ने कहा कि येसु द्वारा लाये गये नये राज्य को तब तक नहीं समझा जा सकता है जब तक कि हम बुराई से मुक्त न हों, उन में से सबसे शक्तिशाली बुराई है, धन।

वाटिकन के पौल षष्ठम सभागार में फोकलारे मूवमेंट के तत्वधान में आयोजित सभा के प्रतिभागियों को सम्बोधित कर उन्होंने कहा, “अर्थव्यवस्था और समन्वय ये दो शब्द अभी की संस्कृति के अनुसार एक-दूसरे से पृथक प्रतीत होते हैं और बहुधा विपरीतार्थक शब्द माने जाते हैं।“

संत पापा ने फोकलारे मूवमेंट के सदस्यों के समर्पण से संबंधित कुछ मुख्य बिन्दुओं पर प्रकाश डाला जिनमें पहला है, धन। उन्होंने कहा कि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि समन्वय की अर्थव्यवस्था के केंद्र में आपके समन्वय का लाभ है जो जीवन के समन्वय को दिखाता है। बाईबिल की शिक्षा इसके ठीक विपरीत है क्योंकि इसे बुराई का स्रोत माना जाता है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि संत योहन रचित सुसमाचार में येसु का पहला सार्वजनिक कार्य था मंदिर से व्यापारियों का निष्कासन।

  संत पापा ने कहा कि येसु द्वारा लाये गये नये राज्य को तब तक नहीं समझा जा सकता है जब तक कि हम बुराई से मुक्त न हों और एक सबसे शक्तिशाली बुराई  है धन। यही कारण है कि येसु ने व्यापारियों को मंदिर से खदेड़ दिया था।

संत पापा ने धन के अच्छे और बुरे प्रयोग पर प्रकाश डालते हुए कहा कि धन का प्रयोग तब महत्वपूर्ण हो जाता है जब खासकर, इसका प्रयोग भोजन, स्कूल तथा बच्चों के भविष्य निर्माण में किया जाता है जबकि बुरा प्रयोग तब होता है जब यह किसी के अंत का कारण बन जाए।

यदि धन का एक मात्र उद्देश्य लाभ अर्जित करना हो तो यह धन की पूजा के समान हो जाता है। धन रूपी देवता आज विश्व में लाखों परिवारों को नष्ट कर रहा है। धन की पूजा अनन्त जीवन का स्थान ले लेता है क्योंकि धनी धन के बदौलत मृत्यु से भी बचने का प्रयास करता है।

संत पापा ने इस बुराई से बचने के लिए इसे आपस में बांटने की सलाह दी, विशेषकर, गरीबों और विद्यार्थियों के बीच। उन्होंने कहा कि जब वे अपना धन जरूरतमंदों के बीच बांटते हैं तो वे एक महान आध्यात्मिक कार्य सम्पन्न करते हैं।

फोकलारे मूवमेंट के सदस्यों को दूसरे बिन्दु के रूप में संत पापा ने गरीबी के बारे बतलाया जो मूवमेंट का केंद्रीय बिन्दु है।

उन्होंने कहा कि आज गरीबी से लड़ने हेतु कई प्रयास किये जा रहे हैं जो एक प्रकार से मानवता का विकास है। येसु के समय में भी समाज में गरीब, अनाथ एवं विधवा थे जिनकी आवश्यकताओं के लिए दान दिया जाता था किन्तु इसके बावजूद लोगों की गरीबी समाप्त नहीं हुई आज हमें अलग तरीकों से ग़रीबों की मदद हेतु निमंत्रण दिया जाता है। कर देना भी उन्हीं कार्यों में से एक है और यदि हम इससे इन्कार करते हैं तो यह अनैतिक है क्योंकि इसके द्वारा हम जीवन के मौलिक नियम का उलंघन करते हैं।

संत पापा ने पूंजीवाद के प्रति भी चिंता व्यक्त की तथा कहा कि पूंजीवाद की नैतिक समस्या है गरीबी का निर्माण एवं उसे छिपाने का प्रयास। 








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