2016-12-22 09:09:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय, स्तोत्र ग्रन्थ 79 वाँ भजन (भाग-9)


श्रोताओ, पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"वे अपने मुख से उसे धोखा देना चाहते थे, उनकी जिव्हा उससे झूठ बोलती थी; क्योंकि उनके हृदय में उसके प्रति निष्ठा नहीं थी, उन्हें उसके विधान का भरोसा नहीं था। फिर भी दयासागर प्रभु ने उनका अपराध क्षमा कर उन्हें विनाश से बचा लिया। उसने बारम्बार अपना कोप दबाया; उसने अपना क्रोध भड़कने नहीं दिया। उसे याद रहा कि वे हाड़ माँस भर हैं, श्वास-मात्र, जो निकल कर नहीं लौटता।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 78 वें भजन के 36 से लेकर 39 तक के पदों के शब्द जिनकी व्याख्या  हमने विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत की थी। इन पदों में हम ईश्वर की करुणा से परिचित होते हैं। ईश्वर दयावान हैं, वे क्षमाशील हैं और अपने असीम प्रेम के कारण अपनी हर सन्तान यानि प्रत्येक मनुष्य की याचना पर कान देते हैं। भजनकार ने इन पदों में इस तथ्य की ओर भी ध्यान आकर्षित कराया है कि हालांकि, इस्राएली जाति हठीली थी तथापि, उसने भी अपने दुष्कर्मों को स्वीकार किया था और उसके लिये क्षमा की याचना की थी। प्रतिज्ञात देश की यात्रा इतनी जटिल और दुखमय थी कि उसने ईश्वर पर अपने विश्वास को खो दिया था तथा झूठे देवी-देवताओं को पूजने लगी थी किन्तु अन्ततः उसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ और उसने ईश्वर से क्षमा याचना की। श्रोताओ, भूल करना मानव स्वभाव के अनुकूल है किन्तु अपनी भूल का एहसास पाने तथा उसके लिये पश्चाताप कर क्षमा याचना करने में मनुष्य की महानता है। इस स्थल पर मुझे जॉन गिब्सन द्वारा सम्पादित प्राचीन व्यवस्थान की व्याख्या से एक प्रसंग याद आ जाता है। एक बार जब एक वयोवृद्ध पुरोहित की सेवानिवृत्ति का क्षण आया तब उनसे पूछा गया कि यदि उन्हें फिर से उपदेश देने का मौका मिला तो वे कौनसे विषय पर उपदेश देना पसन्द करेंगे? पुरोहित ने बड़ी सरलता से जवाब दिया, "ईश्वर की क्षमाशीलता पर"।  

इस्राएली लोग पाप करते रहे थे, उन्होंने अपने उद्धारकर्ता ईश्वर के विरुद्ध बगावत की थी। उनके महान चमत्कारों को देख लेने के बाद भी उन पर भरोसा नहीं रखा था ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार   आज के युग में हो रहा है। हम प्रतिदिन और प्रतिपल ईश्वर के महान कार्यों को अपनी आँखों के सामने देखते हैं, उनका सुखद लाभ उठाते हैं किन्तु उनके लिये ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करना भूल जाते हैँ और फिर जब संकट आते हैं तब ईश्वर को ही उनके लिये ज़िम्मेदार ठहराने लगते हैं। इस्राएली लोगों ने यही तो किया था। उन्होंने ईश्वर को कोसा किन्तु और कोई हल न निकलने के बाद एर बार फिर उन्हीं की शरण लौटे, उनकी खोज करने लगे और उनसे दया की याचना करने लगे क्योंकि वे जानते थे कि ईश्वर ही उनकी चट्टान और उनके मुक्तिदाता थे। हमसे भी आग्रह किया जाता है कि हम ईश्वर की दया और उनकी क्षमाशीलता को कदापि नहीं भूलें और अपनी ग़लतियों को स्वीकार कर उन पर पश्चाताप करें तथा क्षमा मांगने पर लज्जित न होवें।  

श्रोताओ, स्तोत्र ग्रन्थ का 78 वाँ भजन 72 पदों वाला एक लम्बा भजन है जिसमें भजनकार उपदेशक की भाषा प्रयुक्त कर लोगों को उनके इतिहास के बारे में बताता है। उनके इतिहास में कौन-कौनसी घटनाएँ घटीं, कौन उनका उद्धारकर्ता बना, किसने उन्हें संकटों से उभार कर प्रतिज्ञात देश तक पहुँचाया और संहिता के नियम दिये आदि विषयों पर वह प्रकाश डालता है ताकि ईश प्रजा अपने प्रभु ईश्वर को ही सबकुछ मानें, आपत्ति आने पर उनसे याचना करे, उनका गुणगान करे, उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करे तथा उनमें अपने विश्वास को सुदृढ़ करे। इस स्थल पर यह स्मरण रखना उचित होगा कि प्राचीन काल के इतिहास की समसामयिकता आज भी है। आज भी हमारे अपने युग यही हो रहा है जो प्राचीन काल में होता रहा था। मनुष्य की प्रकृति बदली नहीं है वह ज्यों कि त्यों है। आज भी भलाई और बुराई के बीच संघर्ष बना हुआ है और बुराई को पराजित करने के लिये हमें आवश्यकता है प्रभु ईश्वर की कृपा की, उनकी दया और अनुकम्पा की।

आगे 78 वें भजन 40 से लेकर 48 तक के पदों में भजनकार इस्राएली जाति के विद्रोह के अतिरिक्त उन घटनाओं की भी चर्चा करता है जो ईश्वर ने मिस्रियों को दण्डित करने के लिये सम्पादित होने दी थी। ये पद इस प्रकार हैं: "कितनी बार उन्होंने मरुभूमि में उसके विरुद्ध विद्रोह किया, निर्जन स्थान में, उसके विरुद्ध पाप किया। उन्होंने बारम्बार ईश्वर की परीक्षा ली; वे इस्राएल के परमपावन ईश्वर को चिढ़ाते रहे। उन्हें उसकी शक्ति याद नहीं रही – वह दिन, जब उसने उन को शत्रुओं से छुड़ाया था; " और फिर आगे मिस्र को दण्डित करने के लिये भेजे गये चिन्हों के विषय में भजनकार स्मरण दिलाकर कहता है, "किस प्रकार उसने मिस्र को अपने चिन्ह दिखाये और तानिस के निवासियों को अपने चमत्कार। उसने वहाँ की नहरों और नदियों को रक्त में बदल दिया, जिससे वे जल न पी सकें। उसने उनपर डाँस छोड़ दिये, जो उन्हें काटते थे और उनके बीच मेढ़क भेजे जो उन्हें सताते थे। उसने उनकी फसलें टिड्डों को दे दी, उसने ओलों से उनकी दाखबारियों को नष्ट किया और पाले से उनके गूलर के पेड़ों को। उसने उनके पशुओं पर ओले बरसाये और उनकी भेड़ बकरियों पर बिजली गिरायी।"

श्रोताओ, इन पदों में भजनकार याद करता है कि कई अवसरों पर ईश्वर की चुनी हुई प्रजा यानि कि इस्राएली जाति ने विद्रोह किया था, उन्होंने बारम्बार ईश्वर की परीक्षा ली थी, उन्होंने ईश्वर के विरुद्ध पाप किया था किन्तु इसके बावजूद ईश्वर ने उन्हें क्षमा कर दिया था। फिर भजनकार उन सब संकेतों की याद दिलाता है जो मिस्रियों को मिले थे। अपने अहंकार में चूर मिस्र का फराऊन और उसके लोग ईश्वर को नहीं मानते थे तथा अत्याचारों में लिप्त थे। ऐसे ही समय में विपत्तियाँ भेजकर प्रभु ईश्वर ने उनके घमण्ड को चकनाचूर किया था तथा अपना सामर्थ्य दिखाया था। 78 वें भजन का उपदेशक इन घटनाओं के विषय में बताना इसलिये जारी रखता है कि युग युगान्तर तक मानव पीढ़ियाँ ईश्वर के महान कार्यों और चमत्कारों को याद करें और उनमें अपने विश्वास की अभिव्यक्ति करें। 








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