2016-12-29 10:53:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय, 78 वाँ भजन (भाग-10)


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"कितनी बार उन्होंने मरुभूमि में उसके विरुद्ध विद्रोह किया, निर्जन स्थान में, उसके विरुद्ध पाप किया। उन्होंने बारम्बार ईश्वर की परीक्षा ली; वे इस्राएल के परमपावन ईश्वर को चिढ़ाते रहे। उन्हें उसकी शक्ति याद नहीं रही।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 78 वें भजन के 40 से लेकर 42 तक के पद जिनकी विस्तृत व्याख्या  विगत सप्ताह हमने पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत की थी। आपका ध्यान हमने इस ओर भी आकर्षित कराया था कि स्तोत्र ग्रन्थ का 78 वाँ भजन 72 पदों वाला एक लम्बा भजन है जिसमें भजनकार उपदेशक की भाषा प्रयुक्त कर लोगों को उनके इतिहास के बारे में बताता है। उनके इतिहास में कौन-कौनसी घटनाएँ घटीं, कौन उनका उद्धारकर्ता बना, किसने उन्हें संकटों से उभार कर प्रतिज्ञात देश तक पहुँचाया और संहिता के नियम दिये आदि विषयों पर वह प्रकाश डालता है ताकि ईश प्रजा अपने प्रभु ईश्वर को ही सबकुछ माने, आपत्ति आने पर उनसे याचना करे, उनका गुणगान करे, उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करे तथा उनमें अपने विश्वास को सुदृढ़ करे। इसके साथ ही भजनकार मिस्रियों के संग घटी घटनाओं का भी विवरण प्रदान करता है। उन सभी आपत्तियों को गिनाता है जिनका सामना मिस्र के फराऊन और उसके लोगों को करना पड़ा था। वस्तुतः, 78 वें भजन का उपदेशक इन घटनाओं के विषय में बताना इसलिये जारी रखता है कि युग युगान्तर तक मानव पीढ़ियाँ ईश्वर के महान कार्यों और चमत्कारों को याद करें और उनमें अपने विश्वास की अभिव्यक्ति करें। 

78 वें भजन के आगे के 49 से लेकर 55 तक के पदों में भजनकार इस्राएली जाति के पक्ष में ईश्वर के चमत्कारों को फिर याद करता है। ये पद इस प्रकार हैं: "उसने उनपर अपना प्रचण्ड कोप भड़कने दियाः रोष, प्रकोप, संकट और विनाशकारी दूतों का दल। उसने अपने क्रोध पर अंकुश नहीं रखा; उसने उनको मृत्यु से नहीं बचाया, बल्कि महामारी से उनका जीवन समाप्त कर दिया। उसने मिस्रियों के हर पहलौठे को, जवानी की पहली सन्तान को हाम के तम्बुओं से मारा। वह अपनी प्रजा को भेड़ों की तरह निकाल लाया और मरुभूमि में उन्हें झुण्ड की तरह ले चला। वह उन्हें सुरक्षित और निर्भय ले गया, जबकि समुद्र ने उनके शत्रुओं को निगल लिया। वह उन्हें अपने पवित्र देश ले चला, उस पर्वत तक, जिसे उसके बाहूबल ने जिताया था। उसने उनके सामने से राष्ट्रों को मार भगाया; उसने भूमि को बाँटकर उन्हें विरासत के रूप में दे दिया। उसने दूसरों के तम्बुओं में इस्राएल के वंशों को बसाया।"

श्रोताओ, पहलौठों की मौत मिस्रियों पर आई समस्त विपत्तियों में सर्वाधिक कष्टकर विपत्ति थी। 78 वें भजन के उक्त पदों में उस विपत्ति की याद दिलाकर भजनकार ने मिस्र के फराऊन और उसके लोगों के कठोर दिल के बारे में बताना चाहा है। इतनी विपत्तियाँ आने पर भी वे प्रभु ईश्वर के सामने हठधर्मी बने रहे, उन्होंने दीन हीनों पर अपने ज़ुल्मों को जारी रखा और अपने हृदयों को कठोर कर लिया। उन्होंने इस्राएलियों को वापस जाने नहीं दिया उसके बाद, प्राचीन व्यवस्थान के निर्गमन ग्रन्थ के चौथे अध्याय के 22 वें और 23 वें पद में प्रभु मूसा से कहते हैं: "तुम फराऊन से कहोगे, प्रभु का यह कहना है – इस्राएल मेरा पहलौठा पुत्र है। मैं तुमको आदेश देता हूँ कि मेरे पुत्र को मेरी सेवा करने के लिये जाने दो। यदि तुम उसे नहीं जाने दोगे, तो मैं तुम्हारे पहलौठे पुत्र को मारूँगा।" 

इसी सन्दर्भ में सन्त पौल भी रोमियों को प्रेषित पत्र के दूसरे अध्याय में लिखते हैं कि जो व्यक्ति हृदय से पश्चाताप नहीं करते वे अपने विरुद्ध कोप का संचय करते हैं क्योंकि जब ईश्वर का न्यायसंगत निर्णय प्रकट होगा तब प्रत्येक को उसके कर्मों का फल मिलेगा। रोमियों को प्रेषित पत्र के दूसरे अध्याय के आठवें, नवें और दसवें पदों में सन्त पौल लिखते हैं, "जो लोग स्वार्थी हैं और सत्य से विद्रोह करते हुए अधर्म पर चलते हैं, वे ईश्वर के क्रोध और प्रकोप के पात्र होंगे। बुराई करनेवाले  प्रत्येक मनुष्य को – पहले यहूदी और फिर यूनानी को (अर्थात् सब बुराई करनेवालों को)  – कष्ट और संकट सहना पड़ेगा और भलाई करनेवाले प्रत्येक मनुष्य को महिमा, सम्मान और शान्ति मिलेगी, क्योंकि ईश्वर किसी के साथ पक्षपात नहीं करता।"

श्रोताओ, किसी भी दम्पत्ति का पहला बच्चा या पहलौठा, परिवार का भविष्य होता है, वह परिवार का प्रधान होता है, वह परिवार में आनन्द का कारण होता है इसलिये उसी को मार डालने की सज़ा कितनी भयानक को हो सकती है। मिस्र के फराऊन और उसके लोगों को यह दण्ड मिला था क्योंकि उन्होंने ईश्वर के विरुद्ध पाप किया था। मिस्रियो को उनके कुकरमों के लिये ईश्वर ने दण्डित किया था किन्तु ईश प्रजा इस्राएल पर प्रभु ने सदैव दया की थी, उसकी हर स्थिति में रक्षा की थी, फिर भी इस्राएली जाति प्रभु ईश्वर के विरुद्ध बग़ावत कर उठी। इस्राएली लोग प्रभु के महान कार्यों एवं चमत्कारों को भूल गये। वे हठधर्मी बने रहे और पाप में लिप्त रहे। 

78 वें भजन का रचयिता इसी पर मानों विलाप करता है और आगे के पदों में यानि 56 से लेकर 59 तक के पदों में कहता हैः "फिर भी विद्रोही बनकर उन्होंने सर्वोच्च ईश्वर की परीक्षा ली और उसके नियमों का पालन नहीं किया। वे भटक गये और अपने पूर्वजों की तरह विश्वासघाती बने। वे धोखा देनेवाले धनुष की तरह मुड़ गये। उन्होंने अपने पहाड़ी पूजास्थानों द्वारा उसे क्रोधित किया और अपनी देवमूर्तियों द्वारा उसे चिढ़ाया।" श्रोताओ, मनुष्य को भलाई के रास्ते पर लाने के लिये समय-समय पर प्रभु ईश्वर नबियों के श्रीमुख से बोलते रहे हैं, आवश्यकता है तो बस उन्हें सुनने की, उनका अनुसरण करने की।








All the contents on this site are copyrighted ©.