2017-01-11 16:41:00

ईश्वर हमें कभी निराश नहीं करते हैं


वाटिकन सिटी, बुधवार, 11 जनवरी 2017 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को आशा पर अपनी धर्म शिक्षा माला को आगे बढ़ाते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो

सुप्रभात,

हमने आगमन काल में ख्रीस्त के आने की तैयारी करते हुए ख्रीस्त जयंती और उसके बाद नये साल का उत्सव मनाया है। इस अवधि में माता कलीसिया हमें वार्षिक काल चक्र की धर्मविधि के दौरान आशा में बन रहने का संदेश देती है जो मानव की मूलभूत आवश्यकता है क्योंकि जीवन पर विश्वास करते हुए भविष्य में आशा बनाये रखना “सकारात्मक सोच” कहलाती है।

यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है कि हम अपनी आशा सही चीज में बनाये रखे जो हमें न केवल जीवन प्रदान करती वरन हमारे जीवन के अस्तित्व को अर्थपूर्ण बनाती है। इसी कारण धर्मग्रंथ हमें दुनियावी चीज़ें की अर्थहीनता और उनकी क्षणभंगुरता के बारे में वर्णन करते हुए हमें सचेत करती हैं जिसे दुनिया झूठी आशा के रुप में हमारे लिए पेश करती है।

इस संदर्भ में नबी और धर्मग्रंथ की विवेकपूर्ण बातें हमें विश्वास में अपने जीवन यात्रा की ओर ध्यान आकृष्ट कराती हैं क्योंकि विश्वास न केवल हमें ईश्वर पर आधारित रहने हेतु मदद करता वरन हमारे जीवन की कठिनाइयों, मुसीबतों और दुविधा के घड़ियों में हमें अपने में मजबूत बन रहे को मदद करता है। अपने जीवन के कठिन दौर में हम सांत्वना की कामना करते हैं क्योंकि यह हमारे हृदय की थकना दूर करती और अकेलापन को भरती है। इस तरह हम अपने को धन और दुनियावी ताकत से संयुक्त करते हुए अपने में सुरक्षा का अनुभव करते हैं जो कि झूठे आदर्श मात्र हैं। कभी-कभी हम ईश्वर की ओर नजरें फेरते और उन्हें अपने सोच-विचार के अनुरूप जादुई कार्य करते हुए जीवन की परिस्थितियों के बदले का आग्रह करते हैं।

संत पापा ने अपने बोनस ऐरिस की एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि वे एक वाटिका में गये हुए थे जहाँ बहुत सी छोटी-छोटी टेबल कुर्सियाँ लगी हुई थीं जहाँ भाग्य बतलाने वाले बैठे थे और उनके पास लोगों की भीड़ जमी थी। वे लोगों के हाथों के देख एक ही बात दुहराते, “तुम्हारे जीवन में एक लड़की है लेकिन एक छाया भी है परन्तु सब कुछ ठीक हो जायेगा...” इस तरह हम अपने में सुरक्षित अनुभव करते हैं। उन्होंने कहा कि भाग्य बतलाने वालों के पास जाना जो कार्ड देख कर जीवन की बातों को बतलाते हैं यह मनगढ़ंत, एक मूर्तिपूजा है। इस तरह हम झूठी आशा को ख़रीदते हैं। इसके विपरीत येसु जो हमारे लिए मुफ्त में आशा ले कर आयें जो हमें अपना जीवन देते हम उन पर अधिक विश्वास नहीं करते हैं।
धर्मग्रंथ का स्तोत्र 115 हमारे लिए उन्हीं झूठे देवमूर्तियों के बारें में जिक्र करता है जिसे दुनिया हमारे सामने पेश करती जिस पर मानव मोहित हो जाता है।

“उन लोगों की देवमूर्तियाँ चाँदी और सोने की हैं, वे मनुष्यों द्वारा बनाई गयी हैं। उनके मुख हैं लेकिन वे नहीं बोलतीं, आँखें हैं किन्तु वे नहीं देखतीं। उनके कान हैं, किन्तु वे नहीं सुनतीं, नाक हैं किन्तु वे नहीं सूँघतीं। उनके हाथ हैं, किन्तु वे नहीं छूतीं, पैर हैं, किन्तु वे नहीं चलतीं। उनके कण्ठ से एक भी शब्द नहीं निकलता। जो उन्हें बनाते हैं, वे उनके सदृश बनें और वे सब भी, जो उन पर भरोसा रखते हैं।” (स्तो. 115.4-8)

स्तोत्र लेखक हमारे लिए देवमूर्तियों की क्षणभंगुर सच्चाई को बतलाये हैं। संत पापा ने कहा कि हमें यह भी याद करने की जरूर हैं कि ये केवल धातु से नहीं वरन मानवीय सोच विचार से बनाये गये हैं। जब हम उन सारी चीजों पर विश्वास करते तो हम ईश्वरीय शक्ति को अपनी सोच विचार के अनुसार सीमित कर देते हैं। हम ईश्वर को अपनी सोच समझ के अनुरूप मूर्ति के समान बना देते हैं। मानव के रुप में हम ईश्वर के रुप में गढ़े गये हैं लेकिन हम उनके अनुरूप कार्य नहीं करते, उनकी नहीं सुनते और नहीं बोलते हैं। हम अपने जीवन में उन्हीं क्षणभंगुर व्यर्थ की चीजों के पीछे भागना अधिक पसंद करते जो हमें अपने ईश्वर से दूर कर देती है।

धन, शक्ति, सफलता और दिखावा हमें ईश्वर से दूर कर देती है। हमारी सुन्दरता और स्वास्थ्य जिसके लिए हम अपने जीवन में मेहनत करते हमारे मन और दिल को उलझा देती है और इस तरह जीवन की ओर अग्रसर होने के बदले हम मृत्यु की ओर बढ़ने लगते हैं।

संत पापा ने सालों पहले बोनोस आरिस धर्मप्रान्त में हुए एक घटना जो उन्हें अब भी दुःखी करती हैं लोगों के साथ साझा करते हुए कहा, “मैंने एक महिला के बारे में सुना जो अति सुन्दर थी जिसे अपनी सुन्दरता का गुरूर था, उसने अपना तर्क देते हुए मानों यह एक स्वाभाविक बात है कहा, “हाँ, मैंने गर्भपात किया क्योंकि मेरी देह मेरे लिए महत्वपूर्ण है।” यह मूर्ति पूजा हैं जो हमें गलत मार्ग पर ले चलती और हम अपने जीवन में खुशी का अनुभव नहीं करते हैं।

उन्होंने कहा कि स्तोत्र लेखक के संदेश हमारे लिए स्पष्ट हैं, यदि हम अपनी आशा देवमूर्तियों पर रखें तो हम भी उन्हीं के समान बन जाते हैं। हम अपने जीवन में कुछ नहीं कहते, हम लोगों की सहायता करने में असमर्थ हो जाते, हम मुस्कुराने और प्रेम को अन्यों साथ साझा के योग्य नहीं रह जाते हैं। “आधुनिकता” को धारण करते हुए हम कलीसिया के लोगों अपने में जोखिम उठा लेते हैं। हमें दुनिया में रहना है लेकिन हमें दुनिया की क्षणभंगुर चीजों से बचे रहना है।

संत पापा ने कहा कि हमें अपनी आशा और भरोसे को ईश्वर में बनाये रखना है जिससे वे हमें  अपने कृपादानों से भर दें। अतः स्तोत्र रचयिता कहते हैं,

“इस्रराएल, प्रभु पर भरोसा रखो, हारुण की संतति प्रभु पर भरोसा रखों, प्रभु के श्रद्धालु भक्तों, प्रभु पर भरोसा रखो, प्रभु हमे याद करते हैं वे हमें आशीर्वाद प्रदान करेंगे।”  (स्तो. 115.9.10.11.12) वह हमें हमारे मुश्किल की घड़ियों में भी याद करते हैं। वही हमारी आशा हैं, एक आशा जो हमें कभी भी निराशा नहीं करती है। यह देवमूर्तियाँ हैं जो हमें हताशा और निराश करती हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया और उन्हें शांति और खुशी की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया। 








All the contents on this site are copyrighted ©.