2017-01-04 16:17:00

आंसू आशा के नये बीज बोती है


वाटिकन सिटी, बुधवार, 04 जनवरी 2017 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को आशा पर बने रहने की अपनी धर्म शिक्षा माला को आगे बढ़ाते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो

सुप्रभात,

आज की धर्म शिक्षा में हम एक ऐसी नारी के बारे में जिक्र करेंगे जो हमें आँसुओं में जीवन बीतने के बावजूद आशा में बने की शिक्षा देती है। वह याकूब की पत्नी राखेल, पुराने व्यवस्थान में योसेफ और बेनजामिन की माता है जिसकी चर्चा हमारे लिए उत्पत्ति ग्रंथ करता है।

नबी येरेमियस इस्राएलियों को उनके निर्वासन के समय सांत्वना देते हुए राखेल के बारे में अपने वेदना भरे काव्यात्मक शब्दों में कहते हैं,

“रामा में रुदन और विलाप सुनाई दिया, राखेल अपने बच्चों के लिए रो रही है और अपने आँसू किसी को पोंछने नहीं देती क्यों वे अब नहीं रहे।” (येरे.31.15)

इन पंक्तियों में नबी चुनी हुई असंख्य प्रजा के लिए एक नारी को प्रस्तुत करते हैं जो दुःख और दर्द में पड़ी हुई है। उत्पत्ति ग्रंथ के अनुसार राखेल प्रसव के दौरान मर गई थी लेकिन नबी उसकी वेदना का जिक्र करते हुए कहते हैं वह अपने पुत्र की मृत्यु पर विलाप करती है। यह निर्वासन के समय उन नारियों के हृदय की व्यथा को बयाँ करता है जो अपने सुपुत्रों की मृत्यु पर विलाप करती हैं।

वह अपने आंखों से अपने आंसुओं को पोंछने नहीं देती है यह उनके हृदय के घोर दुःख को व्यक्त करता है। बेटे के खोने पर एक माँ के हृदय में व्याप्त दुःख को सांत्वना के कोई भी शब्द कम नहीं कर सकते हैं।

संत पापा ने कहा कि आज भी कितनी सारी माताएँ हैं जो रोती हैं क्योंकि उन्हें अपने पुत्रों को खोने की असहनीय पीड़ा है। वे इसे स्वीकार करने में अपने को असमर्थ पाती हैं। राखेल उन माताओं और प्रत्येक मानव के दुःखों का प्रतिनिधित्व करती हैं जो अपने को शोकित पाते जिनके खोने की क्षति पूर्ति नहीं की जा सकती है।

संत पापा ने कहा कि राखेल की पीड़ा हमें यह भी शिक्षा देती है कि हम अपने जीवन में दूसरों के लिए कैसे सांत्वना का कारण बनते हैं। क्या हम दुःखी लोगों के जीवन का अंग बनते और उन्हें साहस और ढाढ़स बंधाते हुए अपनी सहृदयता के द्वारा उनके आँसुओं को पोंछने की कोशिश करते हैं। हम लोगों के दुःख भरे क्षणों में अपने को कैसे प्रस्तुत करते हैं।

ईश्वर अपने प्रेम और नम्रता में राखेल की आंसूओं का उत्तर देते और कहते हैं जो नबी येरेमियस के संदर्भ में सत्य हैः

“अपना विलाप बंद करो और अपनी आंखों से आंसू पोंछो, क्योंकि तुम्हें अपने कष्ट के लिए पुरस्कार मिलेगा-यह प्रभु की वाणी है-वे अपने शत्रुओं के देश से लौटेंगे।” तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल है और तुम्हारी संतानें अपने देश लौटेंगी।” (येरे.31.16-17)
संत पापा ने मुख्यतः माताओं की आँसूओं के कारण बच्चों हेतु जीवन में आशा बनी हुई है जो जीवन प्राप्त करेंगे। राखेल के आंसूओं और कटु अनुभवों को ईश्वर सुनते और उसके उत्तर में अपनी निर्वासित जाता को सांत्वना प्रदान करते हैं। इस्राएली जनता निर्वासन से अपने देश को लौटेगी और ईश्वर में अपने विश्वास को पुनः प्राप्त करेगी। आँसूओं से आशा की उत्पत्ति होती जो हमारी समझ से परे है लेकिन यह सत्य है। संत पापा ने कहा कि हमारे जीवन में बहुधा आंसू आशा के नये बीज बोती है। 

नबी येरेमियस के ये पद संत मत्ती द्वारा लिए गये हैं जिसकी द्वारा वे निर्दोष बालकों के निर्मम हत्या का जिक्र करते हैं। (मती. 2.16-18) शक्तिशाली बन रहने की भूख बेतलेहेम के मासूम बच्चों को मार डालती है। और निर्दोष मेमना हम सभों लिए मारा जाता है। संत पापा ने कहा कि ईश्वर का पुत्र मानवीय दुःख में आते हैं हमें इसे याद रखना है। उन्होंने कहा, “जब कोई मेरे पर आकर यह जटिल प्रश्न करता कि क्यों बच्चों के दुःख उठाना होता है। मैं नहीं जानता कि मैं क्या कहूँ। मैं इतना ही कहता हूँ, “क्रूस की ओर देखिये, ईश्वर ने अपने पुत्र को हमारे लिए दिया, उन्होंने दुःख उठाया शायद हम वहाँ अपने लिए एक जवाब पायेंगे।” ईश्वर के प्रेम पर हमारा चिंतन जहाँ हम उनके पुत्र को अपने लिए पाते हैं हमें सांत्वना प्रदान करती है। “इसीलिए हम यह कहते हैं कि ईश्वर का पुत्र हमारे दुःखों में सहभागी हुआ। उनके शब्द हमारे लिए सांत्वना के स्रोत हैं क्योंकि हमारे पुकारने पर वे हमारी सहायता हेतु आते हैं।” येसु ने क्रूस पर से अपनी माता को हमारे लिए दे दिया जो हमें आशा में बने रहने की शिक्षा देती है।
इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया और उन्हें ख्रीस्त जयंती की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया। 








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