2016-12-28 17:17:00

आशा में बने रहने हेतु संत पापा की धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 28 दिसम्बर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को आशा पर बने रहने की अपनी धर्म शिक्षा माला को आगे बढ़ाते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो

सुप्रभात,

संत पौलुस रोमियों के नाम अपने पत्र में हमें धर्मग्रंथ के एक महान चरित्र अब्राहम के बारे में याद दिलाते और हमें विश्वास और आशा में बने रहने को कहते हैं। उनके बारे में प्रेरित संत पौलुस लिखते हैं, “इब्राहीम ने निराशाजनक परिस्थिति में भी आशा रख कर विश्वास किया और वह बहुत-से राष्ट्रों के पिता बन गये।” (रोम.4.18) उन्होंने ईश्वर के वचनों पर विश्वास किया जहाँ उसे प्रतिज्ञा की गई थी कि उसे एक पुत्र प्राप्त होगा। लेकिन यह उसके लिए “आशा के विपरीत एक आशा” थी क्योंकि वह बूढ़ा हो चलता था और उसकी पत्नी सारा बांझ थी और वह भी अपनी वृद्धावस्था में थी।

ईश्वर के वचनों पर विश्वास करते हुए वह अपना सब कुछ छोड़कर उस देश को निकल पड़ा जहाँ ईश्वर ने उसे जाने को निर्देश दिया। उसने ईश्वर के वचनों में विश्वास किया कि वे मानवीय और दुनिया की तर्क-वितर्क और सामान्य सोच विचार की शक्ति से परे अपने विश्वासी भक्तों के लिए असंभव कार्य को पूरा कर सकते हैं। उसकी आशा एक नये क्षितिज की ओर देखने हेतु उसे मदद करती है। संत पापा ने कहा कि यह हमें अपने जीवन में उन चीजों की ओर देखने को प्रेरित करता है जिसकी कल्पना हम अपने जीवन में नहीं कर सकते हैं। आशा में बने रहना, भविष्य के अनिश्चित अंधकारमय क्षणों में हमारा प्रवेश करना है जो हमें प्रकाश के मार्ग में ले चलाता है।

संत पापा ने कहा लेकिन यह एक कठिन यात्रा है। अब्राहम के लिए यह एक हताशा और निराश की घड़ी रही क्योंकि उसने अपना सब कुछ छोड़ा कर ईश्वर की आज्ञा का अनुपालन किया था। उन्होंने एक लम्बी यात्रा की थी और उस समय की यात्रा आज की यात्रा के समान नहीं था। बहुत दिन बीत गये लेकिन उसके पुत्र रत्न प्राप्त नहीं हुआ, उसकी पत्नी सारा का गर्भ बांझ और बंद रहा।

अपनी निराशा में अब्राहम ईश्वर से शिकायत करते हैं। यहाँ हम अब्राहम से अपने ईश्वर को एक प्रार्थना के रुप में शिकायत करते हुए देखते हैं। “प्रभु-ईश्वर, मैं निःसंतान हूँ और मेरे घर का उत्तराधिकारी दमिश्क का एलीएजर है। तूने मुझे कोई सन्तान नहीं दी। मेरा नौकर मेरा उत्तराधिकारी होगा।” (उत्प.15.2-3) इस पर प्रभु-ईश्वर अब्राहम की शिकायत का उत्तर देते हुए कहते हैं, “वह तुम्हारा उत्तराधिकारी नहीं होगा लेकिन तुम्हारा औरस पुत्र ही तुम्हारा उत्तराधिकारी होगा। ईश्वर ने उसे बाहर ले जाकर कहा, आकाश की ओर दृष्टि लगाओ और संभव हो, तो तारों की गिनती करो। उसने उस से यह भी कहा, “तुम्हारी संतति इतनी ही बड़ी  होगी।” इब्राहिम ने ईश्वर में विश्वास किया और इस कारण प्रभु ने उसे धार्मिक माना।(उत्प.15.4-6)

संत पापा ने कहा कि ये सारी चीजें रात के अंधेरे में होती हैं और एक अँधेरा अब्राहम के हृदय में है। यह अँधेरा निराशा, हताशी और एक असंभव की बात को ले कर है जो आशा को कठिन बनाती है। इस तरह उनके शब्दों में हाताशी और निराशा के भाव झलकते हैं। वह ईश्वर की उपस्थिति में है और उनसे बातें करता है यद्यपि उससे ऐसा लगता है अब सारी चीज़ें खत्म हो गई हैं। अब्राहम को ऐसा लगाता है कि ईश्वर ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं की। वह अपने मैं थका-हारा और अपने को मृत्युशय्या में पड़ा अनुभव करता है। ऐसे स्थिति में हम कैसे आशा में बने रह सकते हैं?

आब्रहम इन सारी चीजों के बावजूद  ईश्वर पर अपने विश्वास और आशा को बनाये रखा क्योंकि उसे विश्वास था कि कुछ चीज़ें तो हो सकती हैं, नहीं तो वह क्यों ईश्वर से शिकायत और विचार-विमर्श करता और उनके प्रतिज्ञों की याद दिलाता? विश्वास चुपचाप चीजों का स्वीकार करना नहीं है और न ही आशा हमें संदेह और घबराहट से मुक्त करती है। संत पापा ने कहा कि बहुत बार हमारे जीवन में आशा अंधेरे का समान होती है लेकिन इसमें आशा है। हमारा विश्वास ईश्वर से संघर्ष करने के समान है जो हमारे हृदय के खट्टे अनुभव को दिखलाती है। “हम अपने क्रोध में ईश्वर को बहुत सारी चीज़ें कह देते हैं लेकिन वे पिता हैं और वे हमें समझते हैं, वे हमें शांति और साहस में भेजते हैं।” यह हमारी आशा है जहाँ हमें सच्चाई को देखते हुए विरोधाभास बातों को स्वीकारना करने से नहीं डरना है।

अब्राहम ईश्वर की ओर अभिमुख होते हुए ईश्वर से अपने आशा में बने रहने की सहायता माँगता है। वह ईश्वर से पुत्र रत्न की माँग नहीं करता लेकिन वह आशा में बने रहने की कृपा माँगता है। इस तरह ईश्वर अपनी प्रतिज्ञा को दुहराते हैं और उससे आशा में बने रहने को कहते हैं।

वे उसे आकाश के तारों की ओर दृष्टि गड़ाते हुए अपनी आशा में बन रहने को कहते हैं। आज हमें भी आकाश के तारों की ओर अपनी नजरें उठाते हुए अपने विश्वास और आशा में बने रहने की जरूरत है क्योंकि आशा में बने रहना हमें कभी हत्तोसाहित नहीं करती है।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया और उन्हें ख्रीस्त जयंती की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया। 








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